झूठा मंदिर, कुमाऊं मंडल में चंपावत जिले के प्रवेश द्वार टनकपुर में स्थित है। यह मंदिर मां पूर्णागिरि मंदिर से 1 K.M पहले स्थित है। टनकपुर को मिस्टर टलक द्वारा बसाया गया था।
झूला देवी मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित है।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित वैष्णवी देवी मंदिर में प्रतिवर्ष टोकरिया मेले का आयोजन किया जाता है।
उत्तराखंड के देवीधुरा में स्थित बाराही मंदिर में एक त्रिभुजाकार पाषाणी गुफा है, जिसे गभोरी गुफा के नाम से जाना जाता है। बाराही मंदिर (देवीधुरा) में ही प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के दिन बग्वाल मेले का आयोजन किया जाता है।
चन्द्र शेखर लोहनी का जन्म उत्तराखंड के सतराली गांव (अल्मोड़ा) में हुआ था। इनके द्वारा लेन्टाना (कुरी घास) को ख़त्म करने की विधि खोजी गयी।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences – ARIES) उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है। इसे राजकीय वैधशाला के नाम से भी जाना जाता है।
शैलेश मटियानी द्वारा विपक्ष और जनपक्ष नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया था।
कार्तिक स्वामी मंदिर, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है।
पद्यमदेव द्वारा बद्रीनाथ मंदिर के लिए भूमि दान में दी गयी थी। गढ़वाल में मंदिरो को दान दी गयी भूमि को गूंठ भूमि कहा जाता है, जिसका उपयोग मंदिर के खर्चो को पूर्ण करने के लिए किया जाता था।
विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित दरबान सिंह नेगी के गांव का नाम कफारतीर था।
विद्या सागर नौटियाल द्वारा यमुना के बागी बेटे नामक उपन्यास की रचना की गयी थी। यह उपन्यास रवाई कांड (तिलाड़ी कांड) पर आधारित है।
भोटिया जनजाति के शीतकालीन आवास को मुनसा कहा जाता है।
ठकुरानाच
यह थारू समाज में पुरुषों द्वारा किया जाने वाला एक प्रमुख नृत्य है। ठकुरानाच में पुरुषों द्वारा महिलाओं की वेशभूषा पहनकर नृत्य किया जाता हैं।
ठठोला
चंद शासकों के शासनकाल में पशुओं के रहने के स्थान को ठाठ कहा जाता था तथा पशुओं और उनके रहने के स्थान (ठाठ) की देखरेख के लिये नियुक्त अधिकारी को ठठोला कहा जाता था।
ठरपूजा
यह उत्सव उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में प्रत्येक तीसरे व पांचवे वर्ष में मनाया जाता है। दीपावली के समय मनाया जाने वाला यह उत्सव गांव व परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता है।
ठुलखेल
यह नृत्य मुख्य रूप से पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट क्षेत्र में प्रचलित है। ठुलखेल नृत्य कुमाऊँ क्षेत्र में प्रचलित झोड़ा व चांचरी के ही सामान है।
डहोत्सव
इस मेले का आयोजन पाली पछाऊँ (अल्मोड़ा) में पश्चिमी रामगंगा नदी के तटवर्ती क्षेत्रों में किया जाता है। इस मेले में सामूहिक रूप से मछली पकड़ने का कार्य किया जाता है।