पत्ती (Leaf) – इसकी सहायता से पौधे में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है।
पुष्प (Flower) – पुष्प एक विशेष प्रकार का रूपांतरित प्ररोह (shoot) है, जो तने एवं शाखाओं के शिखाग्र तथा पत्ती के कक्ष में उत्पन्न होता है । पुष्प पौधे के प्रजनन में सहायक होते हैं।
तना (Stem) – तना प्रांकुर से विकसित होता है एवं सूर्य की रोशनी की दिशा में बढ़ता है। इसमें पर्व एवं पर्वसंधि का पूर्ण विकास होता है। विभिन्न कार्यों को सम्पादित करने के उद्देश्य से तने में परिवर्तन होता है। तने का रूपान्तरण प्रमुखत: तीन प्रकार से होता है –
- भूमिगत,
- अर्द्धवाद्यकीय,
- वायवीय
जड़ (Root) – यह पौधे का भूमि की तरफ बढ़ने वाला अवरोही भाग होता है, जो प्रकाश से दूर गुरूत्वाकर्षण शक्ति की तरफ बढ़ता है। यह प्रायः मूलांकुर से उत्पन्न होती है। मूलांकुर से निकलने वाली जड़ को मूसला जड़ कहते हैं। कुछ जड़े जिनमें भोज्य पदार्थ का संग्रहण होने के कारण वे रूपांतरित हो जाती हैं, वे निम्नलिखित है – हल्दी, गाजर, शलजम, मूली आदि।
बीज (Seed) – यह अध्यारणी गुरूबीजाणुधानी (Megasporangium) का परिपक्व रूप होता है। प्रत्येक बीज का बीजावरण, बीजांड के अध्यावरणों के रूपान्तरण से बनता है। जड़ एवं तने का निर्माण क्रमशः बीज के मूलांकुर और प्रांकुर से होता है।
फल (Fruit)
फल का निर्माण अण्डाशय (Ovary) से होता है, हालांकि परिपक्व अण्डाशय को ही फल कहा जाता है, क्योंकि परिपक्व अण्डाशय की भित्ति फल-भित्ति (Pericarp) का निर्माण करती है। पुष्प के निषेचन के आधार पर फल के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं –
सत्य फल (True Fruit) – यदि फल के बनने में निषेचन प्रक्रिया द्वारा पुष्प में मौजूद अंगों में केवल अण्डाशय ही भाग लेता है, तो वह सत्य फल होता है। जैसे – आम
असत्य फल (False Fruit) – फल के बनने में जब कभी अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भाग – बाह्यदल , पुष्पासन आदि भाग लेते हैं, तो वह असत्य फल के वर्ग में आता है। जैसे – सेब के बनने में पुष्पासन भाग लेता है। फलों व उनके उत्पादन के अध्ययन को पोमोलॉजी (Pomology) कहते हैं।
सरल फल
जब किसी पुष्प के अण्डाशय से केवल एक ही फल बनता है, तो उसे सरल फल कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
- सरस फल
- शुष्क फल
सरस फल – ये रसदार, गूदेदार व अस्फुटनशील होते हैं। सरस फल भी छः प्रकार के होते हैं।
- अष्टिल फल (Drupe) – नारियल, आम, बेर, सुपारी आदि। .
