बिहार की भौतिक विशेषताएँ (उच्चावच)

बिहार  में अनेक प्रकार की भौतिक विविधताएँ जैसे – पर्वत, पठार और मैदान सभी प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं। यद्यपि बिहार का अधिकांश भू-भाग मैदानी क्षेत्र है, किन्तु उत्तर में स्थित शिवालिक पर्वत श्रेणी तथा दक्षिण में  संकीर्ण पठारी क्षेत्र विविधता उत्पन्न करते हैं। भौतिक दृष्टि के आधार पर बिहार को 3 भौतिक (प्राकृतिक) प्रदेश में विभाजित किया गया है –

  • उत्तर का शिवालिक पर्वतीय प्रदेश एवं तराई प्रदेश उत्तर का शिवालिक पर्वतीय प्रदेश
  • तराई प्रदेश
  • गंगा का मैदान
  • दक्षिणी पठारी प्रदेश

उत्तर का शिवालिक पर्वतीय प्रदेश एवं तराई प्रदेश उत्तर का शिवालिक पर्वतीय प्रदेश

शिवालिक श्रेणी (हिमालय पर्वत) का विस्तार बिहार में पश्चिमी चंपारण की उत्तरी सीमा (उत्तरी-पश्चिमी बिहार) तक है। शिवालिक श्रेणी का विस्तार 932 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर है। शिवालिक श्रेणी की औसत ऊँचाई 80-250 मीटर के मध्य है। इस शिवालिक पर्वतीय प्रदेश को मुख्यत: 3  भागों में विभाजित किया गया है –

  1. रामनगर दून की पहाड़ी,
  2. हरहा घाटी (दून की घाटी),
  3. सोमेश्वर श्रेणी

रामनगर दून की पहाड़ी – सोमेश्वर श्रेणी के दक्षिण में स्थित रामनगर दून की पहाड़ी 32 Km लंबी और 8 Kmचौड़ी है। इस श्रेणी  का सबसे ऊँचा भाग संतपुर है, जिसकी ऊँचाई 242 meter  है।
हरहा घाटी (दून की घाटी) – यह घाटी एक संकीर्ण अनुदैर्घ्य घाटी है, जो रामनगर दून और सोमेश्वर श्रेणी के बीच स्थित है। इस घाटी की लंबाई 21 किलोमीटर तथा क्षेत्रफल 214 वर्ग किलोमीटर है।
सोमेश्वर श्रेणी – बिहार में शिवालिक श्रेणी के तीसरे भाग को  सोमेश्वर की पहाड़ी के नाम से जाना जाता है, जो लगभग 784 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल विस्तृत है, जिसका शीर्ष भाग बिहार को नेपाल से विभाजित करता है। त्रिवेणी नहर से भिखना ठोरी दर्रा तक फैली इस श्रेणी की लंबाई 70 Km है। नदियों के तीव्र बहाव के कारण इस श्रेणी में अनेक दरों का निर्माण हुआ है, जिसमें सोमेश्वर दर्रा, भिखना ठोरी दर्रा, मरवात दर्रा आदि प्रमुख हैं। ये दर्रे बिहार और नेपाल के बीच यातायात का मार्ग प्रदान करते हैं।  बिहार की सर्वोच्च चोटी पर सोमेश्वर किला स्थित है, सोमेश्वर श्रेणी में है। जिसकी ऊँचाई लगभग  880 meter है।

तराई प्रदेश

गंगा मैदान के उत्तरी भाग एवं शिवालिक श्रेणी के समानांतर दक्षिणी भाग को  तराई प्रदेश कहते है। बिहार में तराई प्रदेश का विस्तार उत्तर-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्वी सीमा तक है। इस प्रदेश में औसत वर्षा 150–200 cm तक होने के कारण घने वन एवं दलदली क्षेत्र का विकास हुआ है। उत्तरी-पूर्वी तराई प्रदेश पूर्णिया, अररिया और किशनगंज जिले में फैला हुआ है। यह बिहार का सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र है।

गंगा का मैदान

गंगा के मैदान का कुल क्षेत्रफल 90650 वर्ग किलोमीटर है, जो बिहार के कुल क्षेत्रफल का 96.27 % है। जो उत्तर में शिवालिक श्रेणी से लेकर दक्षिण में छोटानागपुर पठार तक विस्तृत है। गंगा के मैदान की औसत ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 75-120 meter तक है। गंगा के मैदान का निर्धारण 150 meter मीटर की समोच्च रेखा  (Contour line)  द्वारा किया जाता है। वह रेखा जो समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाकर खींची जाती समोच्च रेखा  (Contour line) कहलाती है।  गंगा के मैदान का ढाल पश्चिम से पूरब की ओर है। जो अत्यंत मंद ढाल (5-6 cm/km) है। जो पश्चिम में अधिक चौड़ा है, जबकि पूरब की ओर इसकी चौड़ाई कम होती जाती है। बिहार में  के मैदान को गंगा नदी  द्वारा दो भागों में विभाजित है –

