सिकन्दर लोदी की मृत्यु के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र इब्राहिम लोदी 22 नवम्बर, 1517 ई० को शासक बना। यह लोदी वंश का अन्तिम शासक था। 1526 ई० में पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर व इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ, जिसमें बाबर विजयी हुआ, और भारत में मुगल वंश की स्थापना की।
इब्राहिम लोदी के समय की मुख्य विशेषता उसका अपने अफगान सरदारों से संघर्ष था। इब्राहिम लोदी को सभी अफगान सरदारों ने सर्वसम्मति से शासक बनाया, किन्तु अमीरों को राजनीतिक सत्ता एक हाथों में केन्द्रित होना पसंद नहीं था। अतः उन्होंने साम्राज्य को दो भागों में विभाजित किया –
- दिल्ली, (इब्राहीम लोदी के अधीन)
- जौनपुर (इब्राहिम लोदी के छोटे भाई जलाल खाँ के अधीन)
जलाल खाँ से हुए संघर्ष में इब्राहिम लोदी ने उसे पराजित कर जौनपुर पर भी अधिकार कर लिया।
ग्वालियर विजय (1517-1518 ई०) –
इब्राहिम लोदी द्वारा ग्वालियर पर आक्रमण के समय ग्वालियर का शासक विक्रमजीत (राजा मान सिंह का पुत्र) था। विक्रमजीत ने, आत्मसमर्पण कर दिया तथा इब्राहिम लोदी ने शमशाबाद की जागीर राजा विक्रमजीत को प्रदान की गयी।
मेवाड़ अभियान –
राजस्थान में मेवाड़ सबसे शक्तिशाली राज्य था जहाँ सिसोदिया राजपूतों का शासन था। इस समय यहाँ का शासक संग्राम सिंह (राणा सांगा) था। 1517 – 18 ई० में ग्वालियर के निकट खतौली में राणा सांगा व इब्राहिम लोदी की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें किसी भी पक्ष को विजय प्राप्त नहीं हुई। बाद में राणा सांगा ने चंदेरी पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।
पानीपत का प्रथम युद्ध
दौलत खां लोदी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया, किन्तु इससे पूर्व ही बाबर को राणा सांगा का भी आमंत्रण मिल चुका था तथा इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ लोदी ने भी दिल्ली का ‘सिंहासन प्राप्त करने के लिए बाबर से सहायता मांगी। बाबर ने आमंत्रण स्वीकार कर 1524 ई० में लाहौर पर आक्रमण किया तथा इब्राहिम लोदी की एक सैन्य टुकड़ी पराजित कर लाहौर पर अधिकार कर लिया।
12 अप्रैल, 1526 को बाबर पानीपत के मैदान में युद्ध के लिए पहुँचा। इस समय तक इब्राहिम लोदी की स्थिति दुर्बल हो चुकी थी तथा सम्पूर्ण पूर्वी भारत का राज्य उसके हाथ से निकल चुके थे। अत: 21 अप्रैल, 1526 ई० बाबर तथा इब्राहीम लोदी के मध्य पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ। जिसमें इब्राहिम लोदी पराजित हुआ और मारा गया।
Note: “इब्राहीम लोदी दिल्ली सल्तनत का एकमात्र एकमात्र शासक था जो युद्ध भूमि में मारा गया”।
पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर की विजय में प्रमुख योगदान तुलगमा पद्यति, उस्मानी पद्यति (दो गाड़ियों के मध्य उसमे तोपों को रखकर चलाने की पद्यति) तथा तोपखानों प्रयाग को था।
अफगानों का राजत्व सिद्धान्त
अफगानों (लोदियों) का राजत्व सिद्धान्त तुर्कों के निरंकुश व स्वेच्छाचारी सिद्धान्त से भिन्न अफगान सरदारों की समानता पर आधारित था। उनका शासन व्यवस्था राजतंत्रीय न होकर कुलीनतंत्रीय थी। अफगान सरदार, सुल्तान को अपने में से ही एक बड़ा सरदार मानते थे। उसे दैवत्व का अंश नहीं मानते थे।
Hi friend