संत सिंगाजी (Sant singaji)
- जन्म – वर्ष 1576 (ग्राम खजूरी, बड़वानी जिला)
- मृत्यु स्थान – नर्मदा नदी के समीप
संत सिंगाजी, कबीर के समकालीन तथा उनके सामान ही निर्गुण भक्ति धारा के कवि थे। इनकी रचनाओं में कबीर के दर्शन की अभिव्यक्ति झलकती है, तथा इन्होंने कबीर के सामान ही ‘साखियाँ’ लिखी।
संत सिंगाजी द्वारा निर्गुण भक्ति धारा के लगभग 1100 लोकपद रचे गए, यह सिंगाजी प्रथम कवि थे, जिन्होंने खेती व गृहस्थी से संबंधित लोक प्रतीकों का प्रयोग निमाड़ी कविता में किया। संत सिंगाजी द्वारा दिए गए आध्यात्मिक संदेश इन्हीं कविताओं में समाहित है।
रचनाएँ
- निमाड़ी भाषा में – सात बार, बारहमासी, पंद्रह तिथि, दोषबोध, शरद आदि।
- ग्रंथ – ‘परचरी’ (इसका संकलन उनके शिष्य खेमदास द्वारा किया गया)
घाघ (Ghag)
- जन्म – वर्ष 1753 (कन्नौज के समीप)
लोककवि घाघ एक महान कृषि पंडित थे। लोककवि घाघ, मुगल बादशाह अकबर के समकालीन थे, तथा अकबर द्वारा इन्हें चौधरी की उपाधि की उपाधि से सम्मानित किया गया।
घाघ द्वारा की गयी रचनाओं से भूमि की उर्वरा शक्ति, फसलों के बोने, बीजों के मध्य की दूरी आदि का तार्किक ज्ञान कराया, इनके द्वारा की गयी रचनाएँ कृषकों के लिए कृषि मार्गदर्शन का कार्य करती थीं।
रचनाएँ
घाघ (इसका प्रकाशन रामनरेश त्रिपाठी द्वारा किया गया)।
जगनिक (Jagnik)
जगनिक (Jagnik) बुंदेली भाषा के कवि थे, यह कालिंजर के राजा परमाल चंदेल के दरबारी कवि तथा हिंदी कवि चंदरबदाई (Chanderbadai) के समकालीन थे। । इनके द्वारा रचित ‘आल्हाखंड’ काव्य मौखिक परंपरा के आधार पर निरंतर लोकप्रिय रहा है, 800 वर्षों से लगातार आल्हा-ऊदल की शौर्यगाथा, बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश) में आज भी गाई जाती है। आल्हाखंड (परमाल रासो) में जगनिक द्वारा महोवा के वीरों आल्हा और ऊदल की वीरता का वर्णन किया है। जगनिक द्वारा आल्हा-ऊदल की 52 लड़ाइयों का वर्णन ओजपूर्ण शैली में किया गया।
Note:
-
- आचार्य रामचन्द्र शक्ल के अनुसार जगनिक का समय संवत् 1230 माना जाता है।
- आल्हा प्रायः वर्षा ऋतु में गाया जाता है।
रचनाएँ
आल्हाखंड (परमाल रासो)
ईसुरी (Isuri)
- जन्म – वर्ष 1898 (ग्राम – मेढ़की, झाँसी जिला, उत्तर प्रदेश)
- उपनाम – जयदेव
ईसुरी बुंदेली भाषा (बुंदेलखंड) के लोक कवि थे, इनके द्वारा रचित ‘फाग’ से बुंदेली लोक साहित्य विशेष समृद्धि प्राप्त हुई। ईसुरी ने चौघड़िया फागों की रचना की, इन्होंने हज़ारों उपमाएँ और रूपक की रचना बुंदेली भाषा में की गयी। गंगाधर व्यास और ख्यालीराम, इनके समकालीन थे, इन तीनो की जोड़ी बुंदेलखंड में ‘वृहत्रयी’ के नाम से प्रचलित थी।
रचनाएँ
- ‘इसुरी की फागें’
- ईसुरी प्रकाश
- ईसुरी सतसई
- प्रेमिका रजऊ