विधानमंडल के पीठासीन अधिकारी

राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन का अपना पीठासीन अधिकारी होता है विधानसभा के लिए अध्यक्ष व उपाध्यक्ष और विधान परिषद् के लिए सभापति व उप-सभापति होते है । 

विधानसभा

अनु० – 178 के अनुसार प्रत्येक राज्य की विधानसभा अपने सदस्यों के मध्य से ही विधानसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव करती है। 
पद रिक्ति 

  • यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष की विधानसभा सदस्यता समाप्त हो जाए। 
  • अध्यक्ष द्वारा उपाध्यक्ष को और उपाध्यक्ष द्वारा अध्यक्ष को अपना त्यागपत्र देकर। 
  • विधानसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को विशेष बहुमत द्वारा संकल्प पारित करके हटाया जा सकता है , लेकिन इसे लेन से 14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है। 

 

विधान परिषद 

विधान परिषद् के सदस्य अपने मध्य से ही सभापति उप-सभापति का चुनाव करती है। 
पद रिक्ति 

  • यदि सभापति उप-सभापति की विधान परिषद् सदस्यता समाप्त हो जाए। 
  • सभापति द्वारा उप-सभापति को और उप-सभापति द्वारा सभापति को अपना त्यागपत्र देकर। 
  • विधान परिषद् सभापतिउप-सभापति को विशेष बहुमत द्वारा संकल्प पारित करके हटाया जा सकता है , लेकिन इसे लेन से 14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है। 

विधानमंडल के विशेषाधिकार 

  • राज्य के विधान मंडल या उसकी किसी समिति में विधानमंडल के किसी सदस्य द्वारा की गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कार्यवाही नहीं की जा सकती। 
  • विधानमंडल के किसी सदस्य को सदन चलने के 40 दिन पूर्व व 40 दिन बाद तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है , यह प्रावधान केवल सिविल मामलों में है न की आपराधिक या प्रतिबंधिक निषेध मामलों में । 
  • सदन की कार्यवाही के दौरान सदस्य अदालत में साक्ष्य देने व गवाह के रूप में उपस्थित होने से इंकार कर सकते है । 

राज्य विधानमंडल सत्र

राज्यपाल द्वारा  दोनों सदनों को ऐसे अन्तराल पर आहूत करेगा की एक सत्र की अंतिम बैठक व अगले सत्र की प्रथम बैठक के मध्य 6 माह से अधिक का अंतराल ना हो। संसद की बैठक को निम्न तरीको से समाप्त किया जा सकता है —

  • स्थगन
  • अनिश्चितकालीन स्थगन
  • सत्रावसान
  • विघटन (केवल लोकसभा में )

संसद की प्रत्येक बैठक में दो सत्र होते है – प्रात: 11:00 a.m से 1:00 p.m और दोपहर 2:00 p.m से 6:00 p.m तक

स्थगन

जब अध्यक्ष के द्वारा संसद की बैठक के कार्य को कुछ निश्चित समय (कुछ घंटे , कुछ दिन , कुछ सप्ताह) के लिए स्थगित किया जाता है।

 अनिश्चितकालीन स्थगन 

जब अध्यक्ष या सभापति द्वारा सदन को बिना सूचना दिए स्थगित कर दिया जाता है है की सदन को पुन: किस दिन आहूत किया जाएगा।

सत्रावसान 

जब विधानसभा अध्यक्ष या विधान परिषद सभापति द्वारा सदन के पूर्ण होने पर अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया जाता है किंतु राज्यपाल सत्र के दौरान भी संसद का सत्रावसान कर सकता है।

विघटन

विधान परिषद के स्थायी सदन होने के करण इसका विघटन नहीं किया जा सकता , जबकि विधानसभा अस्थायी सदन होने के कारण विघटित हो सकती है।विधानसभा को दो तरीको से विघटित किया जा सकता है —

  • स्वंय विघटन — लोकसभा का 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने पर
  • सदन में बहुमत न होने की स्थिति में राज्यपाल विधानसभा  विघटन का निर्णय ले ले ।

विधानसभा के विघटन होने की स्थिति में इसके संपूर्ण कार्य जैसे – विधेयक , प्रस्ताव संकल्प नोटिस , याचिका आदि समाप्त हो जाते है जो विधानसभा या विधान परिषद्  नवगठित विधानसभा द्वारा पुन: लाना आवश्यक है। जबकि विधान परिषद्  के द्वारा पारित विधेयक या प्रस्ताव विधानसभा के भंग होने की स्थिति में समाप्त नहीं होते है ।
Note:

  • सामान्य विधेयक को  विधानसभा व विधानपरिषद किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है , किंतु सामान्य विधेयक पर अंतिम शक्ति विधानसभा के पास है
  • विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को प्रथम बार में विधान परिषद् केवल 3 माह तक रोक सकती है । यदि 3 माह बाद विधेयक विधानसभा द्वारा पुन: पारित कर दे तो विधानपरिषद विधेयक को अधिकतम 1 माह तक और रोक सकती है। इस प्रकार विधानसभा किसी विधेयक को अधिकतम 4 माह तक रोक सकती है

गणपूर्ति (कोरम)

गणपूर्ति वह न्यूनतम सदस्य संख्या है जिनकी उपस्थिति में सदन का कार्य सम्पादित किया जाता है , इसका अर्थ है की सदन चलाने के लिए कम से कम उस सदन की की कुल सदस्य संख्या का 1/10 सदस्य होना अनिवार्य है।

साइन डाई (Sine Die)

सदन का अध्यक्ष या सभापति सदन की अगली बैठक की तिथि घोषित किए बिना सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर देता है तो इसे Sine Die कहते है ।

सदन में मतदान 

संविधान  में उल्लेखित कुछ विशिष्ट मामलों के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है । जैसे –   राष्ट्रपति , उच्चतम व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश , संविधान संसोधन , लोकसभा व राज्यसभा अध्यक्ष आदि । मतदान की प्रक्रिया में प्रस्ताव के पक्ष में मत देने के लिए अये (Aye) और विपक्ष में मत देने के लिए नो (No) प्रयोग होता है।

लेक डक 

यह नई लोकसभा के गठन से पूर्व वर्तमान लोकसभा के वें सदस्य होते है जो नयी लोकसभा हेतु निर्वाचित नहीं हो पते लेक डक  कहलाते है ।

संसद में भाषा 

संविधान ने हिंदी व अंग्रेजी को सदन की कार्यवाही भाषा घोषित किया था , लेकिन पीठासीन अधिकारी किसी भी सदस्य को अपनी मातृभाषा  में बोलने  का अधिकार दे सकता है और उसके सामानांतर अनुवाद की भी व्यवस्था है। यह व्यवस्था की गई थी की संविधान लागू होने के 15 वर्षों के बाद अंग्रेजी स्वंय (1965) ही समाप्त हो जाएगी , किंतु  राजभाषा  अधिनियम 1963 हिंदी के साथ अंग्रेजी की निरंतरता की अनुमति देता है।
 
 

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