ब्रह्मांड की उत्पत्ति (Origin of Universe)

आधुनिक सिद्धांत  (Modern theory) 

आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बन्धी सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) है। इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) भी कहा जाता है। 1920 ई॰ में एडविन हब्बल (Edwin Hubble) ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है और  समय बीतने के साथ आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर हो रही हैं।

बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार निम्न अवस्थाओं में हुआ हैः

  • आरम्भ में वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्मांड बना है, अति छोटे गोलक (single atom) के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे। जिसका आयतन अत्यध्कि सूक्ष्म एवं तापमान तथा घनत्व अनंत था।
  •  बिग बैंग की प्रक्रिया में इस अति छोटे गोलक में भीषण विस्फोट हुआ। इस प्रकार की विस्फोट  प्रक्रिया से वृहत् विस्तार हुआ। वैज्ञानिकों के अनुसार  बिग बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट (Bang) के बाद एक सेकंड के अल्पांश के अंतर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंर्तगत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ।
  •  बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500॰ केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।

ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना। हाॅयल (Hoyal) ने इसका विकल्प ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ (Steady State Concept) के नाम से प्रस्तुत किया। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। यद्यपि ब्रह्मांड के विस्तार सम्बन्धी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धांत के ही पक्ष में हैं।
जैसे – एक गुब्बारा में कुछ निशान लगाकर जिनको आकाशगंगायें मानकर इस गुब्बारे को फुलाने, गुब्बारे पर लगे ये निशान गुब्बारे के फैलने के साथ-साथ एक दूसरे से दूर जाते प्रतीत होंगे। इसी प्रकार आकाशगंगाओं के बीच की दूरी भी बढ़ रही है और परिणामस्वरूप ब्रह्मांड विस्तारित हो रहा है।  गुब्बारे पर लगे चिह्न के बीच की दूरी के अतिरिक्त, चिह्न स्वयं भी बढ़ रहे हैं। जबकि यह तथ्य के अनुरूप नहीं है। अतः गुब्बारे का उदाहरण आंशिक रूप से ही मान्य है।

तारों का निर्माण (Construction of stars)

प्रारंभिक ब्रह्मांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ। यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है। आकाशगंगाओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों (Light Years) में मापी जाती है। एक आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है जिसे नीहारिका (Nebula) कहा गया।
इस बढ़ती हुई  नीहारिका (Nebula) में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।

ग्रहों का निर्माण (Formation of planets)

ग्रहों के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएँ मानी जाती हैं –

  •  तारे नीहारिका (Nebula) के अंदर गैस के गुंथित झुंड हैं। इन गुंथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरपफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating Disc) विकसित हुई।
  •  अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे
    गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetesimals) में विकसित हुए। संघट्टन (Collision) की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।
  •  अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप में बने।

सौरमंडल (Solar System)

हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। नीहारिका (Nebula) को सौरमंडल का जनक माना जाता है उसके ध्वस्त होने व क्रोड के बनने की शुरूआत लगभग 5 – 5.6 अरब वर्षों पहले हुई व ग्रह लगभग 4.6 – 4.56 अरब वर्षों पहले बने। हमारे सौरमंडल में सूर्य (तारा), 8 ग्रह, 63 उपग्रह, लाखों छोटे पिंड जैसे – क्षुद्र ग्रह (ग्रहों के टुकड़े) (Asteroids) धूमकेतु (Comets) एवं वृहत् मात्रा में धूलकण व गैस है। इन आठ ग्रहों में बुध्, शुक्र, पृथ्वी व मंगल भीतरी ग्रह (Inner Planet) कहलाते हैं, क्योंकि ये सूर्य व छुद्रग्रहों  की पट्टी के बीच स्थित हैं। अन्य चार ग्रह बाहरी ग्रह (Outer planet) कहलाते हैं।
पहले चार ग्रह पार्थिव (Terrestrial) ग्रह भी कहे जाते हैं। इसका अर्थ है कि ये ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों और धतुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अध्कि घनत्व वाले ग्रह हैं। अन्य चार ग्रह गैस से बने विशाल ग्रह या जोवियन (Jovian) ग्रह कहलाते हैं। जोवियन का अर्थ है बृहस्पति (Jupiter) की तरह। इनमें से अध्कितर पार्थिव ग्रहों से विशाल हैं और हाइड्रोजन व हीलीयम से बना सघन वायुमंडल है। सभी ग्रहों का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्षों पहले एक ही समय में हुआ। अभी तक प्लूटो को भी एक ग्रह माना जाता था। परन्तु अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी संगठन (International Astronomy Organization) ने अपनी बैठक अगस्त 2006 में यह निर्णय लिया कि कुछ समय पहले खोजे गए अन्य खगोलीय पिण्ड (2003 UB313) तथा प्लूटो ‘बोने ग्रह’ कहे जा सकते हैं।

पार्थिव व जोवियन ग्रहों में अंतर

  • पार्थिव ग्रह (Parthiv planets) जनक तारे के बहुत समीप बनें जहाँ अत्यधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हो पाईं और घनीभूत भी न हो सकीं। जोवियन ग्रहों (Jovian planets) की रचना अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर हुई।
  •  सौर वायु सूर्य के नज़दीक ज्यादा शक्तिशाली थी। अतः पार्थिव ग्रहों (Parthiv planets) से ज्यादा मात्रा में गैस व धूलकण उड़ा ले गई। सौर पवन इतनी शक्तिशाली न होने के कारण जोवियन ग्रहों (Jovian planets) से गैसों को नहीं हटा पाई।
  •  पार्थिव ग्रहों (Parthiv planets) के छोटे होने से इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी कम रही जिसके परिणामस्वरूप इनसे निकली हुई गैस इन पर रुकी नहीं रह सकी।

 

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