उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता 

उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता 

  • सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह से करता है|
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को सिद्ध कदाचार व दुर्व्यवहार के आधार पर हटाया जा सकता है |
  • सदन में न्यायधीशों के आचरण पर चर्चा  नहीं की जा सकती है |
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन , भत्ते व प्रशासनिक खर्च भारत की संचित निधि (Consolidated funds of India) है | सदन में इस पर मतदान नहीं किया जा सकता है |
  • न्यायालय को अपनी अवमानना पर दंड देने की शक्ति है |
  • भारत के मुख्य न्यायधीश को अपने अधीन अधिकारी व कर्मचारी नियुक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त है|
  • सेवानिवृति के बाद उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश किसी भी न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य नहीं कर सकता है|

न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)

न्यायालय की अवमानना सिविल या अपराधिक दोनों प्रकार की हो सकती है , जो निम्न है –

सिविल अवमानना (Civil contempt) – सिविल अवमानना का तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से न्यायालय के किसी फैसले , आदेश , न्यायादेश की अवहेलना करने से है |

अपराधिक अवमानना (Criminal contempt) – इससे तात्पर्य किसी ऐसे सामग्री का प्रकाशन व कार्य करना है , जिसमें न्यायालय की स्थिति को कमतर आंकना या न्यायिक प्रक्रिया में बढ़ा पहुँचाना शामिल है, किंतु किसी मामले में निर्दोष प्रकाशन और उसका वितरण न्यायिक कार्यवाही रिपोर्ट की निष्पक्ष व उचित आलोचना को न्यायालय की अवमानना नहीं माना जाएगा|

सर्वोच्च न्यायालय को अपनी अवमानना पर दंडित करने का अधिकार है, इसके लिए न्यायालय द्वारा लगभग 6 माह तक सामान्य कारावास या 2000 रू० आर्थिक अर्थदंड या दोनों शामिल है | वर्ष 1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यह शक्ति उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) व उच्च न्यायालय (High Court) दोनों को प्राप्त है|

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