हरियाणा की पारंपरिक वेशभूषा (Traditional costumes of Haryana)

हरियाणा में सर्वाधिक संख्या हिन्दुओं की है। यह प्रदेश की समस्त जनसंख्या का 88.2 प्रतिशत है तथा शेष 12 प्रतिशत मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध व जैन हैं। प्रदेश में हिन्दुओं में प्रमुखतः ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गूजर, सैनी, खत्री, अहीर, खाती, रोड़ व अनुसूचित जाति के लोग हैं । प्रदेश में अधिकांशतः 36 गोत्रों में बँटे हुए गौड़वंशीय ब्राह्मण दसरे स्थान पर जाट जाति के लोग हैं। प्रदेश में सामाजिक दृष्टि से जाट, गूजर, राजपूत, अहीर, सुनार व सैनी आदि के लोगों का एक ही स्तर है। मुसलमानों की मख्य जातियाँ पठान, मेव, रंगरेज व लोहार आदि इस प्रदेश में निवास करती हैं।

हरियाणा के पुरुषों की पारंपरिक वेशभूषा

धोती- धोती 

कुर्ता- गोल बाँहों का पुराने रिवाज का कुर्ता

कमीज- कालरदार कमीज

खंडवा- पगड़ी

साफा- पगड़ी (सैनिक फैशन की)

पागड़ी- मारवाड़ी ढंग की पगड़ी

पाग- राजपूती ढंग की बड़ी पगड़ी

कमरी- आधी अस्तीन की कटि तक की कमरी, जो अब भी कई बुजुर्ग पहनते हैं।

अंगरखा- गण्यमान्य लोगों का नीचे तक झूलता कलीदार पहनावा, पुराने दरबारी ढंग का कुर्ता

दोहर- हाथ के कते बारीक दोहरे सूत की मजबूत बड़ी चादर, जो जाड़ों में ओढ़ी जाती है।

खेस-  मोटे सूत की चादर, जो शीतकाल में ओढ़ी जाती है।

रूई की कमरी- रूई डालकर सिलाई गई कमरी, इसे लोग जाड़े में पहनते हैं। इसी को मिरजई भी कहते हैं।

हरियाणा की स्त्रियों की पारम्परिक वेशभूषा

घाघरी- घाघरा

दामण- काले या लाल सूती कपड़े का घाघरा

बोरड़ा- खद्दर के कपड़े पर फूल छपा घाघरा

लैह- नीले कपड़े पर पीले पाट की कढ़ाई वाले कपड़े का घाघरा

गुलडां की लैह- बंधाई पद्धति से रंगे हुए खद्दर से बना घाघरा

कैरी- नीले खद्दर पर लाल टीकों वाले कपड़े का घाघरा

खारा- चार नीले तथा चार लाल धागों की ‘बुनाई वाले खद्दर से बना बिना कली का घाघरा

चांदतारा- खद्दर पर दूज के चांद और तारे की छपाई वाले कपडे से बना घाघरा

कमरी- वास्केटनुमा पूरी या आधी आस्तीनों की कमरी। इसे पहले विवाहित स्त्रियाँ ही पहनती थीं।

आंग्गी- अंगिया 

समीज- कमीज के नीचे पहना जाने वाला वस्त्र

सिलवार- सलवार, नई पीढ़ी इसे तेजी से अपना रही है

ओढ़णा- गोट-गोटा लगी ओढ़नी 

दुकानियाँ- खद्दर का गहरे लाल रंग का पीले धागों से कढ़ा ओढ़ना

 छयामा- पीले पाट का कढ़ा ओढ़ना

सोपली- गहरे लाल रंग की किनारे पर छपी ओढ़नी।

डिमास या डिमाच- रेशमी ओढ़ना जो कि विवाह में चढ़ाया जाता था। 

गुमटी- सूती रंगीन कपड़े पर रेशमी बूंदियों कढ़ी ओढ़नी। 

लहरिया- बँधाई पद्धति की रंगाई से तैयार किया गया ओढ़ना

बोल- सूती कपड़े पर रेशमी पट्टीदार कढ़ाई का ओढ़नी

पीलिया- लाल किनारियों का बीच से पीला पतले कपड़े का बंधी रंगाई से तैयार ओढ़ना। इसे बच्चा होने पर पीहर से देते हैं।

चूंदणी- लाल पल्लों और बीच में नीली रंगाई वाली पतली ओढ़नी।

मौडिया- नीले या काले पल्लों की रंगाई का बारीक ओढ़ना।

कंघ- पक्के लाल रंग का ओढ़ना। इनकी कई तरह की कढ़ाई होती थी। जलसे की कढ़ाई, मिर्चों के पेड़ों की कढ़ाई, बटनों की कढ़ाई और फिर्कीदार कढ़ाई लोकप्रिय थी। इस कढ़ाई के आधार पर ही इसका नाम कंध पड़ा।

फुलकारी- कंघ पर पीले पाट या ऊन की डब्बीनुमा फुलकारियों के ओढ़ने।

हरियाणा के बच्चों की पारम्परिक वेशभूषा

फरगल- जाड़े में बच्चों को पहनाया जाने वाला टोप, जिसकी रंगबिरंगी झालर कमर तक पीछे लटकती रहती है।

झुगला- छोटे बच्चों का पहनावा

सौड़- खद्दर की रजाई

सौडिया- खद्दर का गदेला

रिजाई- रजाई

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Latest from Blog

UKSSSC Forest SI Exam Answer Key: 11 June 2023

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा आयोग (Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा 11 June 2023 को UKPSC Forest SI Exam परीक्षा का आयोजन…