भैंसों की परंपरागत दौड़ – कम्बाला (Kambala)

भैंसों की परंपरागत दौड़ कम्बाला (Kambala) में विजयी श्रीनिवास गौड़ा की तुलना विश्व रिकॉर्ड धारक उसेन बोल्ट (Usain Bolt) से की गयी, क्योंकि उन्होंने भैंसों की परंपरागत दौड़ कम्बाला (Kambala) में 100 मीटर की दूरी कोमात्र 9.55 सेकंड में पूरा कर लिया था।
श्रीनिवास गौड़ा ने एथलेटिक्स ट्रायल में भाग लेने से इनकार कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

कंबाला (Kambala) एक पारंपरिक भैंसों की दौड़ है जो कीचड़ से भरे धान के खेतों में होती है। इस दौड़ का आयोजन तटीय कर्नाटक (उडुपी और दक्षिण कन्नड़) में नवंबर से मार्च तक होता है।
परंपरागत रूप से भैंसों की इस दौड़ का आयोजन, यह स्थानीय तुलुवा जमींदारों और तटीय जिलों में रहने वाले लोगो द्वारा आयोजित किया जाता है। तुलुवा लोग दक्षिणी भारत के मूल निवासियों का एक जातीय समूह हैं तथा वे तुलु भाषा के मूल वक्ता हैं।
भैंसों की इस दौड़ कंबाला (Kambala) के दौरान, धावक भैंसों की बागडोर को कसकर पकड़कर और कोड़े मारकर नियंत्रण में लाने की कोशिश करते हैं।

परंपरा (Tradition):

  • अपने पारंपरिक रूप में, कंबाला (Kambala) गैर-प्रतिस्पर्धी थी और भैंस के जोड़े एक के बाद एक धान के खेतों में दौड़ते थे।
  • कंबाला (Kambala) दौड़ का आयोजन पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए तथा देवताओं को धन्यवाद देने के लिए किया जाता था।

चिंताएँ (Concerns) –

  • पशु कार्यकर्ता द्वारा खेल की आलोचना की जाती है और तर्क दिया जाता हैं कि कंबाला में जानवरों पर क्रूरता की जाती है।
  • उनके अनुसार, यह पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (PCA) अधिनियम, 1960 का उल्लंघन करता है। यह अधिनियम उन प्रथाओं को रोकता है जिनमें पशुओं को क्रूरता के लिए अनावश्यक दिया जाता है।

पृष्ठभूमि (Background)

सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई, 2014 को अपने फैसले में जल्लीकट्टू, बैलगाड़ी दौड़ और कंबाला (Kambala) आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय द्वारा भारत के संविधान को क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1960 के कानून को एक साथ पढ़ा और दया और सम्मान के साथ पशुओं को मौलिक अधिकार प्रदान किया।
हालांकि, पशु क्रूरता निवारण (कर्नाटक संशोधन) अध्यादेश, 2017 ने कंबाला (Kambala) आयोजन के आयोजन को मंजूरी दे दी, किंतु भाग लेने वाले सांडों या भैसों के साथ क्रूरता से बचने के लिए कदम उठाए जाएं।

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