प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoan disease)

प्रोटोजोआ (Protozoa) एक एकल-कोशिका वाला जीव है जो एक यूकेरियोट है (जो ऐसे जीव हैं जिनकी कोशिकाओं में झिल्ली-बंधे हुए जीव और नाभिक होते हैं)। यूकेरियोट्स में, अन्य जानवर और पौधे भी शामिल हैं। यूकेरियोट्स में सूक्ष्मजीव भी शामिल हैं जैसे – शैवाल, हेल्मिन्थ्स, और कवक।
प्रोटोजोआ से होने वाली बीमारी-

1. मलेरिया(Malaria):

इसे जूडी बूखार भी कहते है मलेरिया शब्द इटेलियन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है गन्दी वायु ।

  • रोग जनक– प्लाज्मोडियम
  • वाहक– मादा एनोफलिज मच्छर

मलेरिया परजीवी से सम्बन्धित खोजें –

  • मैक्यूलांक ने 1827 में मलेरिया शब्द को प्रतिपादित किया।
  • चार्ल्स लैवरान ने 1880 में प्लाज्मोडियम को मनुष्य के रक्त में देखा।
  • रोनाल्ड रॉस ने मादा एनोफिलीज के आमाशय पर उसिस्ट को देखा।
  • मार्चियफेवा तथा सिलाई ने प्लाज्मोडियम शब्द दिया।
  • प्लाज्मोडियम का जीवन चक दो परपोषीयो में पूरा होता हैं।
    • प्राथमिक परपोषी – मनुष्य
    • द्वितीयक परपोषी – मादा एनोफिलीज
  • मनुष्य में सर्वाधिक प्रभावित अंग यकृतप्लीहा होता है।

लक्षण– बुखार का आना, कपकंपी लगने के साथ ठंड लगती है, शरीर और सिर में दर्द भी होता है और अत्यधिक पसीना आता है।
उपचार– मलेरिया रोग के उपचार के लिए सबसे पुरानी औषधि कुनैन है। जिसको सिन्कोना पेड की छाल से प्राप्त किया जाता है। इसके अलावा रीसोचिन, केमाक्विन,दाराप्रिन मेपाकिन, निवाक्विन आदि।

2. डायरिया (Diarrhea):

  • रोग जनक– जियार्डिया इण्टेस्टानेलिया (Giardia intestinalis)
  • ये मानव की ऑत में पाया जाता है। तथा द्विवखण्डन के द्वारा तीव्रता से विखण्डन करता है इसका संक्रमण बच्चों में अधिक होता है।
  • इस परजीवी का संचरण पुटियों के द्वारा होता है।जब ये पुटियॉ मल के साथ त्याग दी जाती है।तो इनसे मक्खियों भोज्य पदार्थों तथा जल को दूषित कर देती है।

लक्षण– इस रोग में रोगी को पतले दस्त हो जाते है मरीज को पेटदर्द, भूख की कमी , सिर दर्द की शिकायत होती है।
उपचार– इस रोग में एटेब्रिन असरकारक दवा है। साथ ही स्वच्छता पर ध्यान देना अति आवश्यक है।

3. अमीबिक पेचिश (Amebic dysentery)

रोग जनक- एण्टअमीबा हिस्टोलिका
लॉश 1875 ने इसकी रोग जनकता का पता लगाया। मनुष्य की बड़ी आंत के कॉलन वाले भाग मे पाया जाता है। ये बड़ी आंत की दीवार की कोशिकाओं को खाकर ऑत मे फोडे उत्पन्न करते है।ये फोडे फूटने के बाद आँत में पेचिश के रूप में बाहर आता है। एण्ट अमीबा के ट्राफोज्वाएटस संक्रमण उत्पन्न करता है।
वाहक– घरेलू मक्खियों द्वारा फैलता हैं।
लक्षण- इस रोग से पीडित व्यक्ति के शरीर तथा पेट में ऐंठन के साथ साथ सुस्ती तथा कमजोरी अनुभव होती है।
उपचार– ऐमेटीन के इन्जेक्शन,एन्ट्रीकोनाल,आइरोफार्म,मेक्साफार्म दवाईया।

4. अफ्रीकन निद्रा रोग (African sleep sickness):

  • रोगजनक– ट्रिपैनोसोमा गैम्बिएन्स
  • वाहक– सी-सी मक्खी (Tsetse fly)
  • लक्ष्ण- रोगी को निद्रा आती ह तथा बुखार आता है,तन्त्रिका तंत्र असामान्य रहता है।

5. काला अजर (black azar disease):

  • रोगजनक– लीशमानिया डोनोवनी
  • वाहक– बालू मक्खी
  • लक्षण- इसमें रोगी को तेज बुखार आता है तिल्ली एवं यकृत का बढ जाना।
  • बचाव- इसके बचाव हेतू मच्छर दानी का प्रयोग करना चाहिए।

6. पायरिया (periodontitis):

  • रोग जनक– एन्टअमीबा जिन्जिवेलिस
  • यह मसूढ़ों का रोग हैं। इसमें मसूढ़ों से पस निकलता है तथा दांतो से रक्त निकलता है तथा मुहँ से दुर्गन्ध आती है। दांत ढीले होकर गिरते है।

उपचार– पेनीसिलीन का टीका तथा खाने में प्रचुर मात्रा में विटामीन सी होना चाहिए।

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