फल उत्पादन (Pomology)

फलों के उत्पादन से संबंधित अध्ययन को पोमोलॉजी (Pomology) कहा जाता है, विश्व में फलों का सर्वाधिक उत्पादन चीन में होता है।

फल उत्पादन का महत्व (Importance of Pomology)

फलों में विटामिन तथा खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते है, जो हमारे स्वास्थ्य व वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
फलों में विटामिन D को छोड़कर अन्य सभी विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। यह विटामिन हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
संतुलित आहार की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 92 ग्राम फलों का उपभोग अवश्य करना चाहिए।
Note : भारत केला, आम, अमरुद, कटहल, अनार, पपीता, सपोटा, और आवलं जैसे फलो का सबसे बड़ा उत्पादक है।

  • विटामिन (Vitamin): आम > पपीता > परसीमोन
  • विटामिन B1 (थायमिन): काजू > अखरोट > बादाम > अनानास
  • विटामिन B2 (राइबोफ्लेविन):  बेल > पपीता > काजू > लीची
  • विटामिन C (थायमिन): बारबेडोस चेरी >  आंवला > अमरुद > नींबू > नारंगी

कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates): यह ऊर्जा प्राप्ति का एक प्रमुख स्रोत है। यह निम्नलिखित फलों में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है।

  • जैसे – रेंजिन > अनन्नास > खजूर > करौंदा > केला > बेल > शरीफा > जामुन आदि।

प्रोटीन (Protein): यह निम्नलिखित फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

  • जैसे – काजू (21.2%) > बादाम (20.8%) > अखरोट (15.6%) आदि।

वसा (Fat): वसा हमारे शरीर में ऑक्सीकृत होकर सर्वाधिक मात्रा में ऊर्जा प्रदान करता है। यह निम्नलिखित फलों में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है।

  • जैसे – अखरोट (64.5%) > बादाम (58.9%) > काजू (46.9%) > एवोकैडो (22.8%)।

कार्बनिक अम्ल शरीर में पाचन-क्रिया को ठीक कर भूख बढ़ाने का कार्य करते है।

  1. साइट्रिक अम्ल (Citric acid) – बेरी, नींबू वर्ग के अंतर्गत आने वाले फल, अमरुद, नाशपाती आदि।
  2. मैलिक अम्ल (Malic Acid) – सेब, केला, चेरी, बेर व तरबूज आदि।
  3. टार्टरिक अम्ल (Tartaric acid) – इमली, अंगूर आदि।

फलों में खनिज तत्वों की उपलब्धता

  1. कैल्शियम (Calcium) – लीची > करौंदा > अखरोट > बेल
  2. आयरन (Iron) – करौंदा > खजूर > अखरोट > सेब
  3. फास्फोरस (Phosphorus) – बादाम > काजू > अखरोट > लीची

फलों का वर्गीकरण (Classification of Fruits)

जलवायु के आधार पर फलों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभक्त किया गया है –

  1. उष्ण कटिबंधीय फल (Tropical Fruits) – आम, केला, पपीता, अनन्नास, शरीफा, कटहल, काजू, चीकू, ब्राजील, नट एवं कमरख आदि।
  2. उपोष्ण कटिबंधीय फल (Sub-Tropical Fruits) – अंगूर, अंजीर, संतरा, नीबू*, अमरूद , एवोकैडो, लीची, बेर, खजूर, फालसा, अनार, ऑवला, लोकाट आदि।
  3. शीतोष्ण कटिबंधीय फल (Temperate Fruits) – सेब, नाशपाती, आडू, बादाम, खुबाना, चरी, चिलगोजा, स्ट्राबेरी, तेंद, रसभरी, अखरोट, पीकनट, चेस्टनट, हेजलनट आदि।

फलों के प्रकार के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया गया है।

  1. अष्टिफल (Drupe Type) – आम, बादाम, बेर, आलूचा, खूबानी, जामुन, नारियल, आडू आदि।
  2. बेरी (Berry Type) – पपीता, केला, चीकू, खजूर, बेरी, अमरूद आदि।
  3. पोम (Pome Type) – नाशपाती, लोकाट, सेब आदि।
  4. हेस्पेरिडीयम (Hesperidium) – सन्तरा, नीबू वर्ग आदि।
  5. साइकोनस (Cyconus) – अंजीर आदि।
  6. नट (Nut Type) – लीची, काजू आदि।
  7. कैप्सूल (Capsule) – ऑवला आदि।
  8. सोरोसिस (Sorosis) – शहतूत, अनन्नास, कटहल आदि।
  9. बेरी का पुँजफल – शरीफा
  10. ब्लॉस्टा – अनार आदि।
  11. कैरीओप्सिस – चावल, गेहूँ, मक्का, जौ आदि।

