फल व सब्जियों के परिरक्षण की विधियाँ (Methods of preservation of fruits and vegetables)

फल संरक्षण की विधियों को मुख्यत: 4 भागों में विभाजित किया जा सकता है :

  1. भौतिक विधियाँ (Physical Methods)
  2. रासायनिक विधियाँ (Chemical Methods)
  3. किण्वन विधियाँ (Fermentation Methods)
  4. अरोगाणुता की विधियाँ (Asepsis Methods)

भौतिक विधियाँ (Physical Methods)

भौतिक विधियाँ (Physical Methods) इस विधि के चार प्रकार हैं।

  1. निम्न तापक्रम (low temperature)
  2. उच्च तापक्रम
  3. नमी निष्कासन (Removal of Moisture) 
  4. किरणन (Irradiation) 

निम्न तापक्रम (low temperature)

इसके अन्तर्गत तापक्रम कम करक परिरक्षण किया जाता है। इसे चार प्रकार से अपनाया जाता है

  1. प्रशीतन (Refrigeration) – इस विधि के अंतर्गत फल तथा सब्जियों को (-) 2.2°C से 16.1°C के मध्य रखा जाता है, जिससे फल तथा सब्जियों में जैव रासायनिक अभिक्रियाओं की दर कम हो जाती है।
  2. हिमीकरण (Freezing) – इस विधि में फल तथा सब्जियों को हिमीकृत अवस्था में रखा जाता है।
  3. शुष्क हिमीकरण (Dry Freezing) – तीव्र वेग द्वारा तरल नाइट्रोजन से बर्पित किया जाता है।
  4. कार्बोनेशन (Carbonation) – इस विधि में तरल पदार्थों में कार्बनडाई-ऑक्साइड को मिश्रित किया जाता है। पेय पदार्थों को संरक्षित करने के लिए यह विधि अपनाई जाती है।

उच्च तापक्रम

इस विधि अंतर्गत उच्च तापक्रम (74.4 से 121°C ) का उपयोग कर फल तथा सब्जियों का संरक्षण किया जाता है।

  1. स्थायी पाश्चुरीकरण (Permanent Pasteurization) – इस विधि के अंतर्गत पेय पदार्थों को संरक्षित करने के लिए 79.4-90.5°C पर गर्म किया जाता है। इस विधि से फलों  व सब्जियों के रस को संरक्षित किया जाता है।
  2. त्वरित पाश्चुरीकरण (Flash Pasteurization) – इस विधि के अंतर्गत 10°F से अधिक तापक्रम पर फलों व सब्जियों के रस को संरक्षित करने के लिए 1 मिनट के लिए या इससे कम समय के लिए गर्म किया जाता है।
  3. निर्जीवीकरण (Sterilization) – इस विधि के अंतर्गत फलों व सब्जियों के रस को 100-121°C के तापक्रम पर 15 से 45 मिनट तक गर्म किया जाता है। इस विधि के अंतर्गत फलों के रस को संरक्षित करने की दो मुख्य विधियाँ कैनिंग (Canning) और बॉटलिंग (bottling) हैं।

नमी निष्कासन (Removal of Moisture) 

इस विधि के अंतर्गत फलों व सब्जियों में से जल को सूखा दिया जाता हैं, जिससे सूक्ष्म जीव वृद्धि नहीं कर सकते हैं।

  1. धूप में सुखाना – इस विधि के अंतर्गत फल तथा सब्जियों को धूप (सौर ऊर्जा) में सुखाया जाता है। जैसे – किशमिश आदि।
  2. निर्जलीकरण (Dehydration) – इस विधि के अंतर्गत फल तथा सब्जियों में उपस्थित जलांश को कृत्रिम वातावरण निर्मित करके शुष्क बनाया जाता है।
  3. निम्न ताप वाष्णीकरण (Low Temperature Evaporation) – इस विधि द्वारा तरल पदार्थों में उपस्थित जल को क्रमशः बर्फ में परिवर्तित कर उसे अलग कर लिया जाता है, जिससे तरल पदार्थ गाढ़ा हो जाता है।

किरणन (Irradiation)

फल तथा सब्जियों में विभिन्न प्रकार की विकिरित ऊर्जा (radiated energy) का उपयोग करके उसमें उपस्थित सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते है।

रासायनिक विधियाँ (Chemical Method) 

इस विधि में विभिन्न प्रकार के रसायनों का प्रयोग कर फलों तथा सब्जियों का संरक्षण किया जाता हैं, जिससे खाद्य पदार्थ खराब नहीं होते और उन्हें लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता हैं।
अम्लता (acidity) – सिट्रिक एसिड, टार्टरिक एसिड, सिरका आदि को मिलाकर खाद्य पदार्थों से बने उत्पादों को संरक्षित किया जाता है। जैसे – स्कवैश, अचार, केचप आदि।
नमक – इस विधि में खाद्य पदार्थों व उससे निर्मित उत्पादों में 15 से 20% नमक मिलाकर उन्हें खराब होने से बचाया जा सकता है। परासरण दबाव (osmotic pressure) के कारण सक्ष्म जीव वृद्धि नहीं कर पाते। जैसे – अचार, चटनी आदि।
शक्कर एवं ताप (Sugar and Heat) – इस विधि में खाद्य पदार्थों में 65-70% शक्कर मिलाकर उन्हें ख़राब होने से बचाया जा सकता है। जैसे – मुरब्बा, जैली, जैम, मार्मलेड आदि।
रासायनिक परिरक्षक (Chemical Preservatives)
रासायनों का उपयोग कर खाद्य पदार्थों को ख़राब होने से बचाया जा सकता है। इसके दो प्रकार हैं –

  1. अनुज्ञात्मक परिरक्षक (Permitted Preservatives) – पोटैशियम-मेटा-बाई-सल्फाइड, सोडियम बेन्जोएट आदि। इनकी मात्रा निश्चित होती है।
  2. सूक्ष्मजैविक परिरक्षक (Microbial preservative) – यह सूक्ष्म जीवाणुओं से उत्पन्न किए जाते हैं, जैसे -टाइलोसिन आदि।

किण्वन (Fermentation)

यह एक रासायनिक अभिक्रिया है, जिसके अंतर्गत शर्करायुक्त पदार्थों का किण्वन (सड़ना) किया जाता है। इनसे ऐसे पदार्थ बनते हैं, जो पदार्थों को खराब होने से बचाते हैं।

  1. एल्कोहलिक किण्वन (Alcoholic fermentation) – इस विधि द्वारा एल्कोहल निर्मित किया जाता है।
  2. ऐसिटिक किण्वन (Acetic fermentation) – इस विधि द्वारा ऐसिटिक एसिड निर्मित किया जाता है। जैसे – सिरका।
  3. लैक्टिक किण्वन (Lactic Fermentation) – इस विधि द्वारा लैक्टिक एसिड निर्मित किया जाता है। जैसे – अचार, दही आदि।

अरोगाणुता (Asepsis)

यह एक स्वतंत्र विधि नहीं है, इसका उपयोग अन्य विधियों के साथ किया जाता है। इस विधि का उद्देश्य पदार्थों को सूक्ष्म-जीवाणुओं से अलग करना होता है।

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