मृदा ठोस भूपटल के ऊपरी असंगठित पदार्थों की परत है, जिसका निर्माण चट्टानों के विखंडन से होता है। मृदा निर्माण में जल, आर्द्रता और तापमान जैसे अन्य प्राकृतिक कारक मुख्य भूमिका निभाते हैं। बिहार राज्य के 90 % भाग पर जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, जिसका निर्माण गंगा नदी के उत्तर और दक्षिण के जलोढ़ मैदान में नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से निर्मित है। बिहार सरकार के कृषि अनुसंधान विभाग के अनुसार बिहार की मिट्टी का वर्गीकरण किया गया है। इस वर्गीकरण का आधार मूल चट्टान, भू-आकृति, भौतिक एवं रासायनिक संरचना है। कृषि अनुसंधान विभाग के द्वारा बिहार की मृदा को मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया गया है
- उत्तर बिहार के मैदान की मृदा
- दक्षिण बिहार के मैदान की मृदा
- दक्षिणी सीमांत पठार की मृदा
उत्तरी बिहार के मैदान की मृदा
उत्तरी बिहार के मैदान में शिवालिक श्रेणी (पश्चिमी चंपारण का पर्वतीय भाग) को छोड़कर मुख्यतः जलोढ़ मृदा पाई जाती है। जिसका निर्माण हिमालय से प्रवाहित होने वाली गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, महानंदा और उसकी सहायक नदियों द्वारा हुआ है। शिवालिक क्षेत्र में पर्वतीय मृदा पाई जाती है। उत्तर बिहार के मैदान की मिट्टी को कृषि अनुसंधान विभाग के द्वारा चार उप-वर्गों में बाँटा गया है
- उप-हिमालय पर्वतपदीय मृदा
- तराई मृदा
- बांगर (जलोढ़) मृदा
- खादर मृदा
उप-हिमालय पर्वतपदीय मिट्टी
यह मृदा चंपारण के उत्तरी-पश्चिमी भाग के सोमेश्वर श्रेणी के आसपास पाई जाती है। पर्वतीय ढालों पर अधिक वर्षा के कारण मिट्टी की परत पतली होती है, जिस कारण यह मृदा काफी उपजाऊ होती है। इस क्षेत्र में चिकनी मृदा प्राप्त होती है, जिसका रंग हल्का भूरा एवं पीला है। इस क्षेत्र में अधिक वर्षा होने के कारण मृदा में अधिक आर्द्रता (नमी) पाई जाती है। इस मृदा में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें धान, मक्का, जौ आदि हैं।
तराई मृदा
इस मृदा का विस्तार बिहार में पश्चिमी चंपारण से किशनगंज तक है। पर्वतपदीय क्षेत्र में जल के सतत भूमि में रिसाव के कारण यहाँ मृदा में भरपूर मात्रा में आर्द्रता मिलती है। इस मृदा में कंकड़ के छोटे कण भी पाए जाते हैं तथा कई जगहों पर दलदली भूमि का भी विकास हुआ है। इस मृदा का रंग हल्का भूरा या पीला होता है। इस मृदा में चूने की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। यह मिट्टी धान, पटसन और गन्ने की खेती के लिए अनुकूल होती है। इस मृदा को बलसुंदरी मृदा के नाम से भी जाना जाता है।
पुरानी जलोढ़ (बांगर) मृदा
इस मृदा का विकास उन क्षेत्रों में होता है, जहाँ बाढ़ का पानी प्रतिवर्ष नहीं पहुँच पाता है। इस मृदा का विस्तार मुख्यत: घाघरा-गंडक दोआब और बूढ़ी गंडक के पश्चिमी भाग में है। इस मृदा को बलसुंदरी मृदा के नाम से भी जाना जाता है, इस मृदा की प्रकृति क्षारीय होती है, जिसमें चूना और पोटाश की अधिकता होती है तथा फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है। इस मृदा में उगाई जाने वाली प्रमुख फसल मक्का, ईख, धान, गेहूँ और तंबाकू है।
खादर मृदा
नदियों द्वारा प्रतिवर्ष बाढ़ के पश्चात् छोड़े गए अवसादों से खादर मृदा (नवीन जलोढ़ मृदा) का निर्माण होता है। इस मृदा का रंग गहरा भूरा होता है। इसमें चीका (Clay) की प्रधानता होती है तथा कहीं-कहीं बालू भी अधिकांश मात्रा में मिलती है। इस मृदा का विस्तार गंगा घाटी, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी और महानंदा की निचली घाटी में है। इस मृदा में नाइट्रोजन की कमी पाई जाती हैं।
