मोस्टामानू/मोष्टामानु मेला
- यह एक ऐतिहासिक मेला है, जिसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। मोस्टामानू (मोस्टामाणू) को बारिश के देवता के रूप में भी जाना जाता है।
- भगवान मोस्टामानू को इन्द्र भगवान के मामा के रूप में भी जाना जाता हैं।
- यह मेला प्रतिवर्ष नाग पंचमी के दिन लगता है।
गंगोलीहाट का मेला
यह मेला प्रतिवर्ष गंगोलीहाट के हाट कालिका मंदिर में शारदीय नवरात्रों की अष्टमी को आयोजित किया जाता है।
गबला देव मेला
- यह मेला पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी के दांतू गांव में आयोजित किया जाता है।
- शौका/भोटिया जनजाति द्वारा इन्हें इष्ट देव के रूप में पूजा जाता है।
थल मेला
- यह मेला प्रतिवर्ष बैसाखी के दिन रामगंगा नदी के तट पर आयोजित किया जाता है।
- थल मेले को मानने की शुरुआत 13 अप्रैल, 1940 को की गयी। यह मेला जलियावाला बाग नरसंहार की स्मृति में शुरू किया जाता है।
मलयनाथ का मेला
- यह मेला प्रतिवर्ष डीडीहाट के प्रसिद्ध सिरकोट मलयनाथ मंदिर में आश्विन माह की कृष्ण चतुर्दशी को आयोजित किया जाता है।
- मलयनाथ, द्योत्वुला के भागलिंग के पुत्र के रूप में पूरे क्षेत्र में पूजनीय है।
कनरा का मेला
- इस मेले का आयोजन प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष की शुक्ल चतुर्दशी को आयोजित किया जाता है।
- इस मंदिर को माँ कोकिला देवी, माँ भगवती देवी, माँ कोटगाड़ी देवी के नाम से भी जाना जाता है।
- यह गोरीछाल पट्टी, तहसील, धारचूला में आयोजित किया जाता है।
- माँ कोकिला के मंदिर को न्याय के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
जौलजीबी का मेला
- इस मेले की शुरूआत वर्ष 1914 में गजेन्द्र बहादुर पाल द्वारा की गयी थी। गजेन्द्र बहादुर अस्कोट के पाल तालुकदार थे।
- वर्ष 2007 में जौलजीबी मेले को उत्तराखंड पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय, द्वारा गोद लिया गया। वर्ष 2014 में इस मेले के 100 वर्ष पूर्ण होने पर इसे राजकीय मेला घोषित किया गया।
Note: पाल तालुकदारों द्वारा पिथौरागढ़ जिले में अन्नपूर्णा देवी एवं जौलेश्वर महादेव के मंदिरों का निर्माण भी करवाया गया था।