पंचायती चुनावों का संवैधानीकरण
राजीव गाँधी सरकार – पंचायतों को संवैधानिक मान्यता दिलाने हेतु वर्ष 1989 में सरकार द्वारा विधेयक संसद में पेश किया गया जो लोकसभा में तो पारित हो गया किंतु राज्यसभा में पारित नहीं हो सका , क्योकिं इसमें केंद्र को मजबूत बनाने प्रावधान था |
V.P सिंह सरकार – वर्ष 1990 में पंचायतों से संबंधित एक विधेयक लोकसभा में पेश किया गया किंतु सरकार गिर जाने के साथ ही विधेयक भी समाप्त हो गया |
नरसिम्हा राव सरकार – अततः 73 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1992 के द्वारा पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो गयी |
73 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1992
इस अधिनियम के अंतर्गत भारतीय संविधान में एक नया भाग – 9 पंचायती राज , अनु० – 243 के अंतर्गत सम्मिलित किया गया | इस अधिनियम के द्वारा संविधान में एक नई 11 अनुसूची जोड़ी गयी , जिसके अंतर्गत पंचायतों की 29 कार्यकारी विषय – वस्तु शामिल है |
इस अधिनियम के द्वारा संविधान के अनु०- 40 को एक व्यवहारिक रूप दिया गया जिसमें कहाँ गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों के गठन के लिए कदम उठाएगा और उन्हें आवश्यक अधिकारों एवं शक्तियों से विभूषित करेगा | इस अधिनियम के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को एक संवैधानिक दर्जा दिया गया , अत: इसके अंतर्गत राज्य सरकारें पंचायती राज व्यवस्था को अपनाने को बाध्य है|
पंचायती राज व्यवस्था के उपबंधो को दो वर्गों में विभाजित किया गया है –
- अनिवार्य – पंचायती राज व्यवस्था के गठन को राज्य कानून में शामिल किया जाना अनिवार्य है |
- स्वैच्छिक – भगौलिक , राजनैतिक व प्रशासनिक तथ्यों को ध्यान में रखकर पंचायती राज पद्धति को अपनाने का अधिकार सुनिश्चित करता है |
पंचायती राज की प्रमुख विशेषताएँ
- ग्राम सभा का गठन
- त्रिस्तरीय प्रणाली – राज्यों में ग्राम , ब्लाक/माध्यमिक और जिला स्तर पर में पंचायती राज व्यवस्था में समरूपता आएगी , किंतु ऐसा राज्य जिसकी जनसँख्या 20 लाख से कम है उसे माध्यमिक स्तर पर पंचायत न गठित करने की छूट देता है |
- सदस्यों व अध्यक्ष का चुनाव – राज्यों में ग्राम , ब्लाक/माध्यमिक और जिला स्तर पर सभी सदस्य लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाएंगे, किंतु ब्लाक/माध्यमिक और जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्हीं के मध्य से अप्रत्यक्ष रूप से किया जाएगा जबकि ग्राम स्तर पर अध्यक्ष का चुनाव विधानमंडल द्वारा निर्धारित तारीके से किया जाएगा |
- आरक्षण – पंचायतों के तीनों स्तर पर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को उनकी जनसँख्या के कुल अनुपात में सीटों पर आरक्षण का प्रावधान है साथ ही ग्राम या अन्य स्तर पर पंचायत्तों में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए अध्यक्ष पद के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है |
पंचायतों का कार्यकाल
- संविधान द्वारा पंचायतों के लिए 5 वर्ष का कार्यकाल निश्चित किया गया है किंतु उसे समय से पूर्व भी विघटित किया जा सकता है , किंतु विघटित होने की दशा में 6 माह के भीतर पुन: नई पंचायत का गठन आवश्यक है |
- परंतु जहाँ पंचायत के कार्यकाल पूरा होने में 6 माह शेष है इस अवधि में पंचायत का विघटन होने पर नई पंचायत के लिए चुनाव कराना आवश्यक नहीं है | इस स्थिति में भंग पंचायत ही कार्य करते रहती है |
पंचायतों के चुनाव
- पंचायतों के चुनाव की तैयारी , देखरेख , निर्देशन और मतदाता सूची तैयार करने संबंधी सभी कार्य राज्य निर्वाचन आयोग (State election commission) किये जाते है | राज्य निर्वाचन आयोग के चुनाव आयुक्तों को राज्यपाल (Governor) द्वारा नियुक्त किया जाता है तथा उसकी सेवा शर्त व पधावधि भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाती है |
- राज्य निर्वाचन आयोग के चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया उच्च न्यायालय (High court) के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान है |
- 73 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1992 पंचायत के चुनावी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोक लगाता है , अर्थात निर्वाचन क्षेत्र और सीटों के आवंटन संबंधी मुद्दों को न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता है |
लेखा परीक्षण
विधानमंडल द्वारा पंचायतों के खातों की देखरेख व परिक्षण के लिए प्रावधान बनाएं जा सकते है |
केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में पंचायती राज
राष्ट्रपति द्वारा भारत के किसी भी राज्यक्षेत्र में आपवादों अथवा संशोधनों के साथ लागू करने के लिए दिशा – निर्देश दे सकता है |
अधिनियम से छूट प्राप्त राज्यक्षेत्र
पंचायती राज अधिनियम जम्मू – कश्मीर , नागालैंड , मेघालय , मिजोरम और कुछ अन्य विशेष क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है , जैसे –
- उन राज्यों के अनुसूचित आदिवासी क्षेत्रों में |
- मणिपुर के उन पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ जिला परिषद् का अस्तित्व हो |
- पश्चिम बंगाल (West Bangal) के दार्जिलिंग में जहाँ पर दार्जिलिंग गोरखा हिल परिषद् अस्तित्व में हो |
किंतु यदि संसद चाहे तो इस अधिनियम को ऐसे अपवादों और संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजाति क्षेत्रों में लागू कर सकती है |
पेसा अधिनियम 1966 (विस्तार अधिनियम)
पेसा अधिनियम 1996 पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग- 9 , 5 वीं अनुसूची में वर्णित क्षेत्रों पर लागू नहीं होता , किंतु संसद इस प्रावधान को कुछ अपवादों तथा संशोधनों के साथ उक्त क्षेत्रों में लागू कर सकती है | वर्तमान 2017 तक 10 राज्य 5 वीं अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आते है – Andhra Pradesh , Telengana , Chhattisgarh , Gujrat , Himanchal Padesh , Madhya Pradesh , Jharkhand , odisha , Rajasthan , Maharashtra . in राज्यों ने पंचायती राज अधिनियमों में संसोधन कर अपने क्षेत्र में लागू किए है |
विस्तार अधिनियम के उद्देश्य
- पंचायतों से जुड़े जरुरी प्रावधानों को संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करना |
- जनजातीय जनसँख्या को स्वशासन प्रदान करना |
- पंचायतों को निचले स्तर पर ग्राम सभा की शक्तियों व अधिकारों को छीनने से रोकना |
- जनजातीय समुदाय की कला व संस्कृति का संरक्षण |