यूरोप में प्रबोधन का युग (The era of enlightenment in Europe)

वैज्ञानिक आविष्कारों और अनुसंधानों के कारण न केवल विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि धर्म,राजनीति, अर्थव्वस्था, दर्शन, साहित्य आदि अनेक मानवीय क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उदय हुआ इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर विकसित दार्शनिक या वैचारिक क्रान्ति को प्रबोधन या ज्ञानोदय कहते हैं।

प्रबोधन की विशेषताएँ 

  • प्रयोग एव परीक्षण पर बल दिया
  • कार्यकरण सम्बन्ध का अध्ययन
  • मानवतावाद पर बल
  • देववाद – कोई परम सत्ता है और सभी प्राणी उसी ने बनाये हैं।
  • समानता
  • स्वतन्त्रता
  • प्रकृति पर बल – प्रकृति अपने सरल रूप में सौन्दर्य से परिपूर्ण है प्रकृति की और लोटना एक प्रकार स्वतन्त्रता की और लौटने के समान है।

पुनर्जागरण एवं प्रबोधन में अन्तर

पुनर्जागरण कालीन मध्यम वर्ग आत्मविश्वास से युक्त नहीं था अतः इस बात पर बल देता था कि अतीत से प्राप्त ज्ञान श्रेष्ठ है और बुद्धि की बात करते हुए उदाहरण के रूप में ग्रीक एवं लैटिन साहित्य पर बल देता था जबकि प्रबोधनकालीन मध्यम वर्ग में शक्ति और आत्मविश्वास आ चुका था यह तर्क के माध्यम से अपनी बात करता था।

पुनर्जागरण का बल ज्ञान के सैद्धान्तिक पक्ष पर अधिक था जबकि प्रबोधन चिंतन का मानना था कि ज्ञान वही है जिसका परीक्षण किया जा सके और जो व्यवहारिक जीवन में उपयोग में लाया जा सके। इनका बल व्यवहारिक ज्ञान पर था।

पुनर्जागरणकालीन वैज्ञानिक अन्वेषण निजी प्रयास का प्रतिफल था। दूसरी तरफ प्रबोधनकालीन वैज्ञानिक अन्वेषण तथा वैज्ञानिक क्रान्ति सामूहिक प्रयास का नतीजा था।

प्रबोधन कालीन प्रमुख चितंक 

फ्रांसिस बेकन :- ब्रिटिश विद्वान जिन्होंने शंका, ज्ञान के लिए अनुभव, जैसे विषयों की ब्रिटिश समाज में चर्चा का विषय बनाया शान के लिए अनुभव, तर्क एवं प्रमाण में प्रामण को सर्वाधिक उपयोगी माना।

फ्रांसिसी विद्वान देकार्त : फ्रांसिसी विद्वान देकार्त ने प्रत्येक विषय पर लोगों को संदेह करने के लिए प्रोत्साहित किया।

जॉन वाक :- ब्रिटिश विद्वान जॉन वाक ने मानव के प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन किया। इन्होंने कहा जीवन एवं सम्पत्ति की सुरक्षा तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मानव के प्राकृतिक अधिकार है। कोई भी सरकार चाहे वह राजतंत्रात्मक हों या लोकतन्त्रात्मक इन अधिकारों को छीन नहीं सकती। इनके विचारों का प्रभाव अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम, ब्रिटिश लोकतांत्रिक राजनीति एवं फ्रांसिसी क्रांति पर देखा गया।

वाल्तेयर :- फ्रांसिसी विचारक: “Letters on English’ नामक पुस्तक के माध्यम से ब्रिटिश लोकतांत्रिक संस्थाओं को फ्रांस तथा यूरोप में चर्चा का विषय बनाया।

  • निरंकुश राजतंत्र एवं धर्मतत्र का कटु आलोचक
  • अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रबल समर्थक

रुसो (फ्रांसीसी विचारक) :- आधुनिक लोकतन्त्र के विचारों को लोकप्रिय बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ‘Social Contract’ नामक पुस्तक में राज्य को सामाजिक समझौते का परिणाम माना अर्थात् लोगों ने राज्य का निर्माण किया। राज्य कोई ईश्वरीय संस्था नहीं है। यह सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है।

मॉन्टेस्क्यू (फ्रांसीसी विचारक) :- निरंकुश राजतंत्र की आलोचना की तथा शक्ति पृथक्करण को इसका विकल्प बनाया अर्थात शक्तियों का कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका नामक संस्थाओं में विभाजन तथा एक-दूसरे पर नियंत्रण व संतुलन ।

