थोलपावकुथु (Tholpavakkoothu) केरल की एक प्रसिद्ध मंदिर कला है, जिसे पलक्कड़ जिले के भद्रकाली मंदिरों में प्रस्तुत किया जाता है।
थोलपावकुथु कला की उत्पत्ति:
मलयालम भाषा में, थोल का अर्थ है – चमड़ा, पावा का अर्थ है – गुड़िया और कुथु का अर्थ है – नाटक। यह एक कर्मकांड की कला है, जिसकी उत्पत्ति के बारे ज्ञात नहीं है। लेकिन कुछ लोग इसे 1200 साल पुरानी कला मानते हैं।
यह कला पलक्कड़ जिले के भद्रकाली मंदिरों में प्रस्तुत की जाती है, जिसमें रामायण (Ramayan) के किस्से बताये जाते है।
प्रमुख बिंदु
- यह केरल की एक पारंपरिक मंदिर कला है, जो मुख्य रूप से पलक्कड़ (Palakkad) और उसके आसपास के क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं।
- यह कला पलक्कड़ जिले (Palakkad district) के शोरानूर क्षेत्र (Shoranur region) के पुलवार परिवारों (Pulavar families) तक ही सीमित है।
- केरल की प्राचीन कलाकृतियों में, थोलपावकोकोथु या छाया कठपुतली नाटक का प्रमुख स्थान है। जो आर्य (Aryan) और द्रविड़ (Dravidian) संस्कृतियों के एकीकरण का एक बेहतरीन उदाहरण है।
- यह एक रस्म कला है, जो पलक्कड़ जिले के काली मंदिरों में वार्षिक उत्सवों के दौरान प्रस्तुत की जाती है।
- इस कला को निज़लकोथु (Nizhalkkoothu) और ओलाकोकोथू (Olakkoothu) के नाम से भी जाना जाता है।
- नाटक का विषय – कम्बा रामायण (महाकाव्य का तमिल संस्करण) पर आधारित है।
थोलपावकुथु कला प्रदर्शन:
- इस मनोरंजन कला को एक विशेष मंच (मंदिर प्रांगण) पर किया जाता है जिसे कुथुमदम (koothumadam) कहा जाता है।
- थोलपावकुथु कला में मुख्य कठपुतली को ‘पुलवन (Pulavan)‘ के नाम से जाना जाता है।
- इस कला में परदे के पीछे से पौराणिक आकृतियों के साथ-साथ लैंप की आग और प्रकाश का उपयोग किया जाता है।
थोलपावकुथु कला में प्रयुक्त होने संगीत वाद्ययंत्र प्रयुक्त:
एजुपारा (Ezhupara), चेंदा (Chenda) और मद्दलम (Maddalam) आदि।