खाने वाले भाग के आधार पर फलों का वर्गीकरण 

फलों का खाने वाले भाग का वैज्ञानिक नाम (The scientific name of the edible part of a fruit) फल (Fruit)
बाह्य एवं मध्यफल भित्ति बेर, जामुन, फालसा, चेरी आदि।
मध्यफल भित्ति आम, केला, पपीता
एंडोस्पर्म (Endosperm) एवं एम्ब्रियो (Embryo) चावल, गेहूँ, मक्का, जौ
मध्यफल भित्ति एवं अन्तः फलभित्ति केला
मांसल एरिल (Fleshy Aril) लीची
मांसल पुष्पासन (Fleshy Thalamus) सेब, नाशपाती, लुकाट
परिदल पुंज शहतूत
बीज बादाम
एण्डोकार्पिक जूसी हेयर नींबू वर्ग के अंतर्गत आने वाले फल
फलभित्ति एवं प्लेसेंटा (Paricarp) अंगूर, अमरुद, टमाटर
एंडोस्पर्म (Endosperm), कोटीलीडंस व एम्ब्रियो (Embryo) नारियल
रसदार टेस्टा अनार

फलों के वृक्ष की रोपण विधियाँ (Fruits tree planting methods)

वर्गाकार विधि (Square System) – इस विधि के अंतर्गत वर्ग के चारो ओर वृक्ष लगाए जाते हैं। यह सर्वाधिक उपयोग में लायी जाने वाली विधि है।
आयताकार विधि (Rectangular System) – इस विधि के वर्गाकार की तरह ही आयत के चारो ओर वृक्ष लगाए जाते हैं। इस विधि से एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति के मध्य पेड़ों की दूरी काम रहती है, जिससे वर्गाकार विधि की तुलना में इस विधि से अधिक पेड़ लगाए जा सकते है। .
पंचकोण विधि – यह विधि के  वर्गाकार विधि के ही सामान है, किंतु इस विधि में प्रत्येक वर्ग के मध्य में एक वृक्ष और लगाया  जाता हैं, जिसे बाद में निकाल दिया जाता है। पंचकोण विधि से  वर्गाकार विधि की की तुलना में लगभग दो गुना पेड़ लगाये जा सकते हैं।
षट-भुजाकार विधि (Hexagonal Method) – इस विधि के अंतर्गत सभी 6 दिशाओं में पेड़ों के बीच की दूरी सामान रहती है। इस विधि को समत्रिबाहु त्रिभुज विधि के नाम से भी जाना जाता है।
परिरेखा विधि (Contour Method) – यह विधि मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में प्रयोग की जाती है। यहाँ इन्हें ढाल के विपरीत दिशाओं में लगाया जाता हैं, जिससे मृदा कटाव को कम किया जा सकता है।
त्रिभुजाकार विधि (Triangular Method) – इस विधि के अंतर्गत उच्च घनत्व रोपण का प्रयोग किया जाता है, जिससे अधिक से अधिक पौधों को लगाया जा सके।


Note:
पुष्प के अण्डाशय (ovary) के परिवर्धित भाग को फल कहते हैं। फल के दो भाग होते हैं

  1. फल भित्ति (Pericorp)
  2. बीज (Seed)

फलभित्ति (Pericorp) का निर्माण अण्डाशय (ovary) की बाहरी परत से तथा बीज (Seed) का निर्माण बीजाण्ड (Ovul) से होता है।
आभासी फल (False Fruit) – वह फल जिनका विकास पुष्प के अन्य भागों जैसे – पुष्पासन, बाह्यदल, आदि से होता है, उन्हें आभासी फल कहा जाता हैं। जैसे – सेब, लीची, कटहल, अनन्नास, नाशपाती आदि।
पार्थेनोकार्पिक फल /अनिषेक फल (Partheno Carpic Fruits) – वह फल जिनका विकास अण्ड कोशिका (Egg Cell) से बिना निषेचन के होता है, ऐसे फलों को अनिषेक फल कहते है। उन्हें अनिषेक फल कहा जाता हैं। जैसे – अंगूर, केला व पपीता आदि।

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