- पीपो (Pepo) – तरबूज, ककड़ी, खीरा, लौकी आदि।
- हेस्पिरीडियम (Hespiridium) – नीबू, संतरा, मुसम्मी आदि।
- बेरी (Berry) – केला, अमरूद, टमाटर, मिर्च, अंगूर आदि।
- पोम (Pome) – सेब, नाशपती आदि।
- बैलटा (Balaista) – अनार।
शुष्क फल – ये नौ प्रकार के होते हैं।
- कैरियोप्सिस (Caryopsis) – जौ, धान, मक्का, गेहूं आदि।
- सिप्सेला (Cypsella) – गेंदा, सूर्यमुखी आदि।
- नट (Nut) – लीची, काजू, सिंघाड़ा आदि।
- फली (Pod) – सेम, चना, मटर आदि।
- सिलिक्युआ (Siligua) – सरसों, मूली आदि।
- कोष्ठ विदाकर (Locilicidal) – कपास, भिण्डी आदि।
- लोमेनटम (Lomentum) – मूगफली, इमली, बबूल आदि
- क्रेमकार्य (Cremocorp) – सौंफ, जीरा, धनिया आदि।
- रेग्मा (Regma) – रेड़ी।
पुंजफल (Etaerio) – इसके अन्तर्गत एक ही बहुअण्डपी पुष्प के ‘वियुकाण्डपी अण्डाशयों से अलग-अलग फल बनता है, लेकिन वे समूह के रूप में रहते हैं। पुंजफल भी चार प्रकार के होते हैं।
- बेरी का पुंजफल (Etaerio of berries) – शरीफ
- अष्तिल का पुंजफल – रसभरी
- फालिकिन का पुंजफल – चम्पा, सदाबहार, मदार आदि
- एकीन का पुंजफल – स्ट्राबेरी, कमल आदि ।
संग्रहित फल (Composite Fruits) – जब एक ही सम्पूर्ण पुष्पक्रम के पुष्पों से पूर्ण फल बनता है, तो उसे संग्रहित/संग्रथित फल कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं –
- सोरोसिस (Sorosis): जैसे – शहतूत, कटहल, अनानास आदि।
- साइकोनस (Syeonus): जैसे – गूलर, बरगद, अंजीर आदि
फल और उसके खाने योग्य भाग
फल | खाने योग्य भाग |
---|---|
सेब | पुष्पासन |
नाशपाती | मध्य फलभित्ति |
लीची | पुष्पासन |
नारियल | एरिल |
अमरूद | भ्रूणपोष (Endosperm) |
पपीता | फलभित्ति |
मूंगफली | बीजपत्र एवं भ्रूण |
काजू | बीजपत्र |
बेर | बाह्म एवं मध्य फलभित्ति |
अनार | रसीले बीजचोल |
अंगूर | फलभित्ति |
कटहल | सहपत्र परिदल एवं बीज |
गेहूं | भ्रूणपोष |
धनिया | पुष्पासन एवं बीज |
शरीफा | फल भित्ति |
सिंघाड़ा | बीजपत्र |
नींबू | रसीले रोम |
बेल | मध्य एवं अन्तः फलभित्ति |
टमाटर | फलभित्ति एवं बीजाण्डसन |
शहतूत | सहपत्र, परिदल एवं बीज |
पादप में कोशिका के प्रकार
मृदुतक कोशिकाएं – इस ऊतक की कोशिकाएं जीवित, गोलाकार, अंडाकार, बहुभुजी या अनियमित आकार की होती हैं। इस प्रकार की कोशिकाओं के बीच अंतर कोशिकीय स्थान रहता है।
स्थूलकोण कोशिकाएं – इस ऊतक की कोशिकाएं केन्द्रकयुक्त, लम्बी या अण्डाकार या बहुभुजी, जीवित तथा रसधानीयुक्त होती हैं। इनमें हरितलवक होता है एवं भिति में किनारों पर सेलूलोज होने से स्थूलन होता है।
दृढ़ कोशिकाएं – इस ऊतक की कोशिकाएं मृत, लंबी, संकरी तथा दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। इनमें जीवद्रव्य नहीं होता है एवं इनकी भिति लिग्निन के जमाव के कारण मोटी हो जाती है।
जाइलम् – यह पौधों के जड़, तना एवं पत्तियों में पाया जाता है। यह चार विभिन्न प्रकार के तत्वों से बना होता है। ये निम्नलिखित हैं – वाहिनिकाएं, वाहिकाएं. जाइलम तंतु तथा जाइलम मृदुत्तक।
फ्लोएम – जाइलम की भांति फ्लोएम भी पौधे की जड़, तना एवं पत्तियों में पाया जाता है। यह पतियों द्वारा तैयार भोज्य पदार्थ को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है। फ्लोएम निम्नलिखित चार तत्वों का बना होता है –
- चालिनी नलिकाएं,
- सहकोशिकाएं
- फ्लोएम तंतु
- फ्लोएम मृदुताक
विभाज्योतिकी – यह ऐसी कोशिकाएं हैं, जिनमें बार-बार सूत्री विभाजन करने की क्षमता होती है।