संरचनात्मक दृष्टिकोण से बिहार को प्री-कैंब्रियन (Pre-Cambrian) कल्प से लेकर चतुर्थ कल्प तक की चट्टानें पाई जाती हैं। प्री-कैंब्रियन (Pre-Cambrian) कल्प की चट्टानें धारवाड़ संरचना और विंध्यन संरचना के रूप में बिहार के दक्षिणी पठारी भाग में पाई जाती हैं। दक्षिणी पठारी भाग की प्राचीनतम चट्टानें बृहद पेंजिया महाद्वीप (Pangea…
Read Moreबिहार गंगा के मध्य मैदानी भाग में स्थित पूर्वी भारत का राज्य है। बिहार का वर्तमान स्वरूप 15 नवंबर, 2000 को झारखंड के पृथक् होने के बाद आया है। आयताकार आकृतिवाला वर्तमान बिहार का क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर (36,357 वर्ग मील) है। यह भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.86% है…
Read Moreसंरचना एवं उच्चावच की भिन्नता के आधार पर बिहार को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया सकता है। शिवालिक पर्वतीय प्रदेश, गंगा का मैदान छोटानागपुर सीमांत पठारी प्रदेश बिहार की क्षेत्रीय प्राकृतिक विविधता, उच्चावच में असमानता, भूमि की विषमता, मिट्टी एवं वनस्पति की विविधता का आधार है। किसी विस्तृत क्षेत्र…
Read Moreबिहार में अनेक प्रकार की भौतिक विविधताएँ जैसे – पर्वत, पठार और मैदान सभी प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं। यद्यपि बिहार का अधिकांश भू-भाग मैदानी क्षेत्र है, किन्तु उत्तर में स्थित शिवालिक पर्वत श्रेणी तथा दक्षिण में संकीर्ण पठारी क्षेत्र विविधता उत्पन्न करते हैं। भौतिक दृष्टि के आधार पर…
Read Moreबिहार में लोकनृत्यों का भी अत्यधिक महत्व है। यहाँ सभी पर्वों, जैसे- संस्कार, पर्व और मनोरंजन इत्यादि पर लोकनृत्यों को किया हटा है इन लोकनृत्यों से आपसी सौहार्द और एकता का भाव भी जागृत होता है। राज्य के निम्नलिखित नृत्य उल्लेखनीय हैं करमा नृत्य बिहार की आदिवासी जनजातियों में करमा…
Read Moreबिहार से विभाजित होकर नया राज्य बनने के पश्चात झारखंड में जनजातियों की संख्या बहुत कम हो गई, किन्तु कुछ जनजातियों अभी भी हैं, जो बिहार की समृद्ध सामाजिक संस्कृति को अपनी प्राचीन संस्कृति से योगदान देती हैं। बिहार में पाए जानेवाली प्रमुख जनजातियाँ निम्नलिखित हैं गोंड यह जनजाति बिहार…
Read Moreबिहार के लोकनाट्यों का जनजीवन में काफी महत्वपूर्ण स्थान है। इन नाटयों में अभिनय, संवाद, कथानक, गीत तथा नृत्यों का अत्यधिक महत्व हैं। इन्हें सांस्कृतिक और मांगलिक अवसरों पर दक्ष कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। बिहार में प्रचलित लोकनाट्यों का वर्णन निम्नलिखित है – जट-जटिन यह लोकनाट्य एक जट…
Read Moreभारत में क्षेत्रीयता के आधार पर लोकगीतों का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक राज्य में लोकगीतों की अलग-अलग परंपरा रही है। यह लोकगीतों पर्व-त्योहार, शादी-विवाह, जन्म, मुंडन, जनेऊ आदि अवसरों पर गाए जाते हैं। इन लोकगीतों में अंगिका लोकगीत प्राकृतिक सौंदर्य का तथा मगही लोकगीत पारिवारिक संबंधों का वर्णन करते…
Read Moreऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.) के अंतिम चरण में सामाजिक जीवन में कई प्रकार की कुरीतियों आने लगीं। ऋगवेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में पहली बार वर्ण-व्यवस्था का उल्लेख हुआ है, जो उत्तर-वैदिक काल का अंत होते-होते अपने जटिल स्वरूप में आ गयी। छठी सदी तक छुआछूत जैसे कुरीतियाँ…
Read Moreबिहार में मानव सभ्यता के इतिहास को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जा सकता है प्राक्-ऐतिहासिक काल ऐतिहासिक काल प्राक्-ऐतिहासिक काल प्राक्-ऐतिहासिक काल से सम्बंधित आदि मानव के निवास के साक्ष्य बिहार के कुछ स्थानों से लगभग 1 लाख वर्ष पूर्व के मिले हैं। ये साक्ष्य पुरापाषाण युग के…
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