कुमाउँनी लोक साहित्य (Folk literature of Kumaon)

कुमाउँनी लोक साहित्य को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैं –

  • लिखित साहित्य (Written literature)
  • मौखिक लोक साहित्य (Oral folk literature)

लिखित साहित्य (Written literature) 

डॉ. योगेश चतुर्वेदी के अनुसार लोहाघाट के एक व्यापारी के पास से चंपावत के चंद राजा थोर अभय चंद का 989 ई. का कुमाउँनी भाषा में लिखित ताम्र पत्र प्राप्त हुआ है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि चंद राजाओं के शासनकाल में  कुमाउँनी भाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी।

  • Note – इसका उल्लेख डॉ. योगेश चतुर्वेदी द्वारा अपनी पत्रिका “गुमानी ज्योति” में किया है।
  • कुमाउँनी भाषा का विकास संस्कृत-अपभ्रंश से हुआ है।

पिथौरागढ़ से 1105-06 ई. के मध्य का दिंगास अभिलेख प्राप्त हुआ है, इसका उल्लेख महेश्वर जोशी ने अपनी रचनाओं में किया है।
कुमाउँनी भाषा में साहित्य रचनाओं की शुरुआत लगभग 1800 ई. के बाद हुई। गुमानी पंत (Gumani Pant), शिवदत्त सती (Shivadatta Sati), , गंगादत्त उप्रेती (Gangadatta Upreti), कृष्ण पांडे (Krishna Pandey), चिंतामणि जोशी (Chintamani Joshi), लीलाधर जोशी (Liladhar Joshi), ज्वालादत्त जोशी (Jwaladatta Joshi) आदि इस काल के प्रमुख सहित्यकार हैं।

मौखिक लोक साहित्य

कुमाऊँ क्षेत्र में लोकगीतों की एक सम्रद्ध परम्परा रही है। कुमाउँनी मौखिक साहित्य के अंतर्गत लोकगीतों, लोककथाओं, लोकगाथाओं आदि को सम्मलित किया सकता है। कुमाऊँ के मौखिक साहित्य को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  • जैसे – कृषिगीत, ऋतुगीत, संस्कारगीत, अनुभूति प्रधान गीत, नृत्य गीत, तर्क प्रधान गीत, परम्परागत गाथाएं, पौराणिक गाथाएं, धार्मिक गाथाएं एवं वीर गाथाएं आदि।

परंपरागत लोकगाथाएं –  मालूशाही एवं रमौल (यह दोनों सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्राचीन लोगगाथा हैं)।
पौराणिक लोकगाथाएं –  इन्हें ‘जागर’ भी कहा जाता है। इन लोकगाथाओं को देवताओं की प्रसन्न करने, भूत-प्रेत से मुक्ति या किसी व्याधि से छुटकारा पाने के लिए गाया जाता है। इन गाथाओं में राम, कृष्ण संबंधी गीत, कृष्ण कोकिला, रूक्मणी हरण, चंद्रावली हरण, शिव पार्वती आदि लोकगाथाएं आती हैं।
धार्मिक लोकगाथाएं – इन्हें धार्मिक अनुष्ठान व तंत्र-मंत्र के समय गाया जाता है। इनके अंतर्गत निम्नलिखित लोकगाथाएं आती है। जैसे – ग्वल्ल, गोल्ज्यू , यक्ष-नाग गीत, गद्यनाथ, मसाण, एड़ी, सैम, नंदा देवी आदि प्रमुख धार्मिक लोकगाथाएं हैं।
वीर गाथाएं – इन्हें भड़ो भी कहा जाता है। वीरगाथाओं के अंतर्गत शासकों एवं अन्य वीरयोद्धाओं की लोक गाथाएं गाई जाती हैं। जैसे – तीलू रौतेली, भीमा कठेत, सूरज कौल, कालू भंडारी, रतुवा फर्त्याल, जगदेव पंवार, अजवा, बकौल, जीतू  बगडवाल, आदि यहाँ की प्रमुख वीर लोक गाथाएं हैं।
धार्मिक शिक्षा, नैतिक शिक्षा एवं मनोरंजन हेतु लोककथाएं  – विषय आधार पर ये कथाएं राजा-रानी, लोरी, भांटा-सांटा,  हास्य-व्यंग, पशु-पक्षी, भूत-प्रेत, संत-महात्मा आदि से सम्बन्धित होती हैं।

  • Note : कुमाउंनी भाषा में पहेलियों को आण कहा जाता है।
  • वर्ष 1871 में प्रकाशितअल्मोड़ा अखबार (उत्तराखंड का प्रथम कुमाऊँनी अखबार) तथा 1918 में प्रकाशित शक्ति अखबारसे कुमाउँनी भाषा के विकास में अत्यधिक सहयोग मिला था।

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