उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियाँ
यहाँ की प्रमुख जनजातियाँ भोटिया, थारू, बुक्सा, जौनसारी, राज शौका, खरवार और माहीगीर हैं। उत्तराखंड के नैनीताल में जनजाति की संख्या सर्वाधिक है। उसके बाद देहरादून का स्थान आता है।
थारू — ये नैनीताल से लेकर गोरखपुर एवं तराई क्षेत्र में निवास करती हैं जो किरात वंश की हैं। इनमें संयुक्त परिवार प्रथा है। परिवार ऐसे भी हैं, जिनमें सदस्यों की संख्या पाँच सौ तक है।
बोक्सा — यह जनजाति उत्तराखंड के नैनीताल, पौडी, गढ़वाल देहरादून जिलों में निवास करती है। इनका संबंध पतवार राजपूत घराने से माना जाता है। ये हिंदी भाषा बोलते हैं। हिन्दुओं की तरह इनमें भी अनुलोम व प्रतिलोम विवाह प्रचलित है।
राजी (बनरौत) — उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में पायी जाने वाली कोल जनजाति किरात वंश की हिन्दू जनजाति हैं जो झूमिंग प्रथा से कृषि करते हैं।
खरवार — उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में निवास करने वाली यह खूखार व बलिष्ठ जनजाति है।
जौनसारी — ये उत्तराखंड के देहरादून, टिहरी-गढ़वाल, उत्तरकाशी क्षेत्र में मिलती हैं। ये भूमध्यसागरीय क्षेत्रों से संबंधित हैं। इनमें बहुपति विवाह प्रथा पाई जाती है।
भोटिया — उत्तराखंड के अल्मोडा, चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी क्षेत्रों में पाए जाने वाली ये जनजातियाँ मंगोल प्रजाति की हैं। जो ऋतु-प्रवास करती हैं।
मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियाँ
गोंड, मुंडा, कोरकू, कोरबा, कोल, सहरिया, हल्वा, मारिया, बिरहोर, भूमियाँ, ओरांव, मीना आदि यहाँ की प्रमुख जनजातियाँ हैं। छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला कुल जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। झाबुआ जिला जनजातीय जनसंख्या प्रतिशत के अनुसार सर्वोपरि है।
गोंड — भारत की जनजातियों में गोंड जनजाति सबसे बड़ी है। ये प्राक्-द्रविड़ प्रजाति की है। इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले, होंठ मोटे, नाक बड़ी व फैली हुई होती है। ये मुख्यतः छत्तीसगढ़ के बस्तर, चांदा, दुर्ग जिलों में मिलती हैं। आंध्रप्रदेश व ओडिशा में भी इनकी कुछ जनसंख्या है।
मारिया — मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा, जबलपुर और बिलासपुर जिलों में रहने वाली इस जनजाति की शारीरिक रचना गोंड जनजाति के समान है।
कोल — मध्य प्रदेश के रीवा सम्भाग और जबलपुर जिले में निवास करने वाली इस जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि है।
कोरबा — छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, सरगुजा और रायगढ़ जिले में निवास करने वाली जनजाति है। ये मुख्यत: जंगली कंद-मूल एवं शिकार पर निर्भर हैं। कुछ कोरबा कृषक भी हैं।
सहरिया — मध्य प्रदेश के गुना, शिवपुरी व मुरैना जिलों में निवास करने वाली यह जनजाति कंदमूल व शहद का संग्रहण कर जीविका निर्वाह करती है।
हल्वा — छत्तीसगढ़ के रायपुर व बस्तर जिलों में निवास करने वाली इस जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। इनकी बोली में मराठी भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग होता है।
कोरकु — यह भी मुंडा या कोलेरियन जनजाति की शाखा है एवं मध्य प्रदेश के निमाड, होशंगाबाद, बैतूल, छिंदवाडा आदि जिलों में निवास करती है। इस जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि है।
राजस्थान की प्रमुख जनजातियाँ
राजस्थान के दक्षिण पूर्व व दक्षिणी क्षेत्रों में यहाँ की अधिकांश जनजातियाँ निवास करती हैं। यहाँ की जनजातियों में भील, मीणा, सहरिया, गरासिया, दमोर, सांसी आदि प्रमुख हैं।
मीणा — राजस्थान में इस जनजाति की सर्वाधिक संख्या पाई जाती है। ये मुख्यत: जयपुर, सवाई माधोपुर, उदयपुर, अलवर, चित्तौड़गढ़, कोटा, बूंदी व डूंगरपुर जिलों में रहते हैं। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर इस जनजाति का संबंध भगवान विष्णु के मत्स्यावतार से है।मीणा जनजाति शिव व शक्ति की उपासक होती हैं।
भील — यह राजस्थान में निवास करने वाली द्वितीय प्रमुख जनजाति है एवं बाँसवाडा, डूंगरपुर, उदयपुर, सिरोही, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा जिलों में निवास करती है। भील का अर्थ है- धनुषधारी। ये स्वयं को महादेव की संतान मानते हैं। भील जनजाति प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड प्रजाति की है। इनका कद छोटा व मध्यम, आँखें लाल, बाल रूखे व जबड़ा कुछ बाहर निकला हुआ होता है। भीलों में संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित है। यह प्रजाति सामान्यत: कृषक होती है।
गरासिया — यह राजस्थान में निवास करने वाली तीसरी प्रमुख जनजाति है। ये मुख्यत: दक्षिणी राजस्थान में रहते हैं। ये चौहान राजपूतों के वंशज हैं परंतु अब भीलों के समान आदिम प्रकार का जीवन व्यतीत करने लगे हैं। इनमें मोर बंधिया, पहरावना व ताणना तीन प्रकार के विवाह प्रचलित हैं।
साँसी — यह राजस्थान के भरतपुर जिले में रहने वाली खानाबदोश जनजाति है। यह जनजाति स्वयं को बाल्मिकी जाति से भी नीचा मानती है।
झारखंड की प्रमुख जनजातियाँ
राँची, संथाल परगना व सिंहभूम जिलों में जनजातियों की संख्या सर्वाधिक है। देवघर, गिरिडीह, पलामू, गोड्डा, हजारीबाग, धनबाद आदि क्षेत्र भी जनजातीय आबादी की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। झारखंड की जनजातियों में संथाल सबसे प्रमुख है। उरांव, मुंडा, हो, भूमिज, खड़िया, बिरहोर, कोरबा, खोंड, खरवार, असुर, बैगा आदि अन्य प्रमुख जनजातियाँ हैं।
संथाल — यह भारत की एक प्रमुख जनजाति व झारखंड की सर्वप्रमुख जनजाति है। यह बंगाल, उड़ीसा व असम राज्यों में भी पाई जाती है। ये झारखंड में मुख्यत: संथाल परगना, रांची, सिंहभूम, हजारीबाग, धनबाद आदि जिलों में रहते हैं। संथाल आस्ट्रेलॉयड और द्रविड़ प्रजाति के होते हैं। ये मुंडा भाषा बोलते हैं व प्रकृतिपूजक होते हैं।
संथाल जनजाति का मुख्य व्यवसाय आखेट, कंदमूल संग्रह व कृषि है। ब्राह्मण, सोहरई व सकरात इनके मुख्य पर्व हैं।
कोरबा — ये झारखंड के पलामू जिले में पाई जाती हैं। मध्य प्रदेश में भी यह जनजाति निवास करती है जो कोलेरियन जनजाति से सम्बन्ध रखती है।
उराँव —यह भी झारखंड की प्रमुख जनजातियों में से एक है। इनका संबंध प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड प्रजाति से है। ये कुरूख भाषा बोलते हैं जो मुंडा भाषा से मिलती जुलती है। ये मुख्यत: संथाल परगना व रोहतास जिलों में रहते हैं। शिकार करना, मछली पकड़ना व कृषि इनका मुख्य व्यवसाय है।
असुर — ये मुख्यतः सिंहभूम जिले में रहते हैं। ये भी प्रोटो-आस्टेलॉयड प्रजाति से संबंधित हैं। ये मुंडा वर्ग की मालेटा भाषा बोलते हैं। लोहा गलाना, शिकार करना, मछली पकड़ना, खाद्य संग्रह व कृषि इनका मुख्य व्यवसाय है।
सौरिया पहाड़िया — संथाल परगना, गोड्डा, राजमहल आदि जिलों में निवास करने वाली यह कृषक जनजाति है।
पहाड़ी खड़िया — सिंहभूम जिले की पहाड़ियों में निवास करने वाली यह जनजाति खाद्य संग्रह, बागवानी व कृषि पर निर्भर है।
खरवार — यह लड़ाकू व वीर जनजाति है जो झारखंड के पलामू व हजारीबाग जिले में निवास करती है।
मुंडा —यह भी झारखंड की प्रमुख जनजातियों में से है। इनकी अनेक उपजातियाँ हैं।।
भारत की अन्य प्रमुख जनजातियाँ
नागा — यह नागालैंड, मणिपुर व अरूणाचल प्रदेश की जनजाति है जो इंडो-मंगोलॉयड प्रजाति से सम्बंध रखती है। ये अधिकांशतः नग्नावस्था में घूमते हैं। कृषि, पशुपालन व मुर्गीपालन इनका मुख्य व्यवसाय है। ये झूम कृषि करते हैं।
टोडा — यह तमिलनाडु की नीलगिरि व उटकमंडक पहाड़ियों में निवास करने वाली जनजाति है। इनका सम्बंध भूमध्यसागरीय प्रजाति से है। ये हृष्ट-पुष्ट, सुंदर व गोरी होती है। इनका मुख्य व्यवसाय पशुचारण है। टोडा जनजाति में बहुपति प्रथा प्रचलित है।
अंडमान निकोबार की जनजातियाँ — अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर पायी जाने वाली शोम्पेन, सेंटीनली, ओंगे व जारवा जनजाति विलुप्ति की कगार पर है ये नीग्रिटो प्रजाति से संबंधित हैं।
कोल जनजाति का इतिहास हर राज्य और पूरे देश मे अधूरा क्यों है कोलारियन समूह को दबाने की कोशिश की गई हैं लगता हैं