फसल उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक

फसलों को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –
मृदा (Soil)
पृथ्वी की सतह की सबसे ऊपरी परत को मृदा कहते हैं। इसमें विखंडित चट्टानों के छोटे कणों, खनिजों, जैविक पदार्थ और बैक्टीरिया का मिश्रण होता है। मृदा की चार परतें होती हैं।

  1. पहली अथवा सबसे ऊपरी सतह छोटे-छोटे मिट्टी के कणों और गले हुए पौधों और जीवों के अवशेष से बनी होती है। यह परत फसलों की पैदावार के लिए महत्त्वपूर्ण होती है।
  2. दूसरी परत महीन कणों जैसे चिकनी मिट्टी की होती है।
  3. तीसरी परत मूल विखंडित चट्टानी सामग्री और मिट्टी का मिश्रण होती है।
  4. चौथी परत में अ-विखंडित सख्त चट्टानें होती हैं।

प्रत्येक प्रकार की मिट्टी अपनी विशिष्ट भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार की फसलों को लाभ प्रदान करती है।

जलोढ़ मिट्टी – यह उपजाऊ मिट्टी है जो पोटेशियम से भरपूर है और यह कृषि विशेष कर धान, गन्ना और केले की फसल के लिए बहुत उपयुक्त है।

लाल मिट्टी – लाल मृदा में लौह की मात्रा अधिक होती है और यह रेड ग्राम, बंगाल चना, ग्रीन ग्राम, मूंगफली और अरण्डी के बीज की फसल के लिए उपयुक्त हैं।

काली मिट्टी – काली मृदा में कैल्शियम, पौटेशियम और मैगनेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है लेकिन इसमें नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है। कपास, तम्बाकू, मिर्च तिलहन, ज्वार, रागी और मक्के जैसी फसलें इसमें अच्छी उगती हैं।

रेतीली मिट्टी – रेतीली मृदा में पोषक तत्त्व कम होते हैं लेकिन यह अधिक वर्षा क्षेत्रों में नारियल, काजू और कैजुरिना के पेड़ों के विकास में उपयोगी है।

कृषि कार्य में भूपरिष्करण का उद्देश्य 

  • कठोर मिट्टी को तोड़ना
  • खपतवारों पर नियंत्रण
  • मिट्टी में नमी का संरक्षण
  • मृदा में वायु संचार की व्यवस्था करना
  • पौधों के रोगों पर नियंत्रण
  • मिट्टी में खाद एवं उर्वरक का मिलना

मृदा का रंग – मिट्टी में उपस्थित जैव पदार्थों की मात्रा, जल निकास की दशा (स्थिति) और वातन की स्वतंत्रता के आधार पर किसी मृदा का रंग निर्भर करता है।
मृदा कोलाइड – कणों की वह अवस्था, जो अपनी सूक्ष्मता के कारण न तो पानी में धरातल में बैठती है और न ही उन्हें संरंध्र पोर्सेलिन के माध्यम से छानकर अलग किया जा सकता है। मृदा कोलॉइड भूमि में उपस्थित पोषक तत्वों को बांधे रखते हैं। इसलिए किसी भूमि में कोलॉइडी पदार्थ की मात्रा पर भूमि की उर्वरता निर्भर करती है।
मृदा की अम्लता – जिस मिट्टी का pH-7 से कम होता है, उसे मृदा को अम्लीय मृदा कहा जाता है, लेकिन व्यवहारिक रूप में जिस मिट्टी का pH-5.5 या इससे कम होता है, उसे भी अम्लीय माना जाता है। अम्लीय मृदा में सुधार के लिए चूना पदार्थों का उपयोग किया जाता है।
अम्लीय मृदा के दुष्प्रभाव 

  • सूक्ष्म जीवाणुओं का निष्क्रिय होना
  • पौधे के जड़ ऊतकों पर आयन्स का विषैला प्रभाव
  • अनेक लघु पोषक तत्वों का क्षरण

लवणीय मृदा – वह मिट्टी जिसमें घुलनशील लवण की सांद्रता विषेले स्तर यानि जिसके लिए विद्युत चालकता 4 और pH 8.5 से कम हो, तो वह लवणीय मृदा होती है। सोडियम, कैल्शियम व मैग्नीशियम के क्लोराइड और सल्फेट,, घुलनशील लवण है।
क्षारीय मृदा – इसमें घुलनशील लवण की अत्याधिक सांद्रता नहीं होती है। विद्युत चालकता 4 से कम होती है और pH-8.5 से अधिक होता है। जिप्सम, गंधक व सल्फ्यूरिक अम्ल का प्रयोग कर, लवणरोधी फसलें एवं हरा शैवाल लगाकर लवणीय तथा क्षारीय मृदा में सुधार किया जाता है।

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