राज्य मानवाधिकार आयोग (State Human Rights Commission)

राज्य मानवाधिकार आयोग (State Human Rights Commission) एक गैर – संवैधानिक (Non Constitunioal) किंतु सांविधिक निकाय (Statutory body) निकाय है , जिसका गठन  संसद द्वारा पारित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (1993) के द्वारा किया गयावर्तमान में देश के 24 राज्यों  में आयोग के मुख्यालय है |
राज्य मानवाधिकार आयोग केवल उन्हीं मामलों की जाँच कर सकते है जो राज्य सूची में वर्णित (सूची – 2) तथा समवर्ती सूची में वर्णित (सूची – 3) के अंतर्गत आते है |

संरचना

राज्य मानवाधिकार आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय है , जिसमे एक अध्यक्ष व 2 अन्य सदस्य होते है, जो इसमें पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर कार्यरत रहते है —

  • आयोग का अध्यक्ष – उच्चतम नयायालय का सेवानिवृत न्यायाधीश होना चाहिए |
  • एक सदस्य उच्चतम न्यायालय में कार्यरत अथवा सेवानिवृत न्यायाधीश |
  • जिला न्यायालय (District Court) का न्यायाधीश जिसे 7 वर्ष का अनुभव अथवा कोई अन्य व्यक्ति जिसे मानवाधिकार से संबंधित जानकारी अथवा कार्यानुभव होना चाहिए |

Note : मानवाधिकार संरक्षण संसोधन  अधिनियम – 2006 के द्वारा राज्य मानवाधिकार आयोग आयोग के सदस्यों की संख्या 5 से घटाकर 3 कर दी गयी

नियुक्ति व कार्यकाल 

आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल  द्वारा  , मुख्यमंत्री  (Cheif Minister) के  नेतृत्व में गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर करता है , जिसमें निम्न सदस्य शामिल होते है –

  • मुख्यमंत्री (अध्यक्ष)
  • विधानसभा अध्यक्ष
  • राज्य गृहमंत्री (State Home Minister)
  • विधानमंडल के दोनों सदनों (विधानसभा व विधान परिषद्  ) में विपक्ष का नेता

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु अर्थात जो पहले पूर्ण  हो निर्धारित किया गया है  | अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद इसके अध्यक्ष व अन्य सदस्य केंद्र सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी नियोजन के पात्र नहीं होंगे |

आयोग के कार्य

  • मानव अधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना [ स्व-प्ररेणा (sumoto) या न्यायालय के आदेश से ]
  • जेलों में कैदियों के मानवाधिकारों की समीक्षा व इससे संबंधित सिफ़ारिश करना  |
  • देश के लोगों के मध्य मानवाधिकारों से संबंधित जागरूकता फैलाना  |
  • मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठन (NGO) प्रोत्साहन देना  |
  • न्यायालय में लंबित मानवाधिकारों के मामलों में हस्तक्षेप करना |
  • मानवाधिकार से संबंधित अन्तराष्ट्रीय संधियों की समीक्षा तथा इनके क्रियान्यवन हेतु सिफारिशें करना |

शक्यियाँ व क्षेत्राधिकार 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का कार्यालय दिल्ली में  स्थित है तथा यह देश के अन्य स्थानों में भी अपने कार्यालय खोल सकता है | वर्तमान में देश के 24 राज्यों  में आयोग के मुख्यालय है |

  • आयोग केवल ऐसे मामलों की जाँच कर सकता है जिसे घटित हुए एक वर्ष से अधिक समय न हुआ हो ( अर्थात् – ऐसे मामलें में जिन्हें घटित हुए एक वर्ष से अधिक  समय हो गया हो )
  • आयोग को दीवानी न्यायालय (Civil Court) के समान शक्तियां प्राप्त है अत: इनका चरित्र भी न्यायिक है  |
  • मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित मामलों की समीक्षा के लिए स्वयं का जाँच दल है  |
  • आयोग केंद्र व राज्य सरकार से किसी भी जानकारी के संबंध में रिपोर्ट मांग सकता है |
  • आयोग मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित मामलों की जाँच के लिए संघ अथवा राज्य सरकारों के अधीन जाँच एजेंसियों की सेवाएं भी ले सकता है |
  •   राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा व्यक्ति को क्षतिपूर्ति हेतु राज्य सरकार या प्राधिकरण से तत्काल सहायता हेतु सिफ़ारिशें कर सकता है |

निष्कासन की प्रक्रिया 

राष्ट्रपति द्वारा आयोग के सदस्यों को निम्न परिस्थिति में किसी भी समय हटाया जा सकता है —

  • वह दिवालिया हो जाए |
  • वह अपने कार्यकाल के दौरान किसी आर्थिक नियोजन में लगा हो |
  • मानसिक या शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो |
  • न्यायालय द्वारा किसी अपराध में दोषी साबित हो |

राष्ट्रपति द्वारा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को कदाचार (Misbehaviour) व अक्षमता (Incapacity) के आधार पर भी हटाया जा सकता है , किंतु इस स्थिति में उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होने पर तथा आरोपों के सही पाएं जाने पर उच्चतम न्यायालय की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा अध्यक्ष व सदस्यों को उनके पद से हटाया जा सकता है |

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