मेले व त्यौहार किसी भी देश व प्रदेश की संस्कृति तथा मानवीय भावनाओं को जोड़ने का एक सरल व माध्यम समझे जाते हैं। मेले हमारी मानसिक कुंठा का दमन कर प्रेम व भाईचारे का संदेश देते हैं। त्यौहार हमें सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जोड़ने का काम करते हैं। आधुनिक स्वरूप की छवि व समय की बदलती तस्वीर के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विभिन्न उत्सवों व मेलों को तीन प्रकारों से विभक्त किया गया है-
i. राज्य स्तरीय मेले (State Fairs)
राज्य स्तरीय मेले राज्य स्तर पर मनाये जाते हैं। ये मेले सरकार द्वारा अनुमोदित है। हैं। इसमें सभी सुविधाएं सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं। इनमें सरकार की ओर से समूची व्यवस्था संबंध, चिकित सुविधा, कानून व्यवस्था, मनोरंजन क्रिया-कलाप तथा दूसरी अन्य अन्तर्राज्यीय प्रतियोगिता तथा सांस्कृतिक कला कतिया का आयोजन किया जाता है। इन राज्यस्तरीय मेलों में प्रमुख-
- मिज्जर मेला(चम्बा)
- शिवरात्रि (मंडी)
- दशहरा (कुल्लू)
- लबी(रामपुर)
ii. धार्मिक मेले (Religious Fairs)
ये मेले धार्मिक स्थलों व मन्दिर प्रांगण में मनाये जाते हैं। इसमें मन्दिरों के देवस्थलों में विभिन्न सम्प्रदायों के लोग एक साथ श्रद्धा व विश्वास से पूजा अर्चना करते हैं और धार्मिक अनुभूतिः आत्म शांति का जाप करके सुखद अनुभव प्राप्त करते हैं। नवरात्रों के समय मनाया जाने वाला मेला आकर्षण का के होता है तथा श्रद्धालुओं की अपार भीड़ को देखते हुए धार्मिक मेले का स्वरूप देखने योग्य होता है। हिमाचल में धार्मिक मेलों का वर्णन इस प्रकार है-
1. मारकण्डेय मेला (Markandaya Fair)- यह मेला प्रतिवर्ष वैशाखी के समय तीन दिन तक बिलासपुर के मकरी गांव में ऋषि मारकण्डेय के मन्दिर के समक्ष मनाया जाता है। मान्यता है कि ऋषि मारकण्डेय का जन्म यहा हुआ था तथा लोग यहां के पवित्र जल में स्नान करके अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए प्रार्थना करते हैं।
2. नयना देवी मेला (Nayna Devi Fair)- बिलासपर ज़िल में नवरात्रों में होने वाला मेला श्री नयना देवी को समर्पित है। मन्दिर के विषय में धारणा है कि जब राजा दक्ष ने माद ( भगवान शिव) को यज्ञ में नहीं बुलाया तो क्रोधित दक्ष की पुत्री (सती) हवन-कुण्ड में कूद कर अपने प्राणों की आहूतिदे दी थी। माता सती का आँख वाला हिसा इसी स्थान में होने के कारण इस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और इसे नयना देवी नाम पढ़ा। गुरु गोविन्द सिंह जी ने इस मन्दिर में पूजा-अर्चना की थी। यहां से बिलासपुर तथा गोबिन्द सागर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
3. अन्य देवी मेले (Other Devi Fairs)- हिमाचल प्रदेश, देवी के मेलों के लिए विख्यात है। ऊना जिले में चंतपुरनी, कांगड़ा में ज्वाला जी तथा ब्रजेश्वरी देवी के प्रमख मेले हैं। इन सभी मन्दिरों में चैत्र, श्रावण महीने में लगते है। इन मेलों में दूर-दूर से लोग अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर देवी दर्शन के लिए आते हैं।
4. गुग्गा पीर मेला (Gugga Pir Fair)- यह मेला गुग्गा पीर की याद में गुग्गा मन्दिर बटेहर उपराली (सदर बिलासपुर ) में मनाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि गुग्गा उनकी सर्प-दंश और अन्य भूत-प्रेतों से रक्षा करता है।
5. हाटकोटी मेला (Hatkoti Fair)- हाटकोट (रोहड़) में इस मेले को दुर्गा माता की याद में आयोजित किया। है। मान्यता है कि हाटकोटी के इस मन्दिर का निर्माण राजा विराट ने किया था। पाण्डवों का सम्बन्ध इस मन्दिर से जोड़ा जाता है। मन्दिर में माता की अष्ठभुजा मूर्ति अद्वितीय है।
