भारत के प्रमुख जनजातीय क्षेत्र (Major Tribal Areas of India)

वर्ष 1960 ई. में चंदा समिति की रिपोर्ट के आधार पर अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत किसी भी जाति या समुदाय को सम्मिलित किए जाने के मुख्य 5 मानक निर्धारित किए थे। भारत में कुल 461 जनजातियाँ हैं जिनमें से 424 अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आती हैं। इन्हें सात क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है –

उत्तरी क्षेत्र 

इसके अंतर्गत, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश की जनजातियाँ शामिल हैं। इन जनजातियों में लाहुल, लेपचा, भोटिया, थारू, बुक्सा, जौनसारी, खम्पा, कनौटा आदि प्रमुख हैं। इन सभी में मंगोल प्रजाति के लक्षण मिलते हैं।
भोटिया अच्छे व्यापारी होते हैं एवं चीनी-तिब्बती परिवार की भाषा बोलते हैं।

पूर्वोत्तर क्षेत्र

असम, अरूणाचल, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम की जनजातियाँ इनके अंतर्गत आती हैं। दार्जिलिंग व सिक्किम में लेपचा, अरूणाचल में आपतानी, मिरी, डफला व मिश्मी, असम-मणिपुर सीमावर्ती क्षेत्र में हमर जनजाति, नागालैंड व पूर्वी असम में नागा, मणिपुर, त्रिपुरा में कुकी, मिजोरम में लुशाई आदि जनजातियाँ निवास करती हैं।
अरूणाचल के तवांग में बौद्ध जनजातियां मोनपास, शेरदुकपेंस और खाम्पतीस रहती हैं। नागा जनजाति उत्तर में कोनयाक, पूर्व में तंखुल, दक्षिण में कबुई, पश्चिम में रेंगमा व अंगामी एवं मध्य में लहोटा व फोम आदि उपजातियों में बंटी हुई हैं।
मेघालय में गारो, खासी व जयंतिया जनजातियाँ मिलती हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र की सभी जनजातियों में मंगोलायड प्रजाति के लक्षण मिलते हैं। ये तिब्बती, बर्मी, श्यामी एवं चीनी परिवार की भाषा बोलती हैं। ये खाद्य संग्राहक, शिकारी, कृषक एवं बुनकर होते हैं।

पूर्वी क्षेत्र  

इसके अंतर्गत, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा व बिहार की प्रमुख जनजातियाँ आती हैं। जुआंग, खरिया, खोंड, भूमिज ओडिशा (Odisha) में निवास करने वाली जनजातियाँ तथा मुंडा, उरांव, संथाल, हो, बिरहोर झारखंड (Jharkhand) में निवास करने वाली जनजातियाँ हैं।
पश्चिम बंगाल में मुख्यतः संथाल, मुंडा व उरांव जनजातियाँ मिलती हैं। ये सभी जनजातियाँ प्रोटो-आस्टेलायड प्रजाति से सम्बंधित हैं। इनका रंग काला अथवा गहरा भूरा, सिर लंबा, चौडी-छोटी व दबी नाक व बाल हल्के घुंघराले होते हैं।
ये ऑस्ट्रिक भाषा परिवार के हैं तथा कोल व मुंडा भाषा बोलते हैं।

मध्य क्षेत्र

इसके अंतर्गत, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश, पश्चिमी राजस्थान व उत्तरी आंध्रप्रदेश की जनजातियाँ आती हैं। छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियाँ गोंड, बैगा, मारिया तथा अबूझमारिया हैं।
मध्य प्रदेश के मंडला जिले व छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में इनका सकेन्द्रण अधिक है। पूर्वी आंध्रप्रदेश में भी ये जनजातियाँ मिलती हैं।
ये सभी जनजातियाँ प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति से सम्बंधित हैं।

पश्चिमी भाग  

इसके अंतर्गत, गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र की जनजातियाँ आती हैं। भील, गरासिया मीना, बंजारा, सांसी व सहारिया राजस्थान में निवास करने वाली जनजातियाँ  तथा महादेव, कोली, बाली व डब्ला गुजरात एवं पश्चिमी मध्यप्रदेश में निवास करने वाली जनजातियाँ है।
ये सभी जनजातियाँ प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति की हैं तथा आस्ट्रिक भाषा परिवार की बोलियाँ बोलती हैं।

दक्षिणी क्षेत्र 

इसके अंतर्गत मध्य व दक्षिणी पश्चिमी घाट की जनजातियाँ आती हैं जो 20° उत्तरी अक्षांश से दक्षिण की ओर फैली हैं। पश्चिमी आंध्रप्रदेश, कनार्टक, पश्चिमी तमिलनाडु और केरल की जनजातियाँ इसके अंतर्गत आती हैं। नीलगिरि के क्षेत्र में टोडा, कोटा व बदागा सबसे महत्वपूर्ण जनजातियाँ है।
टोडा जनजाति में बहुपति प्रथा प्रचलित है।
कुरूम्बा, कादर, पनियण, चेचू, अल्लार, नायक, चेट्टी आदि जनजातियाँ दक्षिणी क्षेत्र की अन्य महत्वपूर्ण जनजातियाँ हैं। ये नीग्रिटो प्रजाति से संबंधित हैं। ये द्रविड़ भाषा परिवार में आते हैं।

द्वीपीय क्षेत्र 

इसके अंतर्गत अंडमान-निकोबार एवं लक्षद्वीप समूहों की जनजातियाँ आती हैं। अंडमान-निकोबार की शोम्पेन, ओगे, जारवा व सेंटीनली महत्वपूर्ण जनजातियाँ हैं जो अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं। ये सभी नीग्रिटो प्रजाति से संबंधित हैं। मछली मारना, शिकार करना, कंदमूल संग्रह आदि इनके जीवनयापन का आधार हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Latest from Blog

UKSSSC Forest SI Exam Answer Key: 11 June 2023

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा आयोग (Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा 11 June 2023 को UKPSC Forest SI Exam परीक्षा का आयोजन…