रजिया सुल्तान – Razia Sultan (1236 – 1240 ई.)

राज्यारोहण – जनता के समर्थन से नवंबर 1236 ई. में राज्यारोहण किया गया।
उपाधि – उमदत- उल-निस्वा

रज़िया अल-दिन, शाही नाम “जलॉलात उद-दिन रज़ियॉ”  जिसे सामान्यतः “रज़िया सुल्तान” या “रज़िया सुल्ताना” के नाम से जाना जाता है, दिल्ली सल्तनत प्रथम महिला सुल्तान तथा इल्तुत
मिश की पुत्री थी। रज़िया सुल्ताना  तुर्की इतिहास की प्रथम मुस्लिम महिला शासक थीं। रज़िया सुल्तान के गद्दी पर बैठने के लिए दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सर्वप्रथम उत्तराधिकार के प्रश्न पर दिल्ली की जनता ने पहली बार निर्णय लेकर सुल्तान को चुना था|

प्रारंभिक कार्य

रजिया ने  जनता से सीधा संबंध स्थापित करने के लिए  महिलाओं के वस्त्र त्याग दिए तथा पुरुषों पुरुषों के सामान कबा ( कुर्ता )और कुलाह (पगड़ी) पहनना तथा दरबार में उपस्थित होना प्रारंभ किया|
रजिया ने इल्तुतमिश के भूतपूर्व वजीर निजामुल मुल्क जुनैदी के नेतृत्व में प्रांतीय शासकों के गठबंधन को समाप्त कर दिया|

विद्रोह

रजिया ने तुर्क सामंतों की शक्ति को समाप्त करने के लिए और गैर तुर्क सामंतो को प्रोत्साहन और प्रोन्नति देना प्रारंभ किया| तुर्क सामंत जातीय स्वयं को श्रेष्ठ मानते थे,अतः गैर तुर्क सामंतों को प्रोत्साहन और प्रोन्नति से उनमे असंतोष बढ़ने लगा| रजिया के विश्वासपात्र , मलिक इख्तियारुद्दीन एतगीन और अल्तुनिया ने रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र रचा|
सर्वप्रथम 1240ई. में लाहौर के सूबेदार (इक्तादार) कबीर खॉ एयाज ने रजिया सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह किया किन्तु रजिया ने शीघ्र ही इस विद्रोह का दमन किया तथा कबीर खॉ एयाज ने आत्म समर्पण कर दिया|
इस विद्रोह के दमन के 10 दिन बाद एतगीन के इशारे पर भटिंडा के सूबेदार अल्तुनिया ने विद्रोह कर दिया, रजिया ने शीघ्र ही इस विद्रोह के दमन के लिए तबरहिंद (भटिंडा) की ओर प्रस्थान किया किन्तु इस समय राजधानी के कुछ अमीर गुप्त रुप से अल्तुनिया का समर्थन कर रहे थे तथा अमीरों ने रजिया के विश्वासपात्र याकूत की हत्या कर दी थी| इस युद्ध में रजिया को पराजित कर भटिंडा के किले में कैद कर दिया |

बहराम शाह

रजिया के कैद होते ही तुर्क अमीरों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहरामशाह को शासक बनाया तथा शासक बनने के बाद बहराम शाह ने नाइब-ए -मामलिकात का नवीन पद सृजित किया
सर्वप्रथम यह पद विद्रोहियों के नेता एतगीन को दिया गया किंतु अल्तुनिया इस निर्णय से असंतुष्ट हो गया, रजिया ने अल्तुनिया के इस असंतोष का लाभ उठाकर उसे अपने पक्ष में मिलाकर उससे विवाह कर लिया क्योकिं रजिया अल्तुनिया की सहायता से पुनः अपना सिंहासन प्राप्त करना चाहती थी तथा अल्तुनिया को भी अपने पद और सम्मान में वृद्धि की आशा थी|

मृत्यु

अल्तुनिया और रजिया ने बहराम शाह से युद्ध करने के लिए खोखर, राजपूत और जाटों को सम्मिलित कर दिल्ली की ओर बढे किंतु बहराम शाह के हाथों पराजित हो कर वापस लौटते समय मार्ग में कैथल के निकट रजिया और अल्तुनिया एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे तभी दिसंबर 1240 को डकैतों द्वारा उनकी हत्या कर दी गयी|
Note:
सर्वप्रथम रजिया ने सामंत वर्ग की शक्ति को तोड़ने और तुर्क शासक वर्ग की शक्ति को संगठित करने का प्रयास किया, इस दृष्टि से रजिया, अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक की अग्रगामी थी|

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