लोक सभा की शक्तियां और कार्य

लोकसभा संसद का निम्न सदन है। किन्तु वह राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है। यह जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व करने वाला सदन है। इसकी शक्तियों एवं कार्यों  निम्नलिखित रूप में उल्लेखित है-

1. व्यवस्थापिका सम्बन्धी शक्ति:

प्रत्येक विधेयक को विधि बनाने के पूर्व लोकसभा की स्वीकृति आवश्यक है। राज्यसभा में यदि कोई विधेयक पुनः स्थापित किया गया है। तो उस विधेयक को भी लोकसभा द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है।

यदि किसी साधारण विधेयक के सम्बन्ध में संसद के दोनों सदनों में कोई मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो गत्यावरोध दूर करने के लिए राष्ट्रपति अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन (Joint session) आहूत करता है। लोकसभा की लगभग दुगुनी सदस्य संख्या कारण अन्तिम निर्णय लोकसभा द्वारा ही होता है। इस प्रकार कानून निर्माण के क्षेत्र में लोक ही अधिक शक्तिशाली है।

2. कार्यपालिका पर नियंत्रण की शक्ति (Power of control of the executive):

भारतीय संविधान के द्वारा संसदीय शासन व्यवस्था की स्थापना की गयी हैं। व्यवहारतः संसदीय शासन-प्रणाली में कार्यपालिका (मंत्रिपरिषद) को लोकसभा के नियंत्रण के कार्य करना पड़ता है। भारत में लोक-सभा का कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिपरिषद पर पूर्ण नियंत्रण है।

अनुच्छेद 75(3) के अनुसार मंत्रिपरिषद केवल उसी समय तक अपने पद पर बनी रहती है। जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। यदि लोकसभा मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर देती है तो मंत्रिपरिषद को तुरन्त त्यागपत्र देना पड़ता है।

लोकसभा के सदस्य मंत्री, सरकारी नीति के सम्बन्ध में व सरकार के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं, ‘काम रोको प्रस्ताव’ व निन्दा का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं, उसकी नीति की आलोचना कर सकते हैं।

कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति के अन्तर्गत ही लोकसभा संघीय लोकसेवा आयोग, भारत के नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, भाषा आयोग व अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग की रिपोर्ट पर विचार करती है।

3. वित्तीय शक्ति (financial strength):

भारतीय संविधान द्वारा वित्तीय क्षेत्र में शक्ति लोकसभा को ही प्रदान की गयी है। इस सम्बन्ध में राज्यसभा की स्थिति बहुत अल्प है। अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक (Money Bill) लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं। लोकसभा से पारित होने के बाद धन विधेयक राज्यसभा में भेजा जाता है धन विधेयक की प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के अन्दर-अन्दर विधेयक लोकसभा को लौटाना अनिवार्य है। राज्यसभा विधेयक में संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है, लेकिन उन्हें स्वीकार करना या न करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है।

4. संवैधानिक संशोधन की शक्ति (Power of constitutional amendment):

अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान संशोधन प्रक्रिया यह है कि संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में पुनः स्थापित किया जा सकता है और प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम 2/3 बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होता है। संशोधन विधेयक पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करने का कोई प्रावधान नहीं है।

5. अन्य शक्तियां और कार्य (Other Powers and Functions):

लोकसभा कुछ अन्य कार्य भी करती है, जो इस प्रकार हैं-

i. संसद के दोनों सदनों में से कोई भी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग लगा सकती हैं। यदि राज्यसभा महाभियोग लगाती है तो लोकसभा आरोपों की जाँच करती है।

ii. अनुच्छेद 124(4) के अनुसार, लोकसभा, राज्यसभा के साथ मिलकर उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों का कदाचार या असमर्थता (Misbehaviour or Incapacity) के आधार पर पदच्युत करने का प्रस्ताव पारित कर सकती है।

iii. उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए प्रस्ताव पहले राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाता है, लोकसभा में नहीं।

iv. राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा को एक महीने के अन्दर संसद से स्वीकार कराना आवश्यक है, अन्यथा इस प्रकार की घोषणा एक महीने बाद स्वयं ही समाप्त मान ली जाती है।

v. राष्ट्रपति सर्वक्षमा (Amnesty) देना चाहे तो उसकी स्वीकृति संसद से लेनी आवश्यक है।

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