मौसम  और जलवायु – Weather & Climate

मौसम  और जलवायु (Weather & Climate) –

वायुमंडल में होने वाला अल्पकालिक परिवर्तन मौसम कहलाता है।
मौसम में होने वाला दीर्घकालिक परिवर्तन जलवायु कहलाता है जिसका प्रभाव एक विस्तृत शेत्र और पर्यावरण पर पढता है।

तापमान

वायु में मौजूद ताप एवं शीतलता के परिमाण को तापमान कहते हैं। वायुमंडल का तापमान केवल दिन और रात में ही नहीं बदलता बल्कि ऋतुओं (seasons) के अनुसार भी बदलता है। शीत ऋतु (winter season) की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु (summer season) ज्यादा गर्म
होती है।
आतपन एक महत्त्वपूर्ण कारक है, जो तापमान के वितरण को प्रभावित करता है। सूर्य से आने वाली वह ऊर्जा जिसे पृथ्वी रोक लेती है, आतपन
कहलाती है। सूर्यातप की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवो की ओर घटती है। इसलिए तापमान उसी प्रकार घटता जाता है।

वायु दाब (Air Pressure)

पृथ्वी की सतह पर वायु के भार द्वारा लगाया गया दाब, वायु  दाब कहलाता है। वायुमंडल में ऊपर की तरफ जाने पर दाब (Pressure) तेजी से गिरने लगता है। समुद्र स्तर पर वायुदाब सर्वाधिक होता है  और ऊंचाई पर जाने पर यह घटता जाता है। वायु दाब (Air Pressure) का क्षैतिज वितरण किसी स्थान पर उपस्थित वायु के ताप द्वारा प्रभावित होता है। अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में वायु हल्की होकर ऊपर उठती है । यह निम्न दाब क्षेत्र (Low Pressure region)  बनाता है । निम्न दाब, बादलयुक्त आकाश एवं नम मौसम के साथ जुड़ा होता है कम तापमान (Low Temprature) वाले क्षेत्रों की वायु ठंडी होती है। इसके फलस्वरूप यह भारी होती है। भारी वायु संकुचित (Compress) होकर उच्च दाब क्षेत्र (High Pressure region) बनाती है। उच्च दाब के कारण स्पष्ट एवं स्वच्छ आकाश होता है।
Note – वायु सदैव उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर गमन करती है।

पवन (Air)


उच्च दाब क्षेत्रों से  निम्न दाब क्षेत्र (Low Pressure region) की तरफ वायु की गति को ‘पवन’ कहते है।
पवन को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है –

  1. स्थायी पवनें: व्यापारिक पश्चिमी एवं पूर्वी पवनें स्थायी पवनें हैं। ये वर्षभर लगातार निश्चित दिशा में चलती रहती हैं।
  2.  मौसमी पवनें: ये पवनें विभिन्न ऋतुओ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। जैसे -भारत में मानसूनी पवनें।
  3.  स्थानीय पवनें: ये पवनें किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष या दिन के किसी विशेष समय में चलती है। जैसे – स्थल एवं समुद्री समीर।

Note – भारत के उत्तरी क्षेत्रा की गर्म एवं शुष्क स्थानीय पवन को ‘लू (Loo)’ कहते हैं।

आर्द्रता (Humidity)

जब जल पृथ्वी एवं विभिन्न जलाशयों से वाष्पित (Evaporated) होता है, तो यह जलवाष्प (water vapour) बन जाता है। वायु में किसी भी समय जलवाष्प की मात्रा को ‘आर्द्रता’ कहते हैं। जब वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यधिक होती है, तो उसे हम आर्द्र दिन कहते हैं। जैसे-जैसे वायु गर्म होती जाती है, इसकी जलवाष्प धरण करने की क्षमता बढ़ती जाती है और इस प्रकार यह और अधिक आर्द्र हो जाती है।  जब जलवाष्प ऊपर उठता है, तो यह ठंडा होना शुरू हो जाता है। जलवाष्प संघनित (Condensed) होकर ठंडा होकर जल की बूँद बनाते हैं। बादल इन्हीं जल बूंदों का ही एक समूह होता है। जब जल की ये बूँदें इतनी भारी हो जाती हैं, तब ये वर्षण के रूप में नीचे आ जाती हैं। पृथ्वी पर जल के रूप में गिरने वाला वर्षण (वर्षा) कहलाता हैं। ज्यादातर भौम जल वर्षा से ही प्राप्त होता है । पौधे जल संरक्षण में मदद करते है। जब पहाड़ी पार्श्व से पेड़ काटे जाते हैं, वर्षा जल अनावृत पहाड़ो से नीचे बहताहै एवं निचले इलाकों में बाढ़ का कारण बनता है। क्रियाविधि आधार पर वर्षा के तीन प्रकार होते हैं :-

  • संवहनी वर्षा, (Vascular rain,)
  • पर्वतीय वर्षा (Mountain rain)
  • चक्रवाती वर्षा (Cyclone rain)

पौधें तथा जीव-जंतुओं के जीवित रहने के लिए वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है। इससे ध्ररातल को ताज़ा जल प्रदान होता है। यदि वर्षा कम हो, तो जल की कमी तथा सूखा हो जाता है। इसके विपरीत अगर वर्षा अधिक होती है, तो बाढ़ आ जाती है।

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