गयासुद्दीन बलबन का वास्तविक नाम बहाउदीन था तथा इलबारी तुर्क था| बलबन ने सत्ता प्राप्त करने के पश्चात एक नए राजवंश बलबनी वंश (द्वितीय इल्बारी वंश) की स्थापना की| बलबन को बाल्यकाल में ही मंगोलों द्वारा दास के रूप में बेच दिया| इसके पश्चात ख्वाजा जमालुद्दीन अपने अन्य दासों के साथ बलबन को भी दिल्ली ले आया, जहाँ 1233 ई. में ग्वालियर विजय के बाद इल्तुतमिश ने इन सभी दासों को खरीद लिया|
- उपाधि – जिल्ला-इलाही, उलूग खां (नासिरुद्दीन महमूद द्वारा प्रदत), नियाबत-ए-खुदाई
- वंशज – फिरदौसी के शाहनामा में वर्णित अफरासियाब का वंशज
कार्य
- तुर्कान-ए-चिहलगानी (चालीसा दल) का दमन
- बंगाल से सूबेदार तुगरिल खां ने 1276 ई. में विद्रोह किया, जिससे क्रुद्ध होकर मरवा दिया।
बलवत का सिद्धांत
बलबन दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था, जिसने राजत्व संबंधी सिद्धांतों की स्थापना की| बलबन ने राजत्व सिद्धांत का स्वरुप और सार फारसी राजत्व (ईरान के सासानी शासको) से लिया है, जो निम्नलिखित है –
- बलबन सुल्तान को पृथ्वी पर अल्लाह का प्रतिनिधि (नियाबत-ए-खुदाई ) मानता था |
- उसेक अनुसार सुल्तान जिल्ले अल्लाह है अर्थात ईश्वर की परछाई है तथा पैगम्बर के पश्चात सुल्तान का ही स्थान है |
- राजा का ह्रदय ईश्वर – कृपा का विशेष भंडार है और इस सम्बन्ध में मानव जाति में उसके सामान कोई नहीं है |
बलवत के द्वारा प्रचलित नियम
बलबन ने फारसी पद्धति पर अपने दरबार का गठन किया तथा दिल्ली दरबार में गई इस्लामी प्रथाओं का प्रचलन शुरू किया | बलबन ने दरबार में सिजदा (घुटने पर बैठकर सर झुकाना) व पायबोस (सुल्तान के चरण चुम्बन) की प्रथा आरंभ की तथा दरबार में प्रतिवर्ष ईरानी त्यौहार नौरोज़ मनाने की प्रथा आरम्भ की|
बलबन किसी भी सामान्य व्यक्ति से नहीं मिलता था, इस संबंध में उसका कहना था कि “जब में किसी तुच्छ परिवार के व्यक्ति को देखता हूँ तो मेरे शरीर की नाड़ी क्रोध से उत्तेजित हो जाती है”| बलबन खलीफा की सत्ता को मान्यता देता था तथा सिक्कों पर खलीफा का नाम अंकित किया तथा ख़ुत्बे में उनका नाम शामिल किया |
प्रशासनिक सुधार
- सत्ता को सुदृढ़ करने के लिए ही बलबन ने सर्वप्रथम, सदैव तत्पर सेना रखने की शुरुआत की| इसके लिए बलबन ने आरिज विभाग की स्थापना की तथा इमादुल लुल्क को दीवान-ए-आरिज (सेना मंत्री) नियुक्त किया तथा उसे “रावत-ए-अर्ज” की उपाधि प्रदान की|
- गुप्तचर विभाग का गठन
- दोआब में इक्ताओं का पुनःग्रहण
- मंगोल समस्या तथा पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त की समस्या से निपटने के लिए बलबन ने किले बनवाने पर ध्यान दिया|
समकालीन कवि
- अमीर खुसरो (तुतिए-हिन्द)
- अमीर हसन
मृत्यु
मंगोलो से युद्ध में बलबन के पुत्र शहजादा मुहम्मद की मृत्यु हो गयी जिससे उसे भयंकर कुठाराघात हुआ और इसके कुछ वर्षों बाद बलबन की भी मृत्यु हो गयी |