इस्लाम धर्म (Islam religion)

इस्लाम शब्द का अर्थ  – “अल्लाह को समर्पण” अर्थात् वह व्यक्ति मुसलमान  है, जिसने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया। अर्थात्  इस्लाम धर्म के नियमों का अनुसरण करने लगा।

इस्लाम धर्म के आधारभूत सिद्धांत (Basic Principles of Islam)

अल्लाह को सर्वशक्तिमान, एकमात्र ईश्वर और जगत का पालक और हजरत मुहम्मद को उनका संदेशवाहक या पैगम्बर माना गया है।
इस्लाम धर्म अवतारवाद, मूर्तिपूजा तथा जात-पात का विरोधी है, किन्तु यह कर्मकाण्ड को मान्यता देता है, परंतु पुर्नजन्म का सिद्धांत इस्लाम धर्म में मान्य नहीं है।
इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाला प्रारम्भिक संगठित समुदाय “उम्मत” कहलाता था जो कि इस्लामी राज्य का केन्द्र बिन्दु था।
इस्लाम धर्म एक एकेश्वरवादी धर्म है, जिसके अनुसार अल्लाह की शिक्षाओं को अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा इंसानों तक पहुंचाया गया। अंतिम ईश्वरीय किताब कुरान की शिक्षा पर स्थापित है.

 इस्लाम धर्म के 5 प्रमुख स्तम्भ –

  1. कलमा – अल्लाह एवं उसके रसूल में विश्वास करना।
  2. नमाज – प्रत्येक मुसलमान को प्रतिदिन 5 बार नमाज (प्रार्थना) पढ़नी चाहिए।
  3. जकात – यह स्वेच्छा से दिया जाने वाला कर है। इस्लाम धर्म के अनुसार प्रत्येक मुसलमान को अपनी आय का 1/40 भाग (2.5%) प्रतिवर्ष दान करना होगा। जकात को बल प्रयोग के आधार पर वसूल करना इस्लाम के धर्मविरुद्ध था। एक निर्धारित मात्रा से अधिक सम्पत्ति का स्वामी होने पर भी जकात देना पड़ता था। इस सम्पत्ति की न्यूनतम मात्रा को “निसाब” कहते थे।
  4. रोजा – इस्लामी कैलेण्डर के नवें महीने (पवित्र माह) में मुस्लिम समुदाय द्वारा रोजा (व्रत) रखा जाता है। मुस्लिमों धर्म के अनुसार इस माह की 24 वीं रात “शब-ए-क़द्र” को क़ुरान का नुज़ूल (अवतरण) हुआ।
  5. हज – प्रत्येक मुस्लिम को अपने जीवनकाल में मक्का की तीर्थयात्रा करनी चाहिए।

Note –

  • मुगल बादशाह अकबर द्वारा दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं पर जकात को समाप्त कर  कर दिया तथा उसके उत्तराधिकारी जहांगीर ने आयात-निर्यात पर जकात (2%) को समाप्त किया था।
  • सदका भी एक प्रकार का जकात था जो कि किसी विशेष दिन या त्यौहारों पर वसूल किया जाता था।

इस्लाम धर्म की शासन व्यवस्था 

इस्लामिक राज्य एक धर्मप्रधान राज्य था, जिसमें कुरान को ही राज्य का संविधान माना जाता था। यह राज्य शरीयत के अनुकूल होना चाहिए  था।
शरीयत की व्याख्या हेतु 4 विचारधाराओं का विकास हुआ –

  1. मालकपंथी,
  2. शफीपंथी,
  3.  हनबलपंथी
  4. हनीफापंथी

इसमें से केवल अबुहनीफा का हनीफी सम्प्रदाय ही इस्लामी राज्य में जिम्मियों के रूप में रहने की अनुमति प्रदान करता है। दिल्ली सल्तनत की वित्तीय नीति हनीफी सम्प्रदाय द्वारा प्रस्तुत कराधान के सिद्धांतों पर आधारित थी।
इस्लामिक राज्य में जब कोई व्यक्ति शरीयत का पालन नहीं करता था, तो उसके विरुद्ध फतवा जारी किया जाता था।
कुरान, हदीस, इज्मा, एवं कयास का समुच्चय शरीयत कहलाता है। यही शरीयत मुस्लिम राज्य में न्याय का प्रमुख स्रोत भी हैं।

हजरत मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात इस्लाम का विभाजन 

हजरत मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात इस्लाम धर्म दो भागों में विभाजित हो गया –

  1. शिया
  2. सुन्नी

सुन्नी 

वह मुस्लिम जो जो सुन्ना में विश्वास रखते हैं, उन्हें सुन्नी कहा जाता है। सुन्ना हजरत मुहम्मद के कथनों और कार्यों का विवरण है।

शिया 

वह मुस्लिम जो हजरत मुहम्मद के दामाद अली की शिक्षाओं में विश्वास रखते हैं और उन्हें हजरत मुहम्मद का उत्तराधिकारी मानते थे, उन्हें शिया कहा जाता है।

इस्मलाम धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण शब्दावली 

कुरान – कुरान शब्द का उद्भव इकरा (पाठ करो) से हुआ है जिसे इल्म-ए-अल्लाह ईश्वर का शब्द  कहा जाता है। इसमें कुल 114 सुरा (अध्याय या पंक्तियां) हैं।
सुन्ना या हदीस – यह हजरत मुहम्मद पैगम्बर साहब के जीवनकाल से जुड़ी घटनाएँ  हैं जिसके अतंर्गत उनके स्मृत शब्द और क्रियाकलाप आते हैं।
कियास – सदृशता के आधार पर तर्क।
इजमा – इस्लाम के धर्माचार्यों के मध्य मतैक्य पर आधारित मत होते हैं। इसे समुदाय की सहमति के रूप में भी परिभाषित किया जाता है। मोटे तौर पर मुजतहिद अर्थात् विधिशास्त्री द्वारा व्याख्या किया गया कानून इजमा कहलाता था।
गाजी – इसका अर्थ विधर्मियों (अन्य धर्म के लोगों) का कत्ल करने वाला होता है। गाजी सुल्तान की सेना में स्वयंसेवक के रूप में भर्ती होते थे। इनको राज्य द्वारा कोई नियमित वेतन न मिलकर ख़ुम्स (युद्ध में प्राप्त लूट का माल) में से हिस्सा मिलता था। गाजी योद्धा होने के साथ-साथ धर्म का भी रक्षक होता था, जिसके ऊपर इस्लाम की रक्षा एवं प्रसार का दायित्व था।
गाजी की उपाधि धारण करने वाले प्रमुख मुस्लिम शासक 

  • महमूद गजनवी ने गाजी की उपाधि धारण की थी।
  • गियासुहीन तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने “गाजी” की उपाधि धारण की थी।
  • बहलोल लोदी ने 1451 ई. में  “गाजी” की उपाधि धारण की।
  • बाबर ने मार्च 1527 ई. को खानवा के युद्ध में विजय के पश्चात् गाजी की उपाधि धारण की।

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