पादपों को समान उत्पत्ति तथा समान कार्यों को सम्पादित करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं। ऊतक के अध्ययन करने को ऊतक विज्ञान (Histology) कहा जाता है। ऊतक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम विचट (1771-1802) ने किया था। ऊतक की कोशिकाओं की विभाजन क्षमता के आधार पर पादप ऊतक दो प्रकार के होते हैं :
- विभाज्योतिकी ऊतक (Meristematic tissue)
- स्थायी ऊतक (Permanent tissue)
विभाज्योतिकी ऊतक (Meristematic tissue)
विभाज्योतिकी ऊतक ऐसी कोशिकाओं का समूह है जिनमें बार-बार सूत्री विभाजन (Mitosis division) करने की क्षमता होती है, और यह अवयस्क (Immature) जीवित कोशिकाओं का बना होता है। इस ऊतक की भित्ति सैल्यूलोज की बनी होती है।
स्थायी ऊतक (Permanent tissue)
विभाज्योतिकी ऊतक (अस्थायी ऊतक) की वृद्धि के बाद ही स्थायी ऊतक का निर्माण होता है। स्थायी ऊतक में विभाजन की क्षमता नहीं होती है लेकिन इनकी कोशिका का रूप एवं आकार निश्चित रहता है। इनकी कोशाद्रव्य में बड़ी रसधानी रहती हैं। सरंचना के आधार पर स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं –
- सरल रथायी ऊतक (Simple Permanent Tissue)
- जटिल ऊतक (Complex Tissue)
सरल रथायी ऊतक (Simple Permanent Tissue) – यह ऊतक समरूप कोशिकाओं का बना होता हैं।
जटिल ऊतक (Complex Tissue) – यह दो या दो से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है। ये एक इकाई के रूप में एक साथ कार्य करते हैं। ये जल, खनिज लवणों तथा खाद्य पदार्थ को पौधे के विभिन्न अंगों तक पहुंचाते हैं। जटिल ऊतक दो प्रकार के होते हैं –
- जाइलम (Xylem)
- फ्लोएम (Phloem)
जाइलम और फ्लोएम मिलकर संवहन बण्डल का निर्माण करते हैं। इस वजह से दोनों को संवहन ऊतक भी कहा जाता है।
जाइलम या दारू – यह पौधे की जड़, तना व पत्तियों में पाया जाता है। इसे चालन ऊतक (Conducting tissue) भी कहते हैं। ये पौधों को यांत्रिक सहारा प्रदान करते हैं तथा मिट्टी से खनिज तत्वों व जल का संवहन करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। पौधों के आयु की गणना जाइलम ऊतक के वार्षिक वलयों को गिनकर की जाती है । वार्षिक वलय का अध्ययन डेन्ड्रोक्रोनोलोजी (Dendrochronology) कहलाता है।
फ्लोएम या बास्ट – यह एक संचयक ऊतक हैं जो पौधों को यांत्रिक संचयन प्रदान करता है।