उत्तराखंड से संबंधित प्रमुख तथ्य (Part 40)

खड़दिया एक प्रकार की पूजा पद्यति है, जिसमें रात भर खड़े होकर हाथ में घी का दिया जलाकर संतान की प्राप्ति हेतु मन्नत माँगी जाती है।
मंजूघोशेखर महादेव मंदिर, उत्तराखंड के पौड़ी जनपद में कामदाह पर्वत पर स्थित है। मंजूघोशेखर महादेव मंदिर में ही प्रत्येक वर्ष काण्डा मेले का आयोजन किया जाता है।
ठुलखेल गीत, कुमाऊं जनपद में भाद्रमास में गाया जाता है, जिसमें ठुलखेल गीत के साथ-साथ कई पौराणिक खेल भी खेले जाते है।
सारा पर्व, उत्तराखंड में मनाया जाने वाला त्यौहार है, जिसमें गांव को बीमारियों, सूखा, प्राकृतिक आपदाओं आदि से बचाने के लिए पूजा अर्चना की जाती है।
अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएं वर्तमान में लंदन संग्रहालय में रखी गयी है।
त्रिभुवन राज का शिलालेख, बागेश्वर से प्राप्त हुआ है।
देहरादून में स्थित टेगोर विला (Tagore Villa) में रासबिहारी बोस द्वारा गुप्त रूप से क्रांतिकारी सभाएँ करते थे।
पत्तेबाजी, धुस्मा, धुमसु, जैन्ता, गुण्डिया रासों, तांन्दी, छाँडा, डन्डियाला, बराडी, पाण्डवकला आदि नृत्य जौनसारी जनजाति द्वारा किये जाते है।
केदार पत्ती/ नैरपत्ती उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र केदारनाथ में पाया जाने वाला एक झाड़ीनुमा औषधीय पौधा है। केदारपत्ती और आलू , कस्तूरी मृग का प्रिय भोजन है।
जैलंग पर्वत (Jalang mountain) उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित है।
पर्वतीय समाचार पत्र, उत्तराखंड का प्रथम दैनिक समाचार पत्र था। जिसका प्रकाशन वर्ष 1953 में नैनीताल से किया जाने लगा।
कुलसारी का सूर्य मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित है।
बाजपुर नगर, धुमा नदी के तट पर स्थित है।
उत्तराखंड में उपजाऊ व सिंचित भूमि को केदार भूमि भी कहा जाता है।
वर्ष 1966 में जयमल सिंह द्वारा सैनिक स्कूल, घोड़ाखाल की स्थापना की गयी थी।
वर्ष 1972 ई. में उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में भूमि संबंधी सीलिंग कानून लागू किया गया।
शिवदत्त जोशी को कुमाऊं की राजनीति का कौटिल्य/ चाणक्य कहा जाता है।

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