- 14 जनवरी 1948 को टिहरी के राजा नरेन्द्रशाह को अपदस्थ कर टिहरी में प्रजातंत्र की स्थापना की गयी।
- 6 फरवरी 1820 प्रसिद्ध पर्यटक मूरकास्ट अपने दल के साथ टिहरी पहुंचा था।
- 4 मार्च 1820 को ईस्ट इंडिया कंपनी के गर्वनर जनरल द्वारा सुदर्शनशाह को गढ़वाल रियासत के राजा के रूप में स्थाई मान्यता दी गयी।
- मेजर प्रियसन, उत्तराखंड के प्रथम वन संरक्षक थे।
- सुदर्शनशाह द्वारा सभासार ग्रंथ व सर्वग्रहशास्त्र की रचना की गयी।
- वर्ष 1858 में भागीरथी नदी पर लकड़ी के पुल का निर्माण किया गया, जो वर्ष 1924 में आयी बाढ़ में बह गया।
- पंवार वंश का शासक जयकृतशाह अपने राज्य में हो रहे षड्यंत्रों और दरबारियों से परेशान होकर देवप्रयाग चला गया था।
- 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारतीय संघ में विलय हुआ।
- 5 भाई कठैतों द्वारा चुलकर नामक कर लगाया था, अर्थात जिसके घर में जितने चुल्हे थे उन्हें उतना कर देना होता था। पुरिया नैथाणी द्वारा इन पांच भाई कठैतों की हत्या करवायी गयी थी।
- स्यूडां सूपा कर – इस कर के अंतर्गत जिनके घर में जितनी महिलाएँ होती थी उन्हें उतना ही कर देना होता था।
- पुरिया नैथाणी को गढ़वाल का नाना फडणवीस के नाम से भी जाना जाता है। पुरिया नैथाणी को ही गढ़वाल से जजिया कर समाप्त करने के लिए अकबर के दरबार में भेजा गया था।
- पंवार वंश के शासक कीर्तिशाह द्वारा टिहरी में लोक निर्माण विभाग (PWD) की स्थापना की गयी।
- लक्ष्मीचंद ने मानशाह के शासनकाल में गढ़वाल पर 7 बार आक्रमण किए।
- जहांगीर द्वारा भरत कवि को ज्योतिकराय की उपाधि दी गयी थी, जिसके पश्चात मानशाह द्वारा भरत कवि को अपने दरबार में राजकवि की उपाधि दी तथा भरत कवि द्वारा मानोदय काव्य की भी रचना की गयी।
- रघुनाथ मंदिर (देवप्रयाग) से पंवार वंश के शासक जगतपाल का वर्ष 1455 में लिखित ताम्रपत्र मिला है।
- वर्ष 1902 में कीर्तिशाह के शासनकाल में स्वामी रामतीर्थ, टिहरी की यात्रा पर आये थे।
- अंग्रेज व्यापारी विलियम फिंच, मानशाह के शासन काल में गढ़वाल की यात्रा पर आया था।
- काशीपुर में भगवान बुद्ध के केश (Hair) व नख (Fingernail) सुरक्षित रखे गये हैं।
- देहरादून जनपद में जहांगीर के मकबरे की शैली के सामान गुरूद्वारे का निर्माण किया गया है।
गढ़वाल क्षेत्र में ब्राह्मण जातियों को मुख्यतः 3 भागों में विभाजित किया गया है –
- सरोला ब्राह्मण
- गंगाड़ी ब्राह्मण
- नाना ब्राह्मण
सरोला ब्राह्मण और गंगाड़ी ब्राह्मण 8 वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान मैदानी भागों से उत्तराखंड में आए थे, इनमें से सरोला ब्राह्मण, पंवार शासकों के राज पुरोहित थे।