  • उत्तरी गंगा का मैदान,
  • दक्षिणी गंगा का मैदान

उत्तरी गंगा का मैदान

उत्तरी गंगा के मैदान का विस्तार पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीवान, गोपालगंज, सीतामढ़ी, मधुबनी, सारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा और भागलपुर जिलों में है। जिसका कुल क्षेत्रफल 56,980 वर्ग किलोमीटर है। जिसका निर्माण गंगा और उसकी सहायक नदियों — घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, महानंदा आदि के द्वारा एकत्रित किए गए अवसादों से होता है। उत्तरी गंगा के मैदान का ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूरब की ओर है। यह मैदान नदियों द्वारा कई दोआब क्षेत्रों में विभाजित है। जिसमें घाघरा-गंडक दोआब, कोसी-गंडक दोआब, कोसी-महानंदा दोआब प्रमुख हैं। इस मैदान में नदियों द्वारा परित्यक्त एवं विसर्पाकार गोखुर झील एवं चौर का निर्माण हुआ है।क्षेत्रीय भिन्नता के आधार पर उत्तरी गंगा के मैदान को कई भागों में विभाजित किया गया है –

  • उप-तराई क्षेत्र (भाबर क्षेत्र),
  • बाँगर,
  • खादर,
  • चौर (मन)

उप-तराई क्षेत्र (भाबर क्षेत्र)  तराई प्रदेश के दक्षिण भाबर क्षेत्र पश्चिम से पूरब की ओर विस्तृत है। यह उत्तरी बिहार के 7 जिलों पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज में 10 Km चौड़ी संकीर्ण पट्टी के रूप में विस्तृत है। इसमें कंकड़-बालू का निक्षेप पाया जाता है।
बाँगर – वह क्षेत्र जहाँ बाढ़ का पानी प्रतिवर्ष नहीं पहुँच पाता पुराना जलोढ़ निक्षेप, (बाँगर क्षेत्र) कहलाता है। यह क्षेत्र भाबर क्षेत्र के दक्षिण में विस्तृत है। जिसका विस्तार मुख्यत: बिहार के उत्तरी-पश्चिमी मैदानी भागों में पाया जाता है।
खादर – वह क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्षं बाढ़ का पानी पहुँचता है,  नवीन जलोढ़ निक्षेप (खादर क्षेत्र) कहलाता है। प्रतिवर्ष बाढ़ आने के कारण उस क्षेत्र में नई मृदा का निक्षेप होता रहता है, जिससे उस क्षेत्र में मिट्टी की उवर्रता बनी रहती है।
चौर (मन) – उत्तरी गंगा के मैदान में प्राकृतिक रूप से जलमग्न निम्न भू-भाग पाया जाता है, जिसे चौर या मन कहा जाता है। चौर का प्रमुख उदाहरण पश्चिमी चंपारण का लखनी चौर, पूर्वी चंपारण का बहादुरपुर एवं सुंदरपुर चौर आदि हैं। चौर (मन) मूलतः गोखुर झील है, जिसका निर्माण नदियों के मार्ग परिवर्तन होने से हुआ है। चौर (मन) मीठे एवं गहरे जल के प्रमुख स्रोत हैं।

दक्षिणी गंगा का मैदान

दक्षिणी गंगा के मैदान का विस्तार दक्षिण के सीमांत पठारी प्रदेश और गंगा नदी के मध्य है। जिसका कुल क्षेत्रफल 33,670 वर्ग किलोमीटर है। दक्षिणी गंगा के मैदान का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। दक्षिणी गंगा के मैदान निर्माण पठारी प्रदेश से होकर बहने वाली नदियों के निक्षेप से हुआ है। दक्षिणी मैदान की चौड़ाई पश्चिम से पूरब की ओर घटती जाती है। पूर्वी भाग में चौड़ाई कम होने का कारण गंगा नदी द्वारा प्राकृतिक बाँध का निर्माण किया गया है। पटना प्राकृतिक कगार (बाँध) पर बसा हुआ नगर है। प्राकृतिक कगार (बाँध) की ऊँचाई आसपास के भू-भाग से अधिक होने के कारण दक्षिणी बिहार की अधिकांश नदियाँ गंगा नदी में सीधे न मिलकर उसके समानांतर प्रवाहित होती हैं। इस प्रकार की प्रवाह प्रणाली ‘पीनेट प्रवाह प्रणाली’ कहलाती है। इन नदियों में पुनपुन, किऊल, फल्गु आदि हैं। फल्गु नदी गंगा में मिलने से पहले ही टाल क्षेत्र में समाप्त हो जाती है। ये नदियाँ पठारी क्षेत्र से प्रवाहित होकर आती हैं, इसलिए इनके निक्षेप में बालू की प्रधानता पाई जाती है।
प्राकृतिक कगार के दक्षिणी भाग में जलमग्न निम्न भू-भाग पाया जाता है, जिसे टाल या जल्ला क्षेत्र कहा जाता है। यह टाल क्षेत्र पटना से मोकामा तक 25 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला है। प्रमुख टाल के उदाहरण बड़हिया टाल, मोकामा टाल, सिंघोल टाल, मोर टाल आदि हैं।

दक्षिणी पठारी प्रदेश

दक्षिणी पठारी प्रदेश छोटानागपुर पठार का सीमांत है। इस प्रदेश में ग्रेनाइट एवं नीस जैसी आग्नेय और रूपांतरित चट्टानें बहुलता से पाई जाती हैं। इस पठारी प्रदेश का विस्तार पश्चिम में कैमूर से लेकर पूरब में मुंगेर एवं बाँका तक है। यह बिहार का प्राचीनतम भू-खंड है, जिसमें कैमूर या रोहतास का पठार, गया का दक्षिणी भाग, गिरियक की पहाड़ी, नवादा, बाँका एवं मुंगेर का पहाड़ी क्षेत्र सम्मिलित है।
Note:
दोआब क्षेत्र – दो नदियों के बीच स्थित भू-भाग को दोआब क्षेत्र कहा जाता है।

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