दीदरो (फ्रांसीसी विचारक) :- जिन्होंने प्रचलित सभी मुद्दों पर एक ‘इनसाइक्लोपीडिया’ (विश्वकोष) तैयार किया। इनका कहना था कि जिन विषयों पर प्रश्न नहीं उठाए गए वो प्रमाणिक नहीं हो सकते।

प्रबोधन कालीन चिंतकों का प्रभाव

राजनीति पर प्रभाव

  • प्रबोधनकालीन चिंतकों ने निरंकुशकारी राजतंत्र की आलोचना की। इनके विचारों ने फ्रांसीसी क्रान्ति, अमेरिकी क्रान्ति तथा ब्रिटिश लोकतांत्रिक राजनीति में परिवर्तन के सम्बन्ध में वैचारिक आधार प्रदान किया।
  • क्रान्ति के दौरान इनके विचारों को व्यावहारिक रूप देने की कोशिश की गई और इसी क्रम में आधुनिक राजनीति से सम्बन्धित कई नए प्रयोग किए गए। जैसे – संविधान का शासन, शक्ति के पृथक्करण पर आधारित संस्थाएँ, मूल अधिकारों का प्रावधान, निर्वाचन पद्धति की शुरुआत इत्यादि। ये सभी प्रयोग अमेरिका, फ्रांस एवं ब्रिटेन इत्यादि राष्ट्रों में दिखाई पड़ते हैं।
  • इन परिवर्तनों ने समकालीन यूरोप एवं विश्व को प्रभावित किया। 1830 एवं 1848 में लोकतंत्र की स्थापना के लिए यूरोपीय क्रांतियां हुई।
  • जिन राष्ट्रों में लोकतांत्रिक परितर्वन नहीं हुए, उन राष्ट्रों के प्रबुद्ध शासकों ने भी दिखावे के लिए ही सही, कुछ सुधार किए। जैसे – आस्ट्रिया एवं रूस के शासक।
  • इनके विचारों ने समानता और रचनात्मकता जैसी आधुनिक अवधारणाओं को लोकप्रिय बनाया।

आर्थिक दृष्टिकोण

 प्रबुद्ध चिंतकों ने आर्थिक क्षेत्र में भी प्राकृतिक नियमों की बात की। इनका कहना था कि जिस प्रकार संसार का संचालन प्राकृतिक नियमों से होता है वैसे ही आर्थिक गतिविधियों का संचालन मांग (Laissez Faire) एवं पूर्ति से। इसलिए राज्य को आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

एडम स्मिथ (Adam Smith), क्वेसने (Quasen) इत्यादि विद्वान इसके प्रबल समर्थक थे। इनके प्रभाव के कारण वाणिज्यवादी नीति के स्थान पर ‘अहस्तक्षेप की नीति  (Laissez Faire)’ प्रचलित हुई।

धार्मिक क्षेत्र में 

प्रबुद्ध विचारकों ने धार्मिक व्यवस्था को भी चुनौती दी। संसार का संचालन प्राकृतिक नियमों से होता है, न कि ईश्वर के द्वारा। राजतंत्रात्मक व्यवस्था के दैवीय उत्पत्ति पर भी प्रश्न चिह्न उठाया गया। अन्ततः धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा और वैज्ञानिक चिंतन के प्रसार में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका दी गई।

सामाजिक प्रभाव 

मानववाद, व्यक्तिवाद, पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण, समानता, स्वतन्त्रता, बंधुता, आधुनिक शिक्षा जैसे विचारों को आगे बढ़ाया।

भारत पर प्रबोधन का प्रभाव

भारत में में 19वीं सदी में चले सामाजिक सुधार आंदोलन पर इसका असर दिखाई पड़ता है। आधुनिकीकरण के सिद्धान्तों ने समाजों को वर्गीकृत करने और आधुनिक लोकतांत्रिक शासन का मॉडल खडा करने के लिए अतीत और वर्तमान, परम्परा और आधुनिकता संबंधी प्रबोधन की समझदारी से मदद ली। समाज सुधार आंदोलनों ने प्रबोधन के मानवतावादी विचारों से प्रेरणा ली और धर्म तथा रीति-रिवाजों को मानव विवेक के सिद्धान्तों के अनुरूप ढालने की कोशिश की। उन्होंने पारम्परिक रिवाजों की आलोचनात्क परीक्षा की और उन रीतियों को बदलने की लड़ाई लड़ी जो समानता और सहिष्णुता के बुनियादी सिद्धान्तों के खिलाफ थी। राजा राम  मोहन राय भारतीय पुनर्जागरण के पिता कहे गये है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Latest from Blog

UKSSSC Forest SI Exam Answer Key: 11 June 2023

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा आयोग (Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा 11 June 2023 को UKPSC Forest SI Exam परीक्षा का आयोजन…