राष्ट्रपति की शक्तियां और कर्तव्य

राष्ट्रपति द्वारा किए जाने वाले कार्य व शक्तियां निम्न है —

कार्यकारी शक्तियां (Executive powers)

  • भारत सरकार के सभी शासन संबंधी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते है
  • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियो की नियुक्ति व उनके मध्य मंत्रालयों का वितरण करता है
  • महान्यायवादी (Attorney general) , महानियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG), मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्त , UPSC के अध्यक्ष , वित्त आयोग के अध्यक्ष व राज्यपाल (Governor) की नियुक्ति करता है
  • अनुसूचित जाति (SC) व अनुसूचित जनजाति (ST) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित एक आयोग की नियुक्ति कर सकता है व किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है
  • केंद्र व राज्यों के मध्य सहयोग के लिए एक अंतर्राज्‍यीय परिषद् (Interstate Council) नियुक्त कर सकता है
  • केंद्र से प्रशासनिक कार्यो संबंधित जानकारी मांग सकता है

विधायी शक्तियां (Legislative Powers)

  • अनु०- 79 के अनुसार राष्ट्रपति भारतीय संसद का अभिन्न अंग है। अत: इस रूप में उसे विधायी शक्तियां प्राप्त है।
  • राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का आवाहन व सत्रावासन कर सकता है तथा लोकसभा को विघटित कर सकता है।
  • प्रत्येक चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष में प्रथम अधिवेशन को राष्ट्रपति संबोधित करता है।
  • संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। इसकी अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा की जाति है (अनु०-108)
  • राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 तथा लोकसभा में 2 एंग्लो-इंडियन (anglo-indian) को मनोनीत करता है।
  • विधयेक संबंधी शक्तियां

वित्तीय शक्तियां (Financial powers)

  • धन विधेयक (Money Bill) राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जाता है।
  • अनुदान या वित्त की कोई भी मांग राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती।
  • भारत की संचित निधि से अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है।
  • केंद्र व राज्य के मध्य राजस्व वितरण के लिए प्रत्येक 5 वर्ष में वित्त आयोग का गठन करता है।

न्यायिक शक्तियां (Judicial powers)

  • राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश तथा उच्च व उच्चतम न्यायालयों के उच्च न्यायधीशों की नियुक्ति करता है।
  • उच्चतम न्यायालय से (किसी विधि / तथ्य पर) सलाह ले सकता है , किंतु सलाह मानने को बाध्य नहीं है।
  • अनु०-70 के अंतर्गत क्षमादान की शक्ति प्राप्त है अत: वह किसी दंड को पूर्णत: क्षमा या उसकी प्रकृति बदल सकता है। यह क्षमादान केवल 3 प्रकार के दंडो के संदर्भ में है –
    1. यदि दंड किसी सैन्य न्यायालय द्वारा दिया हो।
    2. यदि दंड केंद्रीय कार्यपालिका के क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मामलों के संदर्भ में हो।
    3. अपराधी को मृत्युदंड दिया हो।

राष्ट्रपति इसका प्रयोग केवल मंत्रिमंडल की सलाह के अनुसार ही कार्य करता है।

सैन्य शक्तियां (Military powers)

राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का प्रमुख होता है और वह युद्ध या इसकी समाप्ति की घोषणा करता है लेकिन संसद की सलाह के अनुसार।

आपातकालीन शक्तियां (Emergency Powers)

  • अनु०-352 राष्ट्रीय आपातकाल
  • अनु०- 356/365 राष्ट्रपति शासन
  • अनु०- 360 वित्तीय आपातकाल

राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति 

अनु०-72 के अंतर्गत राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्तियां निम्न प्रकार से प्राप्त है–

क्षमादान (Pardon) 

इसके द्वारा दोषी को दिया गया दंड पूर्णत: समाप्त हो जाता है तथा व्यक्ति सभी आरोपों व दंड से मुक्त हो जाता है।

प्रविलंबन (Reprieve)

इसके द्वारा किसी दंड (विशेषकर मृत्यु दंड) को अस्थायी रूप से टालना है। इसका प्रयोग दंड के अनुपालन में विलम्ब हेतु होता है। राष्ट्रपति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है किंतु राज्यपाल नहीं।

लघुकरण 

इसके द्वारा किसी व्यक्ति के दंड के स्वरुप में परिवर्तन किया जा सकता है। जैसे- मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में परिवर्तित करना।

परिहार  (Remission)

इसके अंतर्गत राष्ट्रपति किसी अपराधी की सजा की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी सजा की अवधि को कम कर सकता है। जैसे – 5 वर्ष के कारावास को 2 वर्ष के कारावास में परिवर्तित करना।

विराम (Respite)

इसके अंतर्गत राष्ट्रपति कुछ विशेष परिस्थितियों में अपराधी की सजा को कम कर सकता है । जैसे – शारीरिक अपंगता व महिलाओं को गर्भावस्था की अवधि के कारण

राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां (President’s veto powers)

राष्ट्रपति को निम्न तीन प्रकार की शक्तियां प्राप्त है जिनका उपयोग वह निम्नलिखित तरीके से करता है —

आत्यांयिक वीटो (Absolute Veto) 

इस वीटो शक्ति के द्वारा राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अपने पास सुरक्षित रखता है (अर्थात् इस पर अनुमति नहीं देता) अत: यह विधेयक समाप्त हो जाता है। यह वीटो 2 प्रकार से लागू होता है –

  • गैर – सरकारी सदस्यों के विधेयक के संबंध में (वह विधेयक जो किसी व्यक्ति द्वारा संसद में पेश किया गया हो)
  • सरकारी विधेयको के संबंध में जब मंत्रिमंडल त्यागपत्र दे दे

निलंबनकारी वीटो (Suspension veto)

जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को संसद के पास पुनर्विचार हेतु वापस भेजता है तो वह निलंबनकारी वीटो का प्रयोग करता है , लेकिन जब संसद पुन: इसे बिना किसी संसोधन के राष्ट्रपति के पास भेजती है तो वह इसे सहमति देने के लिए बाध्य है।

पॉकेट वीटो (Pocket Veto)  

जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर ना तो सहमति देता है और ना ही अस्वीकृत करता है और न ही पुनर्विचार हेतु वापस भेजता है परंतु अनिश्चित काल के लिए विधेयक लंबित कर देता है।

Note :

1986 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा भारतीय डाक संसोधन अधिनियम के संबंध में पॉकेट वीटो का प्रयोग किया गया। राजीव गाँधी द्वारा पारित इस विधेयक में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लागए व इसकी आलोचना हुई थी। 1989 में राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने यह विधेयक राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के पास भेजा किंतु सरकार ने इसे रद्द कर दिया ।

अनु० – 123  राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति (Power of issuing president’s ordinance)

अनु०- 123 के अंतर्गत जब संसद का अधिवेशन ना चल रहा हो तो इस अवधि में राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान है , यह अध्यादेश उतना ही महत्वपूर्ण व शक्तिशाली होता है जितना की संसद द्वारा पारित किया गया विधेयकइसके अंतर्गत निम्न लिखित प्रावधान है –

  • यह अध्यादेश (Ordinance) संसद का अगला सत्र प्रारंभ होने के केवल 6 सप्ताह तक ही मान्य रहता है
  • यदि संसद चाहे तो इस अवधि के पूर्व भी इन अध्यादेशो को समाप्त किया जा सकता है
  • राष्ट्रपति केवल उन्ही मामलों में अध्यादेश जारी कर सकता है जिनके बारे में संसद विधि (law) बना सकती है

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