उत्तराखंड से संबंधित प्रमुख तथ्य (Part 33)

कालसी, देहरादून में यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित है, जहाँ पर सम्राट अशोक का 13 वां शिलालेख स्थित है। कालसी को कालकूट के नाम से भी जाना जाता है।
नीलकंठ पर्वत को गढ़वाल की रानी के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तरकाशी घाटी में रहने वाले लोगो को सोसा रॅगपा के नाम से भी जाना जाता है।
सुरेन्द्र सिंह पांगती द्वारा कितना सच कितना छल नामक पुस्तक की रचना की गयी।
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलते समय किए जाने वाले दर्शन को ज्योति दर्शन कहा जाता है।
गोपाल सिंह राणा को टिहरी में आधुनिक किसान आंदोलन का जनक कहा जाता है।
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित मलारी गाँव से वर्ष 1956 में शवाधान की खोज हुई है। इस क्षेत्र में शवाधान की खोज शिव प्रसाद डबराल द्वारा की गई थी।
कमलेन्दुमती शाह द्वारा जीवन ज्योति नामक पुस्तक की रचना की गयी थी।
हनुमान गढ़ी पर्यटक स्थल उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है।
खोखरे का टीला उत्तराखंड के काशीपुर नगर में अवस्थित है।
उत्तराखंड के रहने वाले इन्द्र सिंह गढ़वाली, मद्रास बम कांड में सम्मिलित थे।
चन्द्रकुंवर बर्त्वाल द्वारा मेघ नंदिनी नामक हिंदी कविता की रचना की गयी।
हर्ष चरित्र में नंदा देवी राजजात यात्रा का उल्लेख किया गया है।
बूढा केदार, को कैला पीर के नाम से भी जाना जाता है।
वर्ष 1992 में पौड़ी को हिल स्टेशन घोषित किया गया था।
हिरण-चितल नामक नृत्य का संबंध उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से है। यह नृत्य पिथौरागढ़ जिले में आयोजित होने वाले हिलजात्रा महोत्सव में किया जाता है।
पंवार वंश के शासक कीर्तिशाह द्वारा टिहरी रियासत में जच्चा-बच्चा केन्द्र की स्थापना की गयी थी।
ब्रिटिश कमिश्नर ट्रेल द्वारा उत्तराखंड में आठ आने’ का टिकट लगाने की शुरुआत की गयी थी।
“100 गज जंजीर” मापन प्रणाली की शुरूआत बैकेट द्वारा की गई थी।
सेरा खड़कोट अभिलेख चंद वंश के शासक ज्ञानचंद से संबंधित है। इस अभिलेख में ज्ञानचंद को राजधिराज महाराजा कहा गया है।

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