औषधियां (Drugs)

औषधियां रोगों के इलाज में काम आती हैं। प्रारंभ में औषधियां पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं से प्राप्त की जाती थीं, लेकिन नए-नए तत्वों की खोज हुई तथा उनसे नई-नई औषधियां कृत्रिम विधि से तैयार की जाने लगी है।

औषधियों के प्रकार (Kinds of drugs)

अंतःस्रावी औषधियां (Endorcine Drugs) – ये औषधियां मानव शरीर में प्राकृतिक हार्मोनों के कम या ज्यादा उत्पादन को संतुलित करती हैं। उदाहरण-इंसुलिन का प्रयोग डायबिटीज़ के इलाज के लिए किया जाता हैं।
एंटीइंफेक्टिव औषधियां (Anti-InfectiveDrugs) – एंटी-इंफेटिव औषधियों को एंटी-बैक्टीरियल, एंटी वायरल अथवा एंटीफंगल भी कहा जाता है। इनका वर्गीकरण रोगज़नक सूक्ष्मजीवियों के प्रकार पर निर्भर करता है। ये औषधियां सूक्ष्मज़ीवियों की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करके उन्हें समाप्त कर देती हैं।
एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) – एंटीबायोटिक्स औषधियां अत्यन्त छोटे सूक्ष्मजीवियों, मोल्स, फन्जाई (fungi) आदि से बनाई जाती हैं। पेनिसिलीन, ट्रेटासाइक्लिन, सेफोलोप्रिन्स, स्ट्रेप्टोमाइसिन, जेन्टामाइसिन आदि प्रमुख एंटीबायोटिक औषधियां हैं।
एंटी-वायरल औषधियां (Anti-ViralDrugs) – ये औषधियां मेहमान कोशिकाओं में वायरस के प्रवेश को रोककर उसके जीवन चक्र को प्रभावित करती हैं। ये औषधियां अधिकांशतः रोगों को दबाती हैं।
वैक्सीन (Vaccine) – वैक्सीन का प्रयोग कनफोड़ा (Mumps), छोटी माता, पोलियों और इंफ्लूएंजा जैसे रोगों में, एंटी-वायरल औषधि के रूप में किया जाता है। वैक्सीनों का निर्माण जीवित अथवा मृत वायरसों से किया जाता है। वैक्सीन से मानव शरीर में एडीबॉडीज का निर्माण होता है। ये एंटीबॉडीज़ शरीर को समान प्रकार के दायरस के संक्रमण से बचाती हैं।
एंटी-फंगल औषधियां (Anti-fungalDrugs) – एंटी फंगल औषधियां कोशिका भित्ति में फेरबदल करके फंगल कोशिकाओं को चुनकर नष्ट कर देती हैं। कोशिका के जीद पदार्थ का स्राव हो जाता हैं। और वह मृत हो जाती हैं।
कार्डियोवैस्कुलर औषधियां (Cardiovascular drugs) – ये औषधियां हृदय और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करती हैं। इनका वर्गीकरण उनकी क्रिया के आधार पर किया जाता है। एंटीहाइपरटेन्सिव औषधियां रक्त वाहिकाओं को फैला कर रक्तचाप पैदा कर देती हैं। इस तरह से संवहन प्रणाली में हृदय से पंप करके भेजे गए रक्त की मात्रा कम हो जाती है।
एंटीअरिमिक औषधियां (Antiarrhythmic drugs) – हृदय स्पंदन को नियमित करके हृदयाघात से मानव शरीर को बचाती हैं।

रक्त को प्रभावित करने वाली औषधियां

एंटी-एनीमिक औषधियों (Antianemic drugs) में कुछ विटामिन अथवा आयरन शामिल होते हैं जो लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण को बढ़ावा देते हैं।
एंटीकोएगुर्लेट औषधियां (Anticoagulants drugs) रक्त जमने की प्रक्रिया को घटाकर रक्त संचरण को सुचारू करती हैं।
थॉम्बोलिटिक औषधियां (Thrombolytics drugs) रक्त के थक्कों को घोल देती हैं जिनसे रक्त वाहिकाओं के जाम होने का खतरा होता है। रक्त वाहिकाओं में ब्लॉकेज की वजह से हृदय व मस्तिष्क को रक्त व ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है।

केंद्रीय स्नायु तंत्र की औषधियां

यह वे औषधियां हैं जो मेरूदण्ड और मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। इनका प्रयोग तंत्रिकीय और मानसिक रोगों के इलाज में किया जाता है। उदाहरण के लिए एंटी-एपीलेप्टिक औषधियां (antiepilyptic drugs) मिर्गी के दौरों को समाप्त कर देती हैं। एंटी-साइकोटिक औषधियां (anti-pcychotic drugs) सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia) जैसे मानसिक रोगों के इलाज में काम आती हैं। एंटी-डिप्रेसेंट औषधियां (antidepressent druggs) मानसिक अवसाद की स्थिति को समाप्त करती हैं।

