चंद्रमा (Moon) एवं सूर्य (Sun) के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र तल का नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वार-भाटा कहा जाता है। जलवायु संबंधी प्रभावों (वायु एवं वायुमंडलीय दाब) में परिवर्तन के कारण जल की गति को महोर्मि (Surge) कहा जाता है। महोर्मि (Surge) ज्वार-भाटाओं की तरह नियमित नहीं होते। ज्वारभाटाओं स्थानिक एवं कालिक रूप से अध्ययन बहुत ही जटिल है, क्योंकि इसके आवृत्ति, परिमाण तथा ऊंचाई में बहुत अधिक भिन्नता होती है।
चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वारभाटाओं की उत्पत्ति होती है। दूसरा कारक, अपकेंद्रीय बल है, जो कि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है। गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर दो महत्वपूर्ण ज्वारभाटााओं को उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी है। चंद्रमा की तरफ वाले पृथ्वी के भाग पर, एक ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, जब विपरीत भाग पर चंद्रमा का गुरुत्वीय आकर्षण बल उसकी दूरी के कारण कम होता है, तब अपकेंद्रीय बल दूसरी तरफ ज्वार उत्पन्न करता है।
ज्वार उत्पन्न करने वाले बल, इन दो बलों के बीच के अंतर है यानि चंद्रमा का गुरुत्वीय आकर्षण तथा अपकेंद्र बल। पृथ्वी के धरातल पर, चंद्रमा के निकट वाले भागों में अपकेंद्रीयकरण बल की अपेक्षा गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है और इसलिए यह बल चंद्रमा की ओर ज्वारीय उभार का कारण है। चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के दूसरी तरफ कम होता है, क्योंकि यह भाग चंद्रमा से अधिकतम दूरी पर है तथा यहाँ अपकेंद्रीय बल प्रभावशाली होता है। अतः यह चंद्रमा से दूर दूसरा उभार पैदा करता है। पृथ्वी के धरातल पर, क्षैतिज ज्वार उत्पन्न करने वाले बल ऊर्ध्वाधर बलों से अधिक महत्वपूर्ण हैं जिनसे ज्वारीय उभार पैदा होते हैं। जहाँ महाद्वीपीय मग्नतट अपेक्षाकृत विस्तृत हैं, वहाँ ज्वारीय उभार अधिक ऊंचाई वाले होते हैं। जब ये ज्वारीय उभार मध्य महासागरीय द्वीपों से टकराते हैं, तो इनकी ऊंचाई में अन्तर आ जाता है। तटों के पास ज्वारनद व खाड़ियों की आकृतियाँ भी ज्वारभाटाओं के तीव्रता को प्रभावित करते हैं। शंक्वाकार खाड़ी ज्वार के परिमाण को आश्चर्यजनक तरीके से बदल देता है। जब ज्वारभाटा द्वीपों के बीच से या खाड़ियों तथा ज्वारनद मुखों में से गुजरता है, तो उन्हें ज्वारीय धारा कहते हैं।
ज्वार-भाटा के प्रकार
ज्वार की आवृत्ति, दिशा एवं गति में स्थानीय व सामयिक भिन्नता पाई जाती है। ज्वारभाटाओं को उनकी बारंबारता एक दिन में या 24 घंटे में या उनकी ऊंचाई के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीवृफत किया जा सकता है।
आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा (Tides based on frequency)
अर्द्ध-दैनिक ज्वार (Semi-diurnal) : यह सबसे सामान्य ज्वारीय प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक दिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं। दो लगातार उच्च एवं निम्न ज्वार लगभग समान ऊंचाई की होती हैं।
दैनिक ज्वार (Diurnal tide) : इसमें प्रतिदिन केवल एक उच्च एवं एक निम्न ज्वार होता है। उच्च एवं निम्न ज्वारों की ऊंचाई समान होती है।
मिश्रित ज्वार (Mixed tide) : ऐसे ज्वार-भाटा जिनकी ऊंचाई में भिन्नता होती है, उसे मिश्रित ज्वार-भाटा कहा जाता है। ये ज्वार-भाटा सामान्यतः उत्तर अमरीका के पश्चिमी तट एवं प्रशांत महासागर के बहुत से द्वीप समूहों पर उत्पन्न होते हैं।
सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वारभाटा (Spring tides) : उच्च ज्वार की ऊंचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चंद्रमा के स्थिति पर निर्भर करती है। वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार इसी वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
वृहत् ज्वार (Spring tides) : पृथ्वी के संदर्भ में सूर्य एवं चंद्रमा की स्थिति ज्वार की ऊंचाई को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जब तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं, तब ज्वारीय उभार अधिकतम होगा। इनको वृहत् ज्वार-भाटा कहा जाता है तथा ऐसा महीने में दो बार होता है -पूर्णिमा के समय तथा दूसरा अमावस्या के समय।
निम्न ज्वार (Neap tides) : सामान्यतः वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार के बीच सात दिन का अंतर होता है। इस समय चंद्रमा एवं सूर्य एक दूसरे के समकोण पर होते हैं तथा सूर्य एवं चंद्रमा के गुरुत्व बल एक दूसरे के विरुद्ध कार्य करते हैं। चंद्रमा का आकर्षण सूर्य के दोगुने से
अधिक होते हुए भी, यह बल सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के समक्ष धूमिल हो जाता है। चंद्रमा का आकर्षण अधिक इसलिए है, क्योंकि वह पृथ्वी के अधिक निकट है।
महीने में एक बार जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है (उपभू) असामान्य रूप से उच्च एवं निम्न ज्वार उत्पन्न होता है। इस दौरान ज्वारीय क्रम सामान्य से अधिक होता है। दो सप्ताह के बाद, जब चंद्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी (अपभू) पर होता है, तब चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल सीमित होता है तथा ज्वार-भाटा के क्रम उनकी औसत ऊंचाई से कम होते हैं।
जब पृथ्वी सूर्य के निकटतम होती है, उपसौर प्रत्येक साल 3 जनवरी के आस-पास उच्च एवं निम्न ज्वारों के क्रम भी असामान्य रूप से अधिक न्यून होते हैं। जब पृथ्वी सूर्य से सबसे दूर होती है, अपसौर प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई के आस-पास, ज्वार के क्रम औसत की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। उच्च ज्वार व निम्न ज्वार के बीच का समय, जब जलस्तर गिरता है, ‘भाटा’ (Ebb) कहलाता है। उच्च ज्वार एवं निम्न ज्वार के बीच का समय जब ज्वार ऊपर चढ़ता है, उसे ‘बहाव’ या ‘बाढ़’ कहा जाता है।
Note – कनाडा में फंडी खाड़ी के ज्वारभाटा
- विश्व का सबसे ऊंचा ज्वारभाटा कनाडा (Canada) के नवास्कोशिया (Novascotia) में स्थित फंडी की खाड़ी (Gulf of Fundi) में आता है। ज्वारीय उभार की ऊंचाई 15 से 16 मीटर के बीच होती है क्योंकि वहाँ पर दो उच्च ज्वार एवं दो निम्न ज्वार प्रतिदिन आते हैं , लगभग 24 घंटे का समय, अतः एक ज्वार 6 घंटे के भीतर जरूर आता है। अनुमानतः ज्वारीय उभार एक घंटे में लगभग 2.4 meter ऊपर उठता है। इसका मतलब यह हुआ कि ज्वार प्रति मिनट 4 Cm ज्यादा ऊपर की ओर उठता है।