उत्तराखंड का इतिहास – प्रागैतिहासिक काल

उत्तराखंड (Uttarakhand) राज्य में विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए पाषाणकालीन उपकरण, गुफा, शैल-चित्र, कंकाल, और  धातुओं के उपकरणों से प्रागैतिहासिक काल में मानव निवास की पुष्टि हुई हैंइस काल के साक्ष्य निम्न स्थलों से प्राप्त हुए है –
लाखु गुफा (Lakhu Cave) –

  • वर्ष 1963 में लाखु उड्यार (Cave) की खोज सुयाल नदी के पूर्वी तट पर डॉ० M.P जोशी द्वारा की गयी, जो अल्मोड़ा के बड़ेछीना (Badechina) के पास दलबैंड (Dalband) पर स्थित हैं, यहाँ मानव और पशुओं के चित्र प्राप्त हुए हैं, जिनमें मुख्यत: सफेद , गेरू , गुलाबी व काले रंगों का प्रयोग किया गया है |
  • यहाँ मानव आकृतियों को समूह में या अकेले नृत्य करते हुए दर्शाया गया है |
  • गुफा के भीतर पशु – पक्षियों का भी चित्रण किया गया है |
  • यह नागफनी के आकार का एक भव्य शिलाश्रय है , जो अल्मोड़ा-पिथौरागढ़  मार्ग पर अल्मोड़ा से 16 K.M दूरी पर स्थित है |

ल्वेथाप (Lvethap) – 

  • अल्मोड़ा (Almora) के ल्वेथाप से प्राप्त शैल-चित्रों में मानव को हाथो में हाथ डालकर नृत्य करते तथा शिकार करते दर्शाया गया हैं
  • यहाँ से लाल रंग से निर्मित चित्र प्राप्त हुए है |

पेटशाला (Petshala)- 

  • अल्मोड़ा के पेटशाला व पुनाकोट (Punakot) गाँव के बीच स्थित कफ्फरकोट (Kaffarkot) से प्राप्त चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं

फलासीमा (Falasima) – 

  • अल्मोड़ा के फलसीमा से प्राप्त मानव आकृतियों में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं

बनकोट (Bankot) –

  •  पिथौरागढ़ के बनकोट से 8 ताम्र मानव आकृतियां मिली हैं

ग्वारख्या गुफा (Gvarkhya Cave) – 

  • चमोली (Chamoli) में अलकनंदा नदी (Alaknanda River) के किनारे डुग्री गाँव (Dugri Village) के पास स्थित इस उड्यार में मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र मिले हैं
  • यहाँ प्राप्त शैल-चित्र लाखु गुफा के चित्रों से अधिक चटकदार है |
  • यहाँ पीले रंग की धारीदार चट्टान पर गुलाबी व लाल रंग से चित्र अंकित किए गए है| इन शिलाश्रयों में  लगभग 41 आकृतियाँ है, जिनमें  30 मानवों की , 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों की है  (Dr. यशोधर मठपाल के अनुसार) |

किमनी गाँव (Kimani Village) –

  •  चमोली में थराली (Tharali) के निकट स्थित  किमनी गाँव की गुफ़ाओं में सफ़ेद रंग से चित्रित हथियार व पशुओं के चित्र मिले हैं

मलारी गाँव (Malari Village) – 

  • चमोली में तिब्बत के निकट स्थित मलारी गाँव में वर्ष 2002 में हजारों साल पुराने नर कंकाल (Skeletons), मिट्टी के बर्तन (Clay Pots), जानवरों के अंग (Animal Organs) और 5.2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण (Gold mask) आदि के अवशेष मिले है|
  • साहित्यकारों के अनुसार यहाँ से प्राप्त नर कंकाल  (Skeletons) और मिट्टी के बर्तन (Clay Pots) लगभग 2000 ई०पू० से लेकर 6 वीं शताब्दी ई०पू० तक के है |
  • Dr. शिव प्रसाद डबराल द्वारा गढ़वाल हिमालय के इस क्षेत्र में शवाधान(Burials) खोजे गए है |
  • यहाँ से प्राप्त बर्तन पाकिस्तान (Pakistan) की स्वात घाटी के शिल्प के समान है |
  • इस स्थल प्रागैतिहासिक पुरातत्व स्थल (Prehistoric archaeological site) की खुदाई गढ़वाल विश्वविद्यालय (Garwal University) के द्वारा वर्ष 2002 कराई गई।

हुडली (Hudali)  – 

  • उत्तरकाशी  (Uttarkashi) के हुडली से प्राप्त शैल चित्रों में नीले रंग (Blue Colour) का प्रयोग किया गया हैं

प्रागैतिहासिक काल में मानव मुख्यत: गुफाओं (Caves) में निवास करता था व उनकी दीवारों पर सुंदर चित्रों से सजाता था | इस काल में मानव अपनी आजीविका के लिए शिकार (Hunting), फलों व कंद-मूल पर निर्भर था, कालांतर में वह आग से भी परिचित हो गया | गढ़वाल के कई क्षेत्रों से चित्रित धूसर मृदभांड भी मिले है|

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