एंटीकैंसर औषधियां

ये औषधियां कुछ कैंसरों को अथवा उनकी तीव्र वृद्धि और फैलाव को रोकती हैं। ये औषधियां सभी कैंसरों के लिए कारगर नहीं होती हैं। पित्त की थैली, मस्तिष्क, लीवर अथवा हड्डी इत्यादि के कैंसरों के लिए अलग-अलग औषधियां होती हैं । ये औषधियां कछ विशेष तंतुओं अथवा अंगों के लिए विशिष्ट होती हैं। एंटी कैंसर औषधियां विशेष कोशिकाओं में हस्तक्षेप करके अपना कार्य को अंजाम देती हैं।

उपयोगी चिकित्सीय यंत्र व विधियां

कैट स्कैनर (Cat Scanner) – कैट स्कैनर रोग निदान का आधुनिकतम उपकरण हैं। कैट (CAT) शब्द कम्पयूटराइज्ड एक्सिअल टोनोग्राफी’ (F का संक्षिप्त रूप है। कैट स्कैनर एक्स किरणों द्वारा जांच करने । की एक अत्यंत विकसित प्रणाली है। ये दो प्रकार के होते हैं,

  • हेड स्कैनर – इसके द्वारा मस्तिष्क संबंधी रोगों, जैसे रसौली, ब्रेन हेमरेज, व मस्तिष्क की नलिकाओं में रूकावट आदि का पता लगाया जाता है ।
  • बॉडी स्कैनर – इसके द्वारा बॉडी स्कैनर से पेट, जिगर, छाती आदि के रोगों का पता लगाया जाता है।

डायलिसिस (Dialysis) – वह कृत्रिम व्यवस्था जिसके द्वारा वृक्क (गुर्दो) के काम न करने की स्थिति में रक्त से यूरिया आदि अवशिष्ट पदार्थों को पृथक करने का कार्य किया जाता है।
इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राफ (E.C,G Electro-Cardiograph) – हृदय की गति के कंपन का ग्राफ चित्र, जिसका प्रयोग हृदय रोग के निदान हेतु किया जाता है।
इलेक्ट्रो-मायोग्राम (Electromyogram) – मांसपेशियों से संबंधित रोगों का निदान करने के लिए मांसपेशियों के सिकुड़ने एवं उत्तेजित होते समय उत्पन्न होने वाले विद्यु-स्पंदों का एक उपकरण की सहायता से बनाया गया आरेख चित्र, इलेक्ट्रो-मायग्नाम (EMG) कहलाता है। इस विधि को इलेक्ट्रो-मायोग्राफी एवं उपकरण को इलेक्ट्रो-मायोग्राफ कहते हैं।
इलेक्ट्रो-रेटिनोग्राम (Electro Retinogram) – कुछ नेत्र रोगों के निदान के लिए आंख के रेटिना पर प्रकाश पड़ने के कारण आंख में होने वाले स्थितिज परिवर्तनों को अंकित करना, इलेक्ट्रो-रेटिनोग्राफी कहलाता है तथा इस आलेख को इलेक्ट्रो-रेटिनोग्राफ कहते हैं।
पेस मेकर (Pace Maker) – हृदय की निरंतर और नियमबद्ध धड़कन का नियंत्रण पेस मेकर द्वारा किया जाता है। पेस मेकर द्वारा हृदय को आवश्यक विद्युत-संदेश प्राप्त होते रहते हैं जिससे हृदय की धड़कन नियमित रूप से चलती है।
पाश्चुरीकरण (Pasteurization) – यह लुई पाश्चर द्वारा अविष्कृत खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने की विधि है। इस विधि में किसी द्रव पदार्थ को उसके क्वथनांक पर अच्छी तरह उबाल कर उसके जीवाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है।
इलेक्ट्रोइंसेफेलोग्राम (Electroencephalogram EEG) – यह एक जांच है जो मस्तिष्क की इलेक्ट्रीकल गतिविधियों को मापती और रिकॉर्ड करती है। इसमें मस्तिष्क से विशेष संवेदक जोड़े जाते हैं। जो तारों द्वारा कंप्यूटर से जुड़े होते हैं।
परखनली शिशु (Test Tube Baby) – मादा का अंडा एवं नर के शुक्राणु द्वारा गर्भ से बाहर परखनली में गर्भाधान क्रिया कराकर भूण का विकास करने पर उत्पन्न शिशु को परखनली शिशु कहते हैं। इस तकनीक में परखनली में गर्भाधान क्रिया कराने के बाद निषेचित अंडे को स्त्री के गर्भाशय से प्रविष्ट करा देते हैं और भ्रूण का परिवर्धन गर्भाशय में ही होता है।

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