6. रोहडू मेला (Rohru Fair)- साधारतया इस मेले को वैशाख (मध्य अप्रैल) में देवता शिकरु के मन्दिर के समक्ष रोहडू बाजार में आयोजित किया जाता है। शिकरु देवता को धनटाली, जाखर दशलानी, गंगटोली और रोहडू में घुमाया जाता है। देवता के यह पांच आवास माने जाते हैं।
7. सिप्पी मेला (Sippy Fair)- सिपुर (शिमला जिले) में मनाया जाने वाला यह मेला सिप देवता को समर्पित है। हिमाचल प्रदेश के गठन से पूर्व यह मेला कोटी रियासत में राजा के पद ग्रहण के समय मनाया जाता था। प्रथा थी कि राजा अपनी गद्दी ग्रहण करने से पूर्व सिप देवता की पूजा करता था। सिप्पी मेला शिव भगवान को समर्पित है।
8. कुफरी मेला (Kufri Fair)- मशोबरा के समीप डगहोगी गांव में रामायण के उस सुअवसर को याद करने के लिए यह मेला आयोजित किया जाता है, जब हनुमान ने वानरों की सहायता से लंका को जोड़ने वाला सेतु बनाया था।
9. शूलिनी मेला (Shuline Fair)- सोलन का यह मेला दुर्गा माता की छोटी बहन शूलिनी देवी को समर्पित है। यह देवी पूर्व बघाट रियासत के शाक की कुलदेवी रही है। सात बहनों में हिंगलाज देवी, जेठी ज्वालाजी, लूगासनी देवी, नयना देवी, नौग देवी, शूलिनी देवी और तारा देवी थीं। सातों बहने दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं। शूलिनी मेला निना थापा मार के तो अतिवार को मनाया जाता है। सोन का नाम भी देनी शलिनी के नाम पर है।
10. रेणुका मेला (Renuka Fair)- रेणुका माता की याद में यह मेला जिला सिरमौर में आयोजित होता है। जमदग्नि ऋषि (परशु राम के पिता) का राजा सहस्र्वाजुन ने वध कर दिया था । इसके पश्चात् जमदग्नि की पत्नी रेणुका ने झील में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। दूसरी मान्यता है कि परशु राम ने अपनी माता रेणुका का पिता जमदग्नि के आदेश पर वध कर दिया था। आज भी लोग हजारों की संख्या में कार्तिक माह में एकादशी के दिन मेले में आकर यहां पूजा-अर्चना करते हैं। झील का आकार पहाड़ी के ऊपर से सुप्त महिला जैसा प्रतीत होता है।
11. बाबा बालक नाथ मेला (Baba Balak Nath Fair)- यह मेला दियोट सिद्ध नामक स्थान में बाबा बालक नाथ (संन्यासी बालक) की चमत्कारी शक्ति को याद करने के लिए मनाया जाता है। धारणा है कि बाबा बालक नाथ का जन्म गिरिनार काठियावाढ (जूनागढ़ राज्य) में हुआ था। यह चमत्कारी बालक तलाई बिलासपर के आसपास भी घूमता रहा, जहां वह पशु-चराता रहता था। दियोट सिद्ध में बालक ने सिद्धि प्राप्त की। बाबा की याद में ही इस मेले में रोटियों (रोटों) को श्रद्धालुओं में बांटा जाता है।
12. होला मोहल्ला मेला (Hola Mohalla Fair)- मुख्य रूप से इस होली उत्सव को पांवटा (सिरमौर जिले) में मनाया जाता है। इस मेले का आरम्भ गुरु गोबिन्द सिंह के पांवटा में रहने के साथ जोड़ा जाता है। गुरु के यहां रहने के दौरान 52 कवि उनके दरबार में रहते थे। वास्तव में होला मोहल्ला मेला आनन्दपुर साहिब (पंजाब) से शुरू हुआ जहां गुरु अपनी सेना के बहादरी और सैनिक दक्षता को देखते थे।
13. मेला बाबा बड़भाग सिंह (Mela Baba Barbhag Singh)- यह मेला ऊना जिला के मैडी नामक स्थान ज्येष्ठ के महीने में पूरा महीना चलता है। इस मेले में पंजाब से बड़ी संख्या में लोग जाते हैं। शक्तियों के लिए विख्यात है तथा इसके बारे में अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं। ज्येष्ठ महीने के अति मास की अमावस्या को भी मेला लगता है।
14. मणिमहेश मेला (Mani Mahesh Fair)- यह चम्बा से 65 कि.मी. दूर एक धार्मिक स्थल है। यहा एक सुन्दर झील है। झील के किनारे शिव मन्दिर बना है जिसे शिव का घर कहा जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी से 15 दिन बाद यहां मेला लगता है, जिसे मणि महेश यात्रा कहा जाता है।