दक्षिण बिहार के मैदान की मृदा
यह मृदा गंगा के दक्षिण में पाई जाती है। इसका विस्तार गंगा नदी तथा छोटानागपुर पठार के मध्य स्थित है। बिहार के दक्षिणी भाग में जलोढ़ मृदा का विस्तार सोन, पुनपुन, फल्गु तथा उनकी सहायक नदियों के निक्षेपण से हुआ है। मृदा की संरचनात्मक के आधार पर दक्षिणी बिहार की मृदा चार भागों में वर्गीकृत किया गया है –
- कगारी मृदा
- टाल मृदा
- पुरानी जलोढ़ मृदा
- बलथर मिट्टी
कगारी मृदा
यह मृदा नदियों के तट पर तटबंध के रूप में पाई जाती है। गंगा नदी के दक्षिणी तट पर, सोन, किऊल, पुनपुन, फल्गु आदि नदियों के किनारे, इस मृदा का विकास हुआ है। यह चूना-प्रधान मृदा है। इसका गठन हल्का एवं रंग भूरा होता है तथा इस मृदा में उगाई जाने वाली प्रमुख फसल मकई, जौ, सरसों, मिर्च आदि हैं।
टाल मृदा
टाल निम्न भूमि का क्षेत्र है, जो वर्षाऋतु में जल-प्लावित रहता है। यह मृदा कगारी मिट्टी के दक्षिण बक्सर से भागलपुर तक 8 से 10 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में विस्तृत है। यह भूरे रंग की मोटे कणवाली मृदा है। यह मृदा दलहन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
पुरानी जलोढ़ मृदा
इस मृदा का विस्तार टाल क्षेत्र के दक्षिण में बक्सर, भोजपुर, उत्तरी गया, उत्तरी रोहतास, नालंदा, जहानाबाद, मुंगेर, पटना आदि क्षेत्रों में है। यह मृदा बिहार के सर्वाधिक प्रदेश में पाई जाती है तथा इसका रंग गहरा भूरा से लेकर पीला तक होता है। इस मृदा में बालू, सिल्ट और चीका का मिश्रण पाया जाता है। इस मृदा में पाई जाने वाली प्रमुख फसलें धान, गेहूँ, बाजरा, अरहर आदि हैं।
बलथर मिट्टी
यह मृदा छोटानागपुर पठार और गंगा के मिलन क्षेत्र में पाई जाती है। इस मृदा का विस्तार कैमूर से भागलपुर तक है। इसे लाल व पीली मृदा के नाम से भी जाना जाता है। इस मृदा में हल्के कंकड़ मिलते हैं और इसमें लाल रंग की अधिकता होती है। इस मृदा की प्रकृति अम्लीय होती है। इस मृदा में अत्यधिक अपरदन के कारण इस मृदा में कृषि की संभावना अत्यधिक कम होती है। इस मृदा में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें मुख्यतः मक्का, ज्वार, बाजरा, आलू आदि हैं।
दक्षिणी सीमांत पठार की मृदा
दक्षिण बिहार क्षेत्र के सीमांत पठारी प्रदेश में मुख्यतः लाल और पीले रंग की मृदा पाई जाती है। सीमांत पठारी क्षेत्र की मृदा को मुख्यत: 2 वर्गों में विभाजित किया गया है –
लाल बलुई मृदा (कैमूर पहाड़ क्षेत्र)
यह मृदा कैमूर एवं रोहतास के पठारी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मृदा में बालू के साथ-साथ चीका और लेटेराइट मृदा के अंश भी पाए जाते हैं। प्राकृतिक वनस्पति की अधिकता के कारण इस क्षेत्र की मृदा में जीवांश की मात्रा भी पाई जाती है। इस मृदा में उगाई जाने वाली मुख्य फसल ज्वार, बाजरा, मकई, मड़आ आदि हैं।
लाल व पीली मृदा
इस मृदा का विस्तार बिहार के जमुई, मुंगेर के खड़गपुर पहाड़ी, बाँका, नवादा, गया और औरंगाबाद के पठारी क्षेत्रों में पाया जाता है। इस मृदा का निर्माण ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट आदि चट्टानों के विखंडन से हुआ है। लौह तत्त्व की अधिकता के कारण इस मृदा का रंग लाल होता है तथा इसमें पोषक तत्त्व तथा आर्द्रता की कमी होती है। इस मृदा में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें में मुख्यतः मोटे अनाज, दलहन आदि हैं।