हिंदुस्तानी संगीत (Hindustani Music)

भारतीय शास्त्रीय संगीत को मुख्यत: दो भागो में विभाजित किया गया है –

  • हिंदुस्तानी संगीत – यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है।
  • कर्नाटक संगीत – यह मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में प्रचलित है।

दोनों संगीतो का उद्भव भरत मुनि द्वारा लिखित नाट्यशास्त्र से हुआ हैं। हिंदुस्तानी संगीत की शाखा ने शुद्ध स्वर सप्तक (सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि, सां) के पैमाने को अपनाया है।
हिंदुस्तानी संगीत मुख्यतः दो बातों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है –

  • संगीत संरचना
  • इसमें सुधार की संभावनाएं

हिंदुस्तानी संगीत में प्राचीन हिंदू परंपरा, वैदिक दर्शन और फारसी परंपरा के तत्व भी सम्मिलित हैं। यह विभिन्न तत्वों जैसे अरबी, फारसी और अफगानी तत्वों से प्रभावित हुआ है, जिन्होंने हिंदुस्तानी संगीत को एक नया आयाम दिया है।
प्राचीन काल में, यह गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता रहा है।
हिंदुस्तानी संगीत में इस्तेमाल होने वाले संगीत वाद्ययंत्र निम्नलिखित हैं – तबला, सारंगी, सितार, संतूर, बांसुरी और वायलिन।
यह राग प्रणाली पर आधारित है। राग एक माधुर्य पैमाने पर आधारित है जिसमें मूल सात नोट शामिल हैं।

  • हिंदुस्तानी संगीत मुखर पद्यति पर केंद्रित है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से जुड़े प्रमुख मुखर रूप हैं ख्याल, ग़ज़ल, ध्रुपद, धमार, तराना और ठुमरी।

हिंदुस्तानी संगीत में ध्रुपद, ख्याल, टप्पा, चतुरंगा, तराना, सरगम, ठुमरी और रागसागर, होरी और धमार जैसे गायन की दस प्रमुख शैलियाँ हैं।

हिंदुस्तानी संगीत की प्रमुख शैलियाँ (Major Styles of Hindustani Music)

ध्रुपद (Dhrupad)
अकबर के शासनकाल में ध्रुपद राग अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था। अकबर ने बाबा गोपाल दास, स्वामी हरिदास और तानसेन जैसे संगीत गुरुओं को उच्च पदों पर नियुक्त और संरक्षण दिया, यह मुग़ल दरबार के नवरत्नों में सम्मिलित थे।यह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे पुराने और भव्य रूपों में से एक है। ध्रुपद का उल्लेख नाट्यशास्त्र में भी मिलता है।
इसे काव्यात्मक रूप को एक विस्तारित प्रस्तुति शैली में शामिल किया गया है, जो ध्रुपद राग को क्रमबद्ध तरीके से चिह्नित करता है।
मध्य काल में ध्रुपद गायन का एक प्रमुख रूप बन गया, किंतु 18 वीं शताब्दी में इसमें कमी आने लगी। ध्रुपद गायन को मुख्यतः चार रूपों में विभाजित किया जा सकता है :

  • डगरी घराना (Dagri Gharana) – डागर परिवार डानी वाणी में गाता है। यह शैली अलाप पर बहुत जोर देती है।
  • दरभंगा घराना (Darbhanga Gharana) – यह घराना खंडार वाणी और गौहर वाणी गाते हैं। वे राग अलाप पर जोर देते हैं और साथ ही एक सुभेद्य आलाप पर गीतों की रचना करते हैं।
  • बेतिया घराना (Bettiah Gharana) – यह घराना  कुछ अनोखी तकनीकों के साथ नौहार और खंडार वाणी शैलियों का प्रदर्शन करते हैं, जो केवल उन परिवारों में प्रशिक्षित किया जाता है जो जानते हैं।
  • तलवंडी घराना (Talwandi Gharana) – यह घराना खंडार वाणी गाते हैं, लेकिन यह घराना पाकिस्तान में स्थित है, जिस कारण इसे भारतीय संगीत की प्रणाली के भीतर इसे रखना मुश्किल हो गया है।

ख्याल (Khayal)

  • ‘ख्याल’ एक फारसी शब्द से लिया गया है जिसका इसका अर्थ है “विचार या कल्पना”
  • इस शैली के उद्भव का श्रेय अमीर खुसरो को दिया जाता है।
  • यह कलाकारों के बीच लोकप्रिय है क्योंकि यह कामचलाऊ व्यवस्था के लिए अधिक गुंजाइश प्रदान करता है।
  • दो से आठ पंक्तियों तक के लघु गीतों के प्रदर्शनों के आधार पर इसको ‘बंदिश’ के रूप में भी जाना जाता है।
  • ख्याल भी एक विशेष राग और ताल में रचा गया है और इसमें एक संक्षिप्त पाठ है।
  • ग्रंथों में मुख्य रूप से राजाओं की प्रशंसा, ऋतुओं का वर्णन, भगवान कृष्ण के प्रणेता, दिव्य प्रेम और अलगाव के दुख शामिल हैं।
  • ख्याल में प्रमुख घराने सम्मिलित है – ग्वालियर, किराना, पटियाला, आगरा और भेंडीबाजार घराना

