- जन्म – 6 मार्च 1508 ई. (काबुल)
- माता – पिता – माहम बेगम, बाबर
- मूल नाम – नसीरुद्दीन महमूद
- राज्याभिषेक – 6 दिसंबर 1530 (आगरा)
शासक बनने के पश्चात हुमायूँ ने अपने साम्राज्य का विभाजन अपने भाइयों में कर दिया जो उसकी सबसे बड़ी भूल थी | अपने पिता की इच्छानुसार हुमायूँ ने अस्करी को संभल, हिन्दाल को अलवर तथा कामरान को काबुल और कंधार का प्रान्त दिया तथा अपने चचेरे भाई सुलेमान को बदक्शॉ का शासन प्रदान किया |
हुमायूँ के आक्रमण
हुमायूँ ने सर्वप्रथम आक्रमण कालिंजर के विरुद्ध किया | इस समय यहाँ का शासक प्रतापरूद्र देव था जिसने अफगानों को अपने राज्य में शरण दी थी | इस युद्ध संधि वार्ता द्वारा समाप्त हुआ |
1532 ई. में अफगानों (महमूद लोदी) और हुमायूँ के मध्य गोमती नदी के तट पर स्थित दोहरिया नमक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमे महमूद लोदी पराजित हुआ |
गुजरात के शासक बहादुर शाह से संघर्ष (1335 -1336 ई.) में हुमायूँ की विजय हुई किंतु उसकी यह विजय अल्पकालिक समय के लिए थी | क्योंकि वहां की जनता ने बहादुर शाह के समर्थन में विद्रोह कर दिया |
शेर खां से संघर्ष
जुलाई 1537 ई. को हुमायूँ ने चुनार दुर्ग पर घेरा डाला जो शेर खां के अधीन था | यह घेरा 6 माह तक चला अंत में मुग़ल सैनिको ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया |
इसके पश्चात बंगाल के शासक महमूदशाह के निमंत्रण पर हुमायूँ ने बंगाल पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की तथा वहां प्रशासनिक वयवस्था स्थापित की तथा गौड़ का नाम बदलकर जन्नाताबाद रखा |
चौसा का युद्ध
हुमायूँ और शेर खां के मध्य चौसा के तट पर युद्ध हुआ, जिसमे हुमायूँ घायल हो गया और अपने घोड़े के साथ गंगा नदी में कूद गया जहाँ निजाम नामक एक भिश्ती ने अपनी मश्क के द्वारा उसे डूबने से बचाया | आगरा पहुंचने के पश्चात हुमायूँ ने निजाम नामक भिश्ती को आधे दिन के लिए बादशाह घोषित किया | इस युद्ध में विजय के पश्चात ही शेर खां ने स्वयं को सुल्तान घोषित किया और शेरशाह की उपाधि धारण की |
कन्नौज अथवा बिलग्राम का युद्ध (17 मई 1540 ई.)
17 मई 1540 ई. को अफगानो व मुग़ल सेना के मध्य युद्ध हुआ जिसमे मुग़ल सेना पराजित हुई, किन्तु हुमायूँ सफलतापूर्वक भागने में सफल रहा |
हुमायूँ का निर्वासन (1540 – 1555 ई.)
कन्नौज के युद्ध में पराजित होने के पश्चात हुमायूँ आगरा से अपने परिवार व् कोष सहित सिंध पहुंचा | सिंध में हुमायूँ ने अपने भाई हिन्दाल के गुरु मीर अली अकबर की पुत्री हमीदा बानो बेगम से विवाह किया | हुमायूँ ने सहायता प्राप्ति के लिए अमरकोट के राजा राणा वीरसा के महल में शरण ली जिसने थट्टा विजय में हुमायूँ को सहायता का वचन दिया था | अमरकोट में ही 15 अक्टूबर 1542 ई. को मुग़ल सम्राट अकबर का जन्म हुआ |
हुमायूँ की भारत की ओर वापसी
ईरान के शाह की सहायता से हुमायूँ ने पुन: भारत ओर आक्रमण किया, इसके लिए उसने कांधार पर आक्रमण कर वहां के शासक कामरान (अपने भाई) को पराजित कर उस पर अधिकार कर लिया | इसके पश्चात उसे काबुल व बदख्शां पर विजय प्राप्त |
हुमायूँ की पुनर्विजय (1555 ई.)
1553 ई. में शेरशाह के उत्तराधिकारी इस्लामशाह की मृत्यु के पश्चात अफ़ग़ान साम्राज्य का विघटन होने लगा | इस समय पंजाब में सिकंदर सूर , संभल में इब्राहिम सूर, चुनार से बिहार तक आदिलशाह सूर, मालवा में बाजबहादुर तथा बंगाल में मुहम्मद खां सूर स्वतंत्र रूप से शासन रहे थे |
मच्छीवाड़ा का युद्ध (15 मई 1555 ई.)
15 मई 1555 ई. को लुधियाना के निकट मच्छीवाड़ा नामक स्थान पर मुग़लो (हुमायूँ) और अफ़ग़ानों (सिकंदर सूर) की सेना के मध्य युद्ध हुआ, जिसमे अफ़ग़ान पराजित हुए और पंजाब और उसके सीमावर्ती क्षेत्रो पर मुग़लों का अधिकार हो गया |
सरहिंद का युद्ध (22 जून 1555 ई.)
मच्छीवाड़ा के युद्ध में पराजित होने के पश्चात सिकंदर सूर ने एक विशाल सेना हुमायूँ पर आक्रमण किया | 22 जून 1555 ई. को हुमायूँ व सिकंदर सूर के मध्य सरहिंद के निकट युद्ध हुआ, जिसमें सिकंदर सूर पराजित हुआ और भारत में मुगलों की सत्ता पुन: स्थापित हो गयी |
हुमायूँ की मृत्यु
जनवरी 1556 ई. में पुस्तकालय की सीढ़ियों गिरकर हुमायूँ की मृत्यु हो गयी | इस सम्बन्ध में लेनपूल ने लिखा है कि “हुमायूँ जीवनभर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाते हुए ही उसकी मृत्यु हो गयी” । हुमायूँ की मृत्यु के पश्चात राज्य में विद्रोह या अशांति फैलने की आशंका से हुमायूँ की मृत्यु के समाचार को 17 दिनों तक गुप्त रखा गया, तथा हुमायूँ के स्थान पर उसकी मिलती जुलती आकृति के मुल्ला बेकसी नामक व्यक्ति को सही लिबास पहना कर महल की छत से जनता को दर्शन कराए।