15. शिवरात्रि का मेला (Shivratri Fair)- हिमाचल में शिवरात्रि के दिन अनेक स्थानों पर छोटे-छोटे मेले लगते हैं परन्तु मण्डी का शिवरात्रि मेला बहुत प्राचीन काल से चलता आ रहा है। इस मेले का सम्बन्ध मण्डी के राजा अबरसेन से है क्योंकि सर्वप्रथम उसने ही मण्डी में शिवलिंग की स्थापना की थी तथा तब से शिवरात्रि मेला मण्डी में शुरू हुआ था।
iii. व्यापारिक मेले (Trade Fairs)
व्यापारिक मेलों का उद्देश्य व्यापार करना मात्र ही नहीं होता है अपितु इन मेलों में भी संस्कृति के दर्शन देखने को मिलते हैं। ये व्यापार के माध्यम से लोगों को एक दूसरे से सम्पर्क बनाये रखन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन मेलों का आरम्भ राजाओं के अन्तर-रियासत क्रय-विक्रय व सोहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से हुआ था। ये मेले-लवी (रामपुर), मंडी-बिलासपुर, हमीरपुर में आयोजित किये जाते है। इनः । नलवाड़ी के पशु मेले को विश्व भर में ख्याति प्राप्त हैं।
1. बिलासुपर का नलवाड़ी मेला (Nalwari Fair of Bilaspur)- यह मेला सामान्यत: 17 से 23 मार्च तक मनाया जाता है। यह पशु व्यापार मेला है, जो आस-पास के इलाके में पशु व्यापार विशेषकर बैलों के लिए – प्रसिद्ध है। इस समय यह मेला राज्य स्तरीय मेले के रूप में मनाया जाता है। मेले का शुभारम्भ परम्परागत ढंग से ‘खंडी गाड़ने के साथ होता है। 1962 तक यह मेला सांडू मैदान में मनाया जाता रहा। इस मैदान के गोबिन्द सागर में डूबने के बाद यह मेला लुहणु मैदान में मनाया जाता है। खंडी गाड़ने के साथ ही बैल पूजा होती है और मेल हि प्रारम्भ हो जाता है। पशु मेले के साथ-साथ कुछ दुकानें भी लगाई जाती हैं। साथ ही साथ ‘छिंज’ का आयोजन होता है जिसमें पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल के पहलवान भाग लेते हैं। अन्तिम कुश्ती जीतने वाले को चाँदी का गर्ज दिया जाता है जो हनुमान की गदा का प्रतीक है। मेले के दौरान पशुओं का क्रय-विक्रय चलता रहता है, जिससे नए-नए पशु आते हैं और पुराने बिकते जाते हैं।
2. सन्दर नगर को नलवाड़ी मेला (Nalwari Fair of Sunder Nagar)- यह मेला 9 से 17 चैत्र (मार्च) तक मनाया जाता है। यह प्रदेश का सबसे बड़ा पशु मेला है और बिलासपुर नलवाड से कई गुना बड़ा मेला है। इस पशु म में जिला मंडी, कांगडा, बिलासपुर तथा हमीरपुर तक के कृषक बैल खरीदने आते हैं। यह समझा जाता है कि यह सब पुरातन पशु मेला है। बिलासपुर, भंगरोटू की नलवाड बाद में आरम्भ हुई। ऐसा भी विश्वास है कि राजा चेतसेन के संग राजा नल सुन्दर नगर (सुकेत) आए। राजा नल ने परामर्श दिया कि लोगों की आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए अन्न व्यापार मेला आरम्भ किया जाए। राजा चेतसेन ने यह मेला आरम्भ किया और इसका नाम नलवाड़ रखा। यह मेला लिंडी खड्ड में एक किलोमीटर से ऊपर के क्षेत्र में मनाया जाता है। दूर-दूर तक खड्ड तथा आरा के क्षेत्रों में पशु-ही-पशु दिखाई देते हैं। मेले में छ: सात दिनों तक खड्ड तथा खेतों में पशु-ही-पशु रहते है।
3. लवी का मेला (Lavi Fair)- यह हिमाचल का एक व्यापारिक मेला है, जो 11 से 13 नवम्बर को रामपुर में लगता है। इस मेले में बड़ी व्यापारिक मण्डी लगती है जिसमें ऊनी चादरों तथा शाल-दोशालों का अत्यधिक व्यापार इसे लवी अर्थात ऊन का नाम दिया गया है। इस मेले में चिलगोजा, अखरोट, बादाम काला जीरा व बिक्री होती है। मेले में लोकनृत्य भी देखने को मिलते हैं, जिनमें माला नृत्य मेले का सर्वाधिक आकर्षण होता है।