केंद्र सरकार ने लगभग 800 वर्षीय पुराने कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा को पुनर्स्थापित और संरक्षित करने का निर्णय लिया है।
पूर्व में किये गए संरक्षण के प्रयास
- इससे पूर्व वर्ष 1903 में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा, सूर्य मंदिर कि बाहरी सतह पर पत्थर की नक्काशी को मंदिर के अनूठे नुकसान के कारण रेत से भर गया था और इस संरचना को संरक्षित करने के लिए के लिए इसे भारतीय पुरातत्व व् सर्वेक्षण विभाग (ASI) को सौंप दिया गया था।
- रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान ने 2013 से 2018 तक मंदिर की संरचनात्मक स्थिरता के साथ-साथ भरे हुए रेत की स्थिति का पता लगाने के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन किया था।
कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिम्हदेव प्रथम (1238-1264AD) ने 13 वीं शताब्दी में किया था और यह पवित्र नगरी पुरी के पास पूर्वी ओडिशा में स्थित है।
राजा नरसिम्हदेव प्रथम, गंग राजवंश (Gang dynasty) के एक प्रसिद्ध शासक थे और राजा नरसिम्हदेव के सिंहासन पर बैठने के साथ ही गंगा राजवंश (Ganga dynasty) अपने चरमसीमा पर पहुँच गया।
वर्ष 1984 में कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) में शामिल किया गया।
यह सूर्य देव को समर्पित मंदिर है। कोणार्क ओडिशा मंदिर वास्तुकला की परिणति है, और दुनिया में धार्मिक वास्तुकला के सबसे उत्कृष्ट स्मारकों में से एक है।
कोणार्क सूर्य मंदिर की वास्तुकला, गंग राजवंश (Gang dynasty) की शक्ति और स्थिरता के साथ-साथ ऐतिहासिक विरासतों की मूल्य प्रणालियों का प्रतिनिधित्व करता है।
पूरे सूर्य मंदिर को 7 घोड़ों और 24 पहियों के साथ एक विशाल रथ के आकार में डिजाइन किया गया था, जो सूर्य देवता को आकाश में ले जाता हुआ प्रतीत होता है।
‘कोणार्क’, यह स्थान दो विश्व तत्वों से बना एक नाम है –
- कोना अर्थात कॉर्नर (KONA meaning Corner)
- ARKA अर्थात सूर्य (ARKA meaning the Sun)
अर्क क्षेत्र (Ark Kshetra) में पूजे जाने वाले सूर्य देव को कोणार्क भी कहा जाता है।
‘ब्रह्म पुराण (Brahma Purana)’ में अर्क-क्षत्र में सूर्य देव को कोणादित्य (Konaditya) के रूप में वर्णित किया गया है।
वैदिक काल से ही भारत में सूर्य एक लोकप्रिय देवता रहे हैं।