Note: इनमें ग्वालियर घराना सबसे पुराना है और इसे अन्य सभी घरानों की माँ के नाम से भी जाना जाता है।
ठुमरी (Thumri)

  • इसका उद्भव  मुख्य रूप से लखनऊ, बनारस और पूर्वी उत्तर प्रदेश में 18 वीं शताब्दी के आसपास हुआ।
  • गायन की एक रोमांटिक और कामुक शैली; जिसे “भारतीय शास्त्रीय संगीत का गीत” भी कहा जाता है। कामुक विषयवस्तु भगवान कृष्ण और राधा के जीवन के विभिन्न प्रकरणों से चित्रण करती है।
  • ठुमरी की रचनाएँ ज्यादातर प्रेम, अलगाव और भक्ति पर होती हैं।
  • ठुमरी के बोल आमतौर पर बृज भाषा में होते हैं, जो प्रेम प्रसंगयुक्त और धार्मिक होते हैं।
  • एक ठुमरी को आमतौर पर ख्याल संगीत कार्यक्रम के अंतिम आइटम के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
  • ठुमरी के मुख्य तीन घराने है – बनारस, लखनऊ और पटियाला।

Note: बेगम अख्तर ठुमरी शैली की सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में से एक हैं।
टप्पा (Tappa)

  • इस शैली में लय बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि यह तेज, सूक्ष्म व जटिल  रचनाओं पर आधारित होती हैं।
  • टप्पा शैली का उद्भव 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्तर-पश्चिम भारत के ऊँट सवारों के लोक गीतों से विकसित हुआ।
  • इस शैली के प्रमुख प्रतिपादक – मियां सोदी, ग्वालियर के पंडित लक्ष्मण राव और शन्नो खुराना।

ग़ज़ल (Ghazal)

  • ग़ज़ल अलगाव और उस दर्द के बावजूद प्यार की सुंदरता की एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति है।
  • इसका उद्भव 10 वीं शताब्दी ईस्वी में ईरान में हुआ।
  • एक ग़ज़ल कभी भी 12 अशआर या दोहे से अधिक नहीं होती है।
  • सूफी फकीरों और इस्लामिक सल्तनत के दरबारों के प्रभाव के कारण 12 वीं शताब्दी में इसका विस्दतार क्षिण एशिया में भी हुआ, तथा मुगल काल में यह अपने शीर्ष बिंदु तक तक पहुंच गया।
  • अमीर खुसरो ग़ज़ल बनाने की कला के प्रथम प्रतिपादकों में से एक थे।
  • ग़ज़ल से जुड़े कुछ प्रसिद्ध व्यक्ति – मुहम्मद इकबाल, मिर्ज़ा ग़ालिब, रूमी (13 वीं शताब्दी), हफ़्ज़ (14 वीं शताब्दी), काज़ी नज़रूल इस्लाम, आदि।

हिंदुस्तानी संगीत के प्रमुख घराने 

  • एक घराना सामाजिक संगठन की एक प्रणाली है जो संगीतकारों या नर्तकों के वंश या शिक्षुता से दर्शाती है, जो एक विशेष संगीत शैली का पालन करते है।
  • गुरु-शिष्य परम्परा पर आधारित होती है, अर्थात् शिष्यों को एक विशेष गुरु के अधीन सीखना, उनके संगीत ज्ञान और शैली को प्रसारित करना होता है।
 
घराना (Gharana) स्थान (Place) संस्थापक (Founder)
ग्वालियर (Gwalior) ग्वालियर (Gwalior) नन्थन खान (Nanthan Khan)
आगरा (Agra) आगरा (Agra) हाजीसुजान खान (Hajisujan Khan)
(Rangeela) आगरा (Agra) फैयाज खान (Faiyyaz Khan)
जयपुर अतरौली (Jaipur Atrauli) जयपुर (Jaipur) अल्लादिया खान (Alladiya Khan)
किराना (Kirana) अवध (Awadh) अब्दुल वाहिद खान (Abdul Wahid Khan)

कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत के मध्य अंतर

  • कर्नाटक संगीत की उत्पत्ति दक्षिण भारत में हुई जबकि हिंदुस्तानी संगीत उत्तर भारत में।
  • यह माना जाता है कि 13 वीं शताब्दी से पहले भारत का संगीत लगभग एक समान था।
  • कर्नाटक संगीत में समरूपता है और हिंदुस्तानी संगीत में एक विषम भारतीय परंपरा है।
  • कर्नाटक संगीत में अधिक धर्मनिरपेक्ष हिंदुस्तानी परंपराओं की तुलना में संयमित और बौद्धिक चरित्र है।
  • हिंदुस्तानी संगीत के प्रमुख मुखर रूप ध्रुपद, ख्याल, तराना, ठुमरी, दादरा और गजल हैं। जबकि कर्नाटक संगीत में कई तरह की विधाएँ हैं जैसे कि अलापाना, निरावल, कल्पनस्वरम, थानम और रागम थनम पल्लवी।
  • हिंदुस्तानी संगीत में लखनऊ, जयपुर, किराना, आगरा आदि विभिन्न घराने हैं, जबकि कर्नाटक संगीत में ऐसा कोई भी घराना नहीं है।

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