हिमाचल प्रदेश का मध्यकालीन इतिहास: भाग II

हिमाचल में सिक्खो का बढ़ता प्रभाव (Increasing impact of Sikhism in Himachal):

गुरु गोविन्द सिंह जब आनन्दपुर साहिब आये और उन्होंने कहलूर के राजा भीम चंद से मित्रता कर ली। इतिहासकारों ने राजा भीम चन्द को एक निरकुंश, जिद्दी और बिलासी शासक माना है। राजा भीम चंद बाद में एक फकीर बन गये और अपने पुत्र अजमेर चंद को कहलूर की गद्दी संभाल दी।

पंजाब में गुरु हरगोबिन्द सिंह अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाने में कार्यरत थे। वे मुगलों के आक्रमणों और अत्याचार से तंग आ चुके थे। वह समय था जब कहलूर और सिख गुरु महाराज में मित्रता बढ़ी। राजा कल्याण चंद ने गुरु हर गोबिन्द सिंह जी को सतलुज नदी के किनारे कुछ जमीन भेंट की। गुरु हर गोबिन्द सिंह अपने साजो-सामान के साथ इसी क्षेत्र में रहने लगे। मुख्य धार्मिक स्थान बनाकर गुरु महाराज ने यहीं से पहाड़ी क्षेत्रों में सशस्त्र धर्म का प्रचार शुरू कर दिया।

कहलूर रियासत के राजा कल्याण चन्द की मृत्यु के उपरांत उनका बेटा तारा चंद 1636 ई. में राज सिंहासन पर बैठा।  शाहजहां को गुरू हर गोबिन्द सिंह का किरतपुर में बसना रास नहीं आया। गुरू हर गोबिन्द सिंह के बाद गुरू हर राय सिक्खों के सातवें गुरू बने और किरतपुर में ही रहने लगे। शाहजहां ने गुरू हर राय को किरतपुर से निकालने के लिए कहलूर रियासत के राजा तारा चंद को इस काम के लिए प्रेरित किया। कहलूर के राजा ने शाहजहां की बात नहीं मानी।

कुछ वर्षों बाद सिक्खों के सातवें गुरू हर राय ने मुगल आक्रमण से बचने के लिए सिरमौर के राजा कर्म प्रकाश के राज्य में शरण ली।

औरंगजेब का साम्राज्य (Empire of Aurangzeb):

कांगड़ा, नूरपुर, सिरमौर, चम्बा, बिलासपुर, कहलूर, जसवां, पठानकोट, मण्डी, सुकेत, गुलेर, कोटला, नालागढ़, बसोली, तारागढ़ और अन्य पहाड़ी राज्य मुगल साम्राज्य को वार्षिक नजराना देते थे। औरंगजेब के समय, बिलासपुर के राजा दीप चन्द, सिरमौर के राजा सुभाग प्रकाश, नुरपूर के थाना पठानिया उच्च पदों पर नियुक्त थे। 1664 ई. में गुरू तेग बहादुर कहलूर के राजा से भूमि खरीद कर मुखोवाल में रहने लगे। गुरू गोबिन्द सिंह सिक्खों के दसवें और अंतिम गरू थे। उन्होंने आरम्भ से ही अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाने के प्रयत्न किए। उन्होंने आनन्दपर की स्थापना की।

पांवटा की स्थापना (Establishment of pawata):

गुरू गोबिन्द सिंह ने मेदिनी प्रकाश से भेंट में मिले सती घाट के दाहिने किनारे पर किला बनाकर पांवटा साहिब की स्थापना की। यहीं रहकर सिक्खों ने पहाड़ी रियासतों में अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

भंगाणी युद्ध (Bhangaani war):

पांवटा से 6 मील दूर भंगाणी स्थान पर गुरू गोबिन्द सिंह की सेना ने बिलासपुर, गुलेर, कांगड़ा, कहलूर, गढ़वाल और नालागढ़ की सेना को छद्म युद्ध में हराया। स्वयं गुरू जी आनन्दपुर आकर रहने लगे। आनन्दपुर का धार्मिक दरबार छावनी लगने लगा। 1687 ई. में गुरू गोबिन्द सिंह ने नादौन युद्ध में पहाड़ी राजाओं की सहायता की और मुगलों को हराया।

छोटे राज्यों का उदय (The rise of small states):

17वी शताब्दी में ठियोग, मधान, अर्की, कोटी, घूण्ड और रतेश  जेसे छोटे राज्य अस्तित्व में आए। बुशहर के राजा केहरी सिंह (1639-1696 ई.) ने करांगला, सारी, देलठ, ठियोग, कोटखाई, दरकोटी और शांगरी को अवसर पाकर कब्जे में कर लिया। इस युद्ध कौशल को देखकर औरंगजेब ने राजा केहरी सिंह को छत्रपति राजा की उपाधि दी।

कांगड़ा किले पर अधिकार (conquer the Kangra Fort):

मुगल शक्ति को कमजोर देखकर राजा संसार चन्द ने कांगड़ा किले को हथियाने के उद्देश्य से 1782 ई. में सिक्खों की कन्हैया मिसल के मुखिया जय सिंह की सहायता से कांगड़ा दुर्ग घेर लिया। बीमार और बूढे मुगल गवर्नर नवाब सैफअली खान ने थोडे विरोध के बाद आत्म-समपर्ण कर दिया। जय सिंह कन्हैया ने किला जीतने के बाद उसे संसार चन्द को देने से इन्कार कर दिया।

संसार चन्द द्वारा किले को पुनः प्राप्त करना:

सिक्ख मिसल के मुखिया की पंजाब में हार के पश्चात् जय सिंह कन्हैया अधिक देर तक कांगड़ा दुर्ग में नहीं रह सका। उसने 1786 ई. में कांगड़ा किले का परित्याग कर दिया। नगरकोट का प्राचीन किला 166 वर्षों के बाद इसके मूल वंशज तथा शासक संसार चन्द के नियन्त्रण में आ गया।

कांगड़ा राज्य का बढ़ता प्रभाव (Growing Impact of Kangra state):

संसार चन्द ने नादौन को अपनी राजधानी बनाई क्षेत्र विस्तार की लालसा में संसार चन्द ने मण्डी, सुकेत, बिलासपुर और चम्बा के राजाओं को अपना प्रभुत्व स्वीकार कराया। होशियारपुर, जालन्धर, दोआबा, बटाला, पठानकोट और बजवाड़ा क्षेत्रों को जीतकर संसार चन्द पहाड़ी राज्यों में प्रमुख शक्ति बन गया।

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