मेडारम जात्रा उत्सव भारत के जयशंकर भूपलपल्ली जिले (तेलंगाना) में प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल में मनाया जाने वाला विश्व का सबसे बड़ा जनजातीय उत्सव है। यह माघसुधा पौर्नामी (माघ पूर्णिमा) को मनाया जाता है।
इस उत्सव में सम्मक्का एवं सारक्का नामक आदिवासी देवियों की पूजा की जाती है। स्थानीय अनुश्रुतियों के अनुसार देवी सम्मक्का एवं उनकी पुत्री सारलम्मा (सारक्का), काकतीय राजाओं के अन्यायपूर्ण कानून के खिलाफ मेडारम के पक्ष में युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं थीं, यह उत्सव उनके सम्मान में मनाया जाता है।
यह उत्सव चार दिन तक चलता है, और इस उत्सव में आने वाले श्रद्धालु अपने वजन के बराबर नैवैद्यम या अन्य प्रसाद जैसे बंगारम या बेल्लम (गुड़) अर्पित करते हैं व जम्पन्ना वगु (गोदावरी की सहायक नदी) में स्नान करते हैं। जम्पन्ना वगु, देवी सम्मक्का के पुत्र थे।
इस उत्सव का इतिहास लगभग 1000 वर्ष से अधिक पुराना है।
इसे सम्मक्का-सारलम्मा (सारक्का) जात्रा के नाम से भी जाना जाता है।
इसे दक्षिण भारत का कुम्भ-मेला भी कहा जाता है, क्योंकि कुंभ मेले के बाद इसमें सबसे बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है।
प्रारम्भ में इस उत्सव को सिर्फ कोया जनजाति के लोगो द्वारा मनाया जाता था, किंतु वर्तमान में वृहत संख्या में अन्य समुदाय के लोगो द्वारा भी इस त्यौहार को मनाते हैं।
कोया जनजाति
- कोया मुख्यतः दक्षिण भारत में निवास करने वाली जनजाति है जिसे कोइ, कोआदोरालु, कोयलू आदि नामों से भी जाना जाता है।
- ये कोयी भाषा (द्रविड़ कुल की भाषा) बोलते हैं व अपनी बोली में स्वयं को कोइतर कहते हैं।
- तेलंगाना (दक्षिण भारत) के अतिरिक्त यह जनजाति छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा एवं आन्ध्र प्रदेश में भी निवास करती हैं।
- इस जनजाति मुख्यतः कृषक हैं तथा बांस के सामान बनाने के कुशल कारीगर भी हैं।
- पोलावरम परियोजना (Polavaram project) की वजह से यह जनजाति बड़ी मात्रा में विस्थापन एवं पलायन का शिकार हुई हैं।
मेडारम , वारंगल से लगभग 100 कि.मी. दूर एटुरूनगरम वन्यजीव अभयारण्य (Eturnagaram Wildlife Sanctuary) के पास एक छोटा सा गाँव है। यह अभयारण्य दण्डकारण्य वन क्षेत्र का भाग है।