हीमोग्लोबिन (Haemoglobin-HIb)
हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद होता है। इसे लाल रक्त कोशिकाओं का मुख्य घटक माना जाता है, जो ऑक्सीजन के संवाहन का कार्य करता है। हीमोग्लोबिन प्रोटीन का एक बहुत ही ज्यादा जटिल एवं संलिष्ट रूप है जिसमें 95% ग्लोबिन (प्रोटीन) तथा 5% हीमेटिन (haematin) नामक आयरन युक्त पिगमेंट रहते हैं। यही कारण है कि हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए आयरन बहुत जरूरी है।
हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को फेफड़ों से ऊतकों में पहुंचाता है तथा ऊतकों से कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों में पहुंचाता है। इस क्रिया में हीमोग्लोबिन का हीमेटिन (haematin) भाग फेफड़ों की ऑक्सीजन से संयोजित होकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) बनाता है, जो एक अस्थायी यौगिक है। रक्त के साथ ऑक्सीहीमोग्लोबिन पूरे शरीर में परिसंचारित होता है। परिसंचरण के द्वारा दूर दूर के ऊतकों को (जहां भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है) ये ऑक्सीजन दे देते हैं और खुद ऑक्सीजन मुक्त हो जाते हैं।
इस प्रकार ऊतकों में हीमोग्लोबिन का अपचयन हो जाता है। ऊतकों के विकार (कार्बन डाइऑक्साइड) इसमें भर जाते हैं तथा इसका रंगा नीला-सा लाल हो जाता है। इसके बाद रक्त शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में पहुंचता है जहां कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से बाहर निकल जाती है। हीमोग्लोबिन के द्वारा ऑक्सीजन के इस प्रकार के लेन-देन का क्रम जीवित अवस्था में लगातार चलता रहता है।
प्लाज्मा (Plasma)
प्लाज्मा रक्त के हल्के पीले रंग के द्रव वाले भाग को कहते हैं। इसके लगभग 90% भाग में जल होता है, 7% भाग में प्रोटीन्स और बाकी बचे 3 % भाग में इलेक्ट्रोलाइटस एमिनो अम्ल, ग्लूकोज, विभिन्न एन्जाइम्स (पाचक रस), हॉर्मोन्स, मेटाबोलिक अवशिष्ट पदार्थ |तथा बहुत से अन्य दूसरे कार्बनिक लवणों के सूक्ष्मांश होते हैं जो प्लाज्मा में घुली हुई अवस्था में रहते हैं। इनके अलावा प्लाज्मा में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन गैस भी घुली होती है।
जल (Water) – रक्त प्लाज्मा में मौजूद जल शरीर की सारी कोशिकाओं और ऊतकों को गीला करके रखता है। जल को बाह्य कोशिकीय और अन्तरकोशिकीय दोनों रासायनिक प्रतिक्रियाओं का विलायक माना जाता है।
प्लाज्मा प्रोटीन्स (Plasma proteins) – प्लाज्मा प्रोटीन्स को एल्ब्यूमिन्स (albumins) फाइब्रिनौजन्स (fibrinogens) और ग्लोबुलिन्स (globulins) में बांटा जा सकता है।
एल्युमिन्स (Albumins) – प्लाज्मा प्रोटीन्स में सबसे अधिक प्रतिशत में पायी जाने वाली प्रोटीन्स एल्ब्युमिन्स होती हैं। ये यकृत में संश्लेषित होती हैं।
एल्युमिन्स प्रोटीन का मुख्य कार्य प्लाज्मा के परासरणी दाब (cosmetic pressure) को सामान्य बनाये रखना है जिससे प्लाज्मा का जल रक्त में रूका रहता है।
यदि प्लाज्मा में एल्यूमिन्स की मात्रा कम जो जाती है तो प्लाज्मा का परासरणी दाब कम हो जाता है और अगर द्रव रक्त प्रवाह से निकलकर आस पास के ऊतकों में जमा हो जाता है, तो इसके कारण शरीर में सूजन हो जाती है जिसे शोफ (0edema) कहते हैं।