फसलें एवं उनका वर्गीकरण (Crops & their classification)

फसलें किसानों द्वारा उगाए जाने वाले पौधे हैं, जिनकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। फसलों का उपयोग जीवन निर्वाह व व्यावसायिक रूप से कारोबार के लिए किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग प्रमुख रूप से कृषि व्यवसाय में लगे हुए है।
Note: फसलों की खेती मुख्य रूप से मौसम और मृदा की स्थिति पर निर्भर करते है।

ऋतुओं के अधार पर फसलों वर्गीकरण

रबी ऋतु की फसलें / शीत ऋतु की फसलें

  • इन फसलों की बुआई अक्टूबर से नवम्बर के मध्य में तथा कटाई अप्रैल से मई माह के मध्य में की जाती है।
  • प्रमुख फसलें – गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, मसूर, आलू, अलसी आदि।
  • इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय शुष्‍क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है।
  • रबी ऋतु की फसलें सामान्यत: Long Day पौधे होते हैं।

खरीफ ऋतु की फसलें / वर्षा ऋतु की फसलें

  • इन फसलों की बुआई जून से जुलाई के मध्य में तथा कटाई सितम्बर से अक्टूबर माह के मध्य में की जाती है।
  • प्रमुख फसलें – चावल, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, सोयाबीन, कपास, मूंगफली, जूट, अरहर, उड़द, सनई, सूर्यमुखी, तिलंडी, तंबाकू आदि।
  • इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय शुष्‍क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है।
  • खरीफ ऋतु की फसलें सामान्यत: Short Day पौधे होते हैं।

जायद ऋतु की फसलें / ग्रीष्म ऋतु की फसलें

  • इन फसलों को रबी और खरीफ की फसलों के मध्य मार्च-अप्रैल माह में बोया जाता है तथा जून माह में काटा जाता है।
  • प्रमुख फसलें – तरबूज, खरबूज, ककड़ी, खीरा, करेला आदि।

जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

  • एक वर्षीय फसलें – वह फसलें जो अपना जीवन चक्र एक वर्ष से कम समय में पूर्ण करती है, एक वर्षीय फसलें कहलाती है। जैसे – गेहूॅ, जौ, धान, सोयाबीन, चना आदि।
  • द्वि वर्षीय फसलें – वह फसलें जो अपना जीवन चक्र दो वर्ष से कम समय में पूर्ण करती है, एक वर्षीय फसलें कहलाती है। द्वि वर्षीय फसलों में प्रथम वर्ष वानस्‍पतिक वृद्धि तथा द्वितीय वर्ष में उनमें फूल व र बीज का निर्माण होता हैं। जैसे – चुकन्‍दर, गन्‍ना आदि।
  • बहु वर्षीय फसलें – वह फसलें जो दो से अधिक वर्षों तक जीवित रहती हैं, उन्हें बहु-वर्षीय फसलें कहते है। बहु-वर्षीय फसलों के जीवन चक्र में प्रतिवर्ष या प्रत्येक एक वर्ष के अंतराल पर फल व फूल आते हैं। जैसे – लूसर्न, नेपियर घास आदि।

उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

Cover Crops – ऐसी फसलें जो भूमि को ढंककर रखती हैं उन्हें कवर क्रॉप्स (Cover Crops) कहा जाता है। इस प्रकार की फसलें मिट्टी के कटाव, मिट्टी की उर्वरता, मिट्टी की गुणवत्ता, पानी, खरपतवार, कीटों, बीमारियों, जैव विविधता और वन्य जीवन को एक कृषि प्रणाली में प्रबंधित करती हैं। ऐसी फसलों की वानस्पतिक वृद्धि तेज से होती है तथा इनकी जड़े मृदा में जाल की तरह फैल जाती हैं जिससे वर्षा के कारण मृदा का कटाव कम होता है। कुछ प्रमुख कवर क्रॉप्स (Cover Crops) निम्नलिखित है – उर्द, मूंगफली, पैराग्रास, शकरकंद, लोबिया आदि।

समोच्च फसलें (Contour crops) – कृषि करने का वह तरीका जिसमें किसानों द्वारा  ढलान के क्षेत्र में पंक्ति बनाकर खेती की जाती  है। उसे समोच्च खेती या Contour Farming कहा जाता है। इस प्रकार किक खेती का प्रमुख उद्देश्य भूमि तथा जल संरक्षण होता है।

Border/Barrier Crops – वह फसलें जिन्हें खेत के चारों और लगाया जाता है, जिससे जंगली जानवरों से मुख्य फसलों की रक्षा की जा सके, उन्हें बॉर्डर या बैरियर क्रॉप्स (border or barrier crops) कहा जाता है। रोधी फसलें (Barrier Crops) द्वारा हवा की गति भी कम करती है, ऐसी फसलें प्राय: कांटेदार होती होती है। जैसे – चने के खेत के चारों ओर फसलों की सुरक्षा के लिए कुसुम की फसलें (Safflower crops) लगायी जाती है।

नकदी फसलें (Cash Crops) – नकदी फसलों का उपयोग इनकी बिक्री कर तुरंत मुद्रा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।  जैसे – जूट, कपास, तम्बाकू, गन्ना चाय, कॉफी एवं रबर आदि। इन्हें व्यवसायिक फसलें या वाणिज्यिक फसलें (Commercial Crops) भी कहा जाता है।

बागानी फसलें (Plantation Crops) – कृषि एवं वाणिज्य मंत्रालय के आधार पर भारत में बागानी फसलों के अंतर्गत नारियल, ताड़, सुपारी, कोकोआ, काजू, चाय, कॉफी एवं रबर को सम्मिलित किया जाता है।

आपातकालीन फसलें (Emergency Crops) – किसी प्राकृतिक आपदा के कारण जब मुख्य फसल ख़राब हो जाती है, तो आकस्मिक रूप से ऐसी फसलें आगामी ऋतु को पकड़ने (catch) के लिये उगायी जाती है। तो ऐसी फसलें उगाई जाती है, जो अल्प अवधि, एवं तेजी से वृद्धि करने वाली होती हैं, जिन्हें आसानी से काटकर किसी भी समय उपयोग में लाया जा सकता है। जैसे – मूंग, उड़द, लोबिया, प्याज, मूली आदि।

ट्रैप फसलें (Trap crops) – ऐसी फसलों को उगाकर मृदाजनित हानिकारक जीव (Soil-borne) जैसे परजीवी खरपतवार या कीट-पतंग को फंसाया (Trap) जाता है। जैसे-Orobanche को Solanceous कुल के पौधे द्वारा, स्ट्राइगा को सोर्घम द्वारा एवं Cotton Red Bug को कपास के चारों ओर भिन्डी उगाकर नियंत्रित अर्थात् फंसाया जाता है।

ऊर्जा फसलें (Energy Crops) – ऐसी फसलें जिनका उपयोग तरल ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जैसे – इथेनॉल व एल्कोहॉल प्राप्त करने के लिए गन्ना, आलू, मक्का, टपियोका, जटरोफा की खेती